(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : स्वास्थ्य, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने से संबंधित विषय, सरकारी बजट)
संदर्भ
पिछले कुछ समय से डीज़ल, पेट्रोल और रियायती एल.पी.जी. की कीमतों में वृद्धि हो रही है।इससे प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana- PMUY) की सफलता पर प्रश्न उठने लगे हैं। गौरतलब है कि यह योजना सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
रियायती एल.पी.जी. के मूल्य में वृद्धि
- सब्सिडी वाली एल.पी.जी. की कीमतों में सिर्फ वित्त वर्ष 2020-21 में 50% की वृद्धि हुई है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार, विगत सात वर्षों में एल.पी.जी. सिलेंडर की कीमतें दोगुनी हो गई हैं,इससे सरकार की फ्लैगशिप योजना- ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’के परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
- वर्ष 2016 सेमहिलाओं को राहत देने और इनडोर वायु प्रदूषण कम करने के उद्देश्य से इस योजना के अंतर्गत 80 मिलियन निर्धन परिवारों को एल.पी.जी. कनेक्शन प्रदान किये गए हैं।
- ₹1,600 की ‘अग्रिम कनेक्शन सब्सिडी’ प्रदान करते हुएपी.एम.यू.वाई. ने 85% से अधिक घरों तक एल.पी.जी. कवरेज में मदद की है, जबकि वर्ष 2011 में एक-तिहाई से कम भारतीय परिवार रसोई गैस का उपयोग करते थे।
चुनौतियाँ
- पी.एम.यू.वाई.पर विभिन्न आकलन के निष्कर्षों के अनुसार,यद्यपि एल.पी.जी.की पहुँच में वृद्धि हुई है, परंतु कई नए लाभार्थी इसका निरंतर उपभोग नहीं कर रहे हैं।
- ‘ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद’ (Council on Energy, Environment and Water-CEEW) के प्राथमिक सर्वेक्षण के अनुसार, औसत आधार पर पी.एम.यू.वाई.के लाभार्थियों ने लंबे समय से नियमित उपभोग की तुलना में हाल के समय में लगभग आधे एल.पी.जी. का उपभोग किया है।
- गरीब परिवारों में एल.पी.जी. के कम उपभोग के दो मुख्य कारण हैं। पहला, सब्सिडी के बावजूद एल.पी.जी. की प्रभावी कीमतें इन परिवारों के लिये किफायती व उपयुक्त नहीं हैं।दूसरा, अधिकतर ग्रामीण उपभोक्ताओं की बायोमास (जैवभार) तक पहुँच और उपलब्धता आसान है, जिस कारण इसे एल.पी.जी. से विस्थापित करना मुश्किल हो गया है।
- बायोमास का उपयोग इनडोर वायु प्रदूषण के अतिरिक्त,राष्ट्रीय स्तर पर पी.एम.5 में 30% तक योगदान देता है, जो परिवहन, फसल अपशिष्ट या कोयला दहन के योगदान से अधिक है।
मूल्य वृद्धि का प्रभाव
- सब्सिडी वाली एल.पी.जी. की कीमतों में हालिया वृद्धि ने निर्धन लोगों के लिये इसके उपयोग को मुश्किल बना दिया है। अपनी खपत के 50% से अधिक आयात करने वाला भारत आयातित एल.पी.जी. मूल्य के आधार पर ही घरेलू एल.पी.जी. की कीमतें निर्धारित करता है।
- कोविड 19 महामारी की शुरुआत के साथ वैश्विक रूप से एल.पी.जी. की कीमतों में गिरावट आने पर भी ‘रिफाइनरी के मार्जिन’ और ‘सरकारी वित्त में योगदान’ के कारण सब्सिडी वाले एल.पी.जी.की कीमतें बढ़ती रहीं।
- अब,जबकि एल.पी.जी. की कीमतों में विश्व स्तर पर वृद्धि देखी जा रही है तो वित्त वर्ष-2022 में उज्जवला 2.0 के तहत 1 करोड़ नए कनेक्शन प्रदान करने के प्रस्ताव के साथ पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस वित्त वर्ष में एल.पी.जी. सब्सिडी के बजट में 50% की कमी अच्छा संकेत नहीं है।
- सरकार द्वारा सब्सिडी वाले एल.पी.जी.के मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है। हाल के वर्षों में, एल.पी.जी. की मूल्य संरचना और सब्सिडी के बारे में जानकारी प्राप्त करना आम लोगों के लिये अधिक कठिन हो गया है।
उपाय
- केंद्र सरकार का दृष्टिकोण सब्सिडी के बेहतर लक्ष्यीकरण द्वारा एल.पी.जी. सब्सिडी और इसकी खपत के बीच संतुलन बनाने वाला होना चाहिये।इसके लिये लंबे समय से रियायती एल.पी.जी. का प्रयोग करने वाले उच्च व मध्य-उच्च वर्ग के परिवारों की सब्सिडी में कटौती की जा सकती है।
- एक अन्य दृष्टिकोण उपभोक्ताओं के मौजूदा एल.पी.जी.खपत पैटर्न पर भरोसा करना है।स्वास्थ्य लाभ को बनाए रखने के लियेसमय के साथ कम खपत या एल.पी.जी. की खपत में गिरावट वाले परिवारों को प्रति सिलेंडर अधिक सब्सिडी प्रदान की जा सकती है।
- इसके अतिरिक्त,सब्सिडी का स्तर पिछले वर्ष की खपत के अनुसार भिन्न-भिन्न स्लैब के अंतर्गत परिवर्तनशील किया जा सकता है। साथ ही, कई एल.पी.जी. कनेक्शन वाले घरों के साथ-साथ सब्सिडी के रिसाव को रोकने के प्रयासों में और तेज़ी लाई जानी चाहिये। साथ ही, चूल्हे एवं रिफिल की लागत के लिये ई.एम.आई. की सुविधा भी एक अच्छा विकल्प है।
- महामारी के बाद निर्धन लोगों में एल.पी.जी. के सतत्उपयोग को बनाए रखने के लिये आर्थिक सब्सिडी, महिलाओं के समय कीबचत करनेऔर सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ को कम करने के लिये एक सामाजिक निवेश है।यह सामाजिक निवेश आने वाले वर्षों में एक स्वस्थ और उत्पादक आबादी के माध्यम से देश की संवृद्धि में सहायक होगा।