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जनजातीय महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : शासन व्यवस्था, सामाजिक न्याय तथा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के स्वास्थ्य, विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारत में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर तथा रुग्णता दर (Morbidity Rates) अत्यधिक है, जिसका प्रभाव जनजातीय समुदायों पर असमान रूप से पड़ता है। जनजातीय आबादी प्राय: प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में रहती है, जिससे नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम सामने आते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु 

  • मई 2023 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में वैश्विक मातृ मृत्यु में भारत की हिस्सेदारी 17% से अधिक थी, जो वैश्विक मातृ मृत्यु, मृत जन्म एवं  नवजात मृत्यु के 60% के लिए जिम्मेदार 10 देशों में सर्वाधिक है। 
  • इस रिपोर्ट में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए मातृ स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

जनजातीय मातृ स्वास्थ्य देखभाल संबंधी समस्याएँ

  • पारंपरिक बाल देखभाल प्रथाओं का प्रभाव : पारंपरिक आदिवासी सांस्कृतिक प्रथाएँ शिशुओं के स्वास्थ्य परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, आदिवासी महिलाएँ प्राय: नवजात शिशुओं को नहलाती हैं जिससे शिशुओं को संक्रमण एवं हाइपोथर्मिया का खतरा होता है। 
    • दूसरा मुद्दा स्तनपान में देरी की प्रथा है। महिलाएँ प्राय: कोलोस्ट्रम को त्याग देती हैं जो प्रारंभिक गाढ़ा, चिपचिपा व पीला स्तन दूध है। इसे अपचनीय अपशिष्ट दूध माना जाता है। हालाँकि, इसमें भरपूर पोषक तत्व एवं प्रतिरक्षी गुण होते हैं। 
    • आदिवासी महिलाएँ स्तनपान की बजाए शहद, पारंपरिक जड़ी-बूटियों के साथ मिश्रित चीनी का पानी, पशु दूध के साथ-साथ प्री-लैक्टियल फीड भी प्रदान करती हैं। 
  • पोषण आहार एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच : गरीबी एवं संसाधनों की कमी के कारण जनजातीय शिशुओं को प्राय: अपर्याप्त पौष्टिक भोजन से कुपोषण का सामना करना पड़ता है। 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ सर्वेक्षण-5 के अनुसार, 6-23 महीने की आयु के केवल 4.5% माडिया-गोंड जनजाति बच्चों को पर्याप्त आहार मिलता है, जिससे 35.4% बच्चे कम वजन के होते हैं। 
  • शिक्षा तक सीमित पहुंच : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, आदिवासी आबादी में साक्षरता दर निम्न है। साथ ही, पुरुष एवं महिला साक्षरता दर में भी अधिक अंतर है।  
    • अधिक आयु की बालिकाएँ प्राय: छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती हैं और शिक्षा की कमी के कारण उनका विवाह शीघ्र कर दिया जाता है। 
    • आदिवासी समुदाय में यह शैक्षिक अंतर परिवार नियोजन और आधुनिक स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान को सीमित करता है, जिससे बच्चे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं व पुरानी प्रथाओं के शिकार हो जाते हैं। 
  • मासिक धर्म के दौरान प्रतिबंधात्मक सांस्कृतिक प्रथा : इन प्रथाओं के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। कई महिलाएँ इन परंपराओं को नापसंद करने के बावजूद इनका पालन करने के लिए मजबूर हैं जिससे उनके प्रजनन स्वास्थ्य प्रभावित होता है और संक्रमण के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। 
    •  उदाहरण के लिए माडिया-गोंड संस्कृति में बालिकाओं व महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान छोटे ‘कुरुमाघर’ (मासिक धर्म झोपड़ियों) में अलग रखा जाता है। ये संकीर्ण होने के साथ-साथ सांप आदि विषैले जानवरों के कारण खतरनाक हो सकते हैं। 
  • किशोरावस्था में गर्भधारण और कम उम्र में विवाह : युवाओं का सामुदायिक केंद्रों जैसे- रैला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान विवाह करवाया जाता है।
    • माडिया-गोंड में शादी की उम्र तय नहीं है और लड़कियां अक्सर अपनी शुरुआती किशोरावस्था में ही बच्चे पैदा करना शुरू कर देती हैं, पहली गर्भावस्था कभी-कभी 15 साल की उम्र में होती है। 
  • शारीरिक स्वास्थ्य की समस्या एवं यौन साक्षरता की कमी : आदिवासी किशोरियों में प्राय: किशोरावस्था में गर्भधारण होता है जिसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल परिणाम होता है। किशोरावस्था में गर्भधारण से कम वजन वाले शिशु, मृत जन्म, गर्भपात व नवजात मृत्यु दर की समस्या होती है। 
  • सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के संचालन संबंधित चुनौती : दूरदराज के गांवों में रसद एवं संचालन संबंधी चुनौतियों के कारण आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों का क्रियान्वयन चुनौतीपूर्ण है। 
    • आदिवासी महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई महिलाओं के पास बैंक खाते भी नहीं हैं, जिससे वे योजनाओं के लिए अपात्र हो जाती हैं।
    • प्रसव आमतौर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) या ग्रामीण अस्पतालों में होते हैं, जो प्राय: दूर होते हैं। 

जनजातीय मातृ स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सरकारी योजनाएँ

  • जननी सुरक्षा योजना (JSY) : यह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है, जिसका उद्देश्य गरीब गर्भवती महिलाओं में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है। 
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) : इस योजना के तहत किसी भी जाति या आर्थिक स्थिति वाली सभी गर्भवती महिलाओं को ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य प्रसव तथा सिजेरियन ऑपरेशन सहित मुफ्त एवं नकदी रहित सेवाएं प्रदान की जाएंगी। बीमार शिशुओं (जन्म से 1 वर्ष की आयु तक) को भी निःशुल्क एवं नकद रहित सेवाएँ प्रदान की जाएंगी। 
  • सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) : इसका लक्ष्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में आने वाली प्रत्येक महिला और नवजात शिशु को नि:शुल्क, सम्मानजनक व गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। सेवाओं से इनकार करने पर शून्य सहनशीलता बरती जाती है ताकि रोकथाम योग्य सभी मातृ एवं नवजात मृत्यु को रोका जा सके।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) : इसमें गर्भवती महिलाओं की हर महीने की 9 तारीख को एक विशेषज्ञ/चिकित्सा अधिकारी द्वारा एक निश्चित, निशुल्क व गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व जांच की जाती है।
  • मासिक ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस (VHSND) : यह आई.सी.डी.एस. के साथ समन्वय में पोषण सहित मातृ एवं शिशु देखभाल के प्रावधान के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर एक आउटरीच गतिविधि है।

शिशु मृत्यु दर (IMR) NHFS-5 : 35.2

मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 2018-20 : 97 

जनजातीय मातृ स्वास्थ्य देखभाल संबंधी समस्याओं को कम करने के उपाय 

जनजातीय मातृ स्वास्थ्य देखभाल संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं :

  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच बढ़ाने के लिए दूरदराज और जनजातीय क्षेत्रों में अधिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करना तथा मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों का संचालन करना
  • गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों को पोषण, स्वच्छता प्रसव पूर्व देखभाल के बारे में शिक्षित करना
  • स्थानीय भाषा में स्वास्थ्य शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराना
  • गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम चलाना और आयरन, कैल्शियम व विटामिन सप्लीमेंट्स प्रदान करना
  • स्थानीय समुदायों और परंपरागत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य अभियानों में शामिल करना
  • समुदाय आधारित स्वास्थ्य समितियों का गठन करना
  • स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और दाइयों को नियमित प्रशिक्षण प्रदान करना
  • साफ पानी और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना
  • जनजातीय क्षेत्रों में विशेष स्वास्थ्य योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने के साथ उसकी नियमित निगरानी व मूल्यांकन करना
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