(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय)
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी संकट के समय में अर्थव्यवस्था से सम्बंधित निरंतर नकारात्मक आँकड़ों के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में अब तक की ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 29 मई 2020 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 3.43 बिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ 493.48 बिलियन डॉलर (लगभग 37 लाख करोड़ रुपए ) हो गया।
विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves-Forex)
विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियाँ, स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एस.डी.आर.) एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) की भंडार अवस्थितियाँ (Reserve Tranche) शामिल हैं। इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इसे आरक्षित निधियों का भंडार भी कहा जाता है।
विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDR)
- स्वर्ण और डॉलर में अत्यधिक अस्थिरता के चलते अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) द्वारा वर्ष 1969 में एस.डी.आर. का निर्माण किया गया।
- यह कृत्रिम तौर पर तैयार की गई एक विशेष प्रकार की आरक्षित मुद्रा है, जिसका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरक मुद्रा के रूप में तरलता में वृद्धि हेतु किया जाता है।
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29 मई, 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति
विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियाँ (F.S.A.): 455.208 बिलियन डॉलर
आरक्षित स्वर्ण: 32.682 बिलियन डॉलर
SDR: 1.432 बिलियन डॉलर
आई.एम.एफ. की भंडार अवस्थितियाँ: 4.158 बिलियन डॉलर
विदेशी मुद्रा भंडार का महत्त्व
- आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार मौद्रिक नीति के निर्माण तथा नियंत्रण में सहायता के साथ-साथ विनिमय दर के प्रबंधन में भी मदद करता है।
- यह वैश्विक बाज़ार में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न संकट एवं अस्थिरता के समय मुद्रा की तरलता को नियंत्रित करने के साथ ही स्थिरता प्रदान करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण
- भारत सहित विश्व के अधिकतर हिस्सों में लॉकडाउन के कारण कच्चे तेल की माँग में कमी के चलते मूल्यों में भारी गिरावट आई है। इसलिये भारत के तेल आयात के बिल (Oil Import Bill) में अत्यधिक कमी आई है, जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा में अत्यधिक बचत हुई है। ज्ञात हो कि भारत के सम्पूर्ण आयात में कच्चे तेल का सर्वाधिक हिस्सा है।
- भारतीय स्टॉक बाज़ार में एफ.पी.आई. और एफ.डी.आई. में निवेश बढ़ने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है।
- भारत से बाहर जाने वाले प्रेषण (रेमिटेंस) तथा विदेशी यात्राओं में कमी के कारण भी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा में बचत हुई है, जिसने विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि में सहायता प्रदान की है।
बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार का महत्त्व
- कोविड-19 महामारी संकट के समय में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, भारत सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक को आंतरिक तथा बाहरी वित्तीय समस्याओं से निपटने में सहायता प्रदान करेगा।
- वैश्विक संकट के समय में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होना देश के लिये आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिसकी सहायता से भारत आगामी एक वर्ष तक के आयातों का भुगतान कर सकता है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए को मज़बूत होने में मदद मिलती है। जिससे घरेलू मुद्रा में स्थिरता आती है।
- विदेशी मुद्रा भंडार की मज़बूत स्थिति बाज़ार तथा निवेशकों में विश्वास पैदा करती है जिससे घरेलू एवं विदेशी निवेशक अधिक निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं।
- आरक्षित निधियों को पर्याप्त स्तर पर बनाये रखने से देश में राष्ट्रीय आपदा एवं आपातकाल से निपटने तथा इनके आर्थिक दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता मिलती है।
विदेशी मुद्रा भंडार का प्रावधान
- आर.बी.आई. अधिनियम,1934 विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियों, स्वर्ण के आरक्षण, मुद्राओं के व्यापक मानदंडों, उपकरणों, जारीकर्ताओं और प्रतिपक्षों (Counterparties) के सम्बंध में महत्त्वपूर्ण कानूनी प्रावधान करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- 29 मई, 2020 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 493 बिलियन डॉलर के स्तर पर था। भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में पाँचवे स्थान पर है।
- चीन के पास दुनिया का सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार (3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर का हिस्सा सबसे अधिक है। इसका कारण, वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर में सबसे अधिक व्यापार होना है। साथ ही, अमेरिकी डॉलर अन्य मुद्राओं की तुलना में अधिक स्थिर और विश्वसनीय मुद्रा है।
आगे की राह
- विदेशी मुद्रा भंडार अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य मीटर के रूप में कार्य करता है। जिस देश के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति मज़बूत होती है वह घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर सकता है।
- भारत विदेशी मुद्रा भंडार की कमज़ोरी की भयावहता को वर्ष 1990 के भुगतान संतुलन संकट (B.O.P. Crisis) के रूप में देख चुका है। विदेशी मुद्रा भंडार की ख़राब स्थिति न केवल घरेलू व बाहरी वित्तीय चुनौतियों को बढ़ा देती है बल्कि देश की आर्थिक सम्प्रभुता को भी खतरे में डाल सकता है। इसलिये विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्त स्तर होना अति आवश्यक है।