संदर्भ
भगवान बुद्ध के चार पवित्र अवशेषों को मंगोलियाई बौद्ध पूर्णिमा उत्सव के अवसर पर मंगोलिया भेजा गया है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की अध्यक्षता में 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल इन अवशेषों को 11 दिवसीय प्रदर्शनी के लिये भारत से मंगोलिया लेकर गया।
प्रमुख बिंदु
- इनको उलानबटार के गंदन मठ परिसर के बात्सागान मंदिर में प्रदर्शित किया गया। इससे पूर्व अंतिम बार इन अवशेषों को वर्ष 2012 में श्रीलंका में प्रदर्शित किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि गंदन मठ में मुख्य बुद्ध प्रतिमा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उपहार में दी गई थी।
पवित्र अवशेष
कपिलवस्तु अवशेष
- ये अवशेष वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए 22 बुद्ध अवशेषों में से हैं। इन्हें 'कपिलवस्तु अवशेष' के रूप में जाना जाता है, जिन्हें वर्ष 1898 में बिहार से खोजा गया था।
- बौद्ध मान्यताओं के अनुसार 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ। कुशीनगर के मल्लों ने समारोहपूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया।
चितावशेष एवं स्तूप
- उनके अंतिम संस्कार के चितावशेषों को मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, कुशीनगर के मल्ल, अल्लकप्पा के बुली, पावा के मल्ल, रामग्राम के कोलिय और वेठदीप के ब्राह्मण के मध्य आठ भागों में विभाजित किया गया।
- इसका उद्देश्य पवित्र अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करना था। इन आठ स्तूपों के अतिरिक्त दो अन्य स्तूप- पहला, कलश (जिसमें उनके अवशेष एकत्र किये गए थे) के ऊपर और दूसरा, चिता के ऊपर निर्मित किये गए।
- बुद्ध के शारीरिक अवशेषों पर बने स्तूप वर्तमान में पाए जाने वाले सबसे पुराने बौद्ध धार्मिक स्थल हैं।
अशोक एवं स्तूप
- ऐसा कहा जाता है कि बौद्ध धर्म का प्रमुख अनुयायी होने के कारण अशोक (272-232 ई.पू.) ने इन आठ स्तूपों में से सात का पता लगाया और उनसे अवशेषों को एकत्र किया।
- साथ ही, बौद्ध धर्म एवं स्तूप परंपरा को लोकप्रिय बनाने के लिये अशोक द्वारा निर्मित 84,000 स्तूपों के भीतर इन अवशेषों को स्थापित किया गया।
राजकीय अतिथि
- मंगोलिया यात्रा के दौरान इन अवशेषों को एक ‘राजकीय अतिथि’ का दर्जा दिया जाएगा। साथ ही, इन्हें सी-17 ग्लोबमास्टर वायुयान द्वारा वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए जलवायु वातावरण में ही ले जाया जाएगा।
- वर्ष 2015 में पवित्र अवशेषों को पुरावशेष और कला खजाने की 'एए' श्रेणी के तहत रखा गया है, जिन्हें उनकी नाजुक प्रकृति को देखते हुए देश से बाहर ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है और इस कदम से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक व आध्यात्मिक संबंध और मजबूत होंगे।