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समलैंगिकता और भारतीय परिदृश्य

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, संवैधानिक संस्था और संवैधानिक पदों से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य, सरकारी नीतियों, जनसँख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

  • हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष समलैंगिक विवाह से संबंधित मामला सामने आया है। इसमें केंद्र सरकार की तरफ से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल ने कोविड-19 की दूसरी लहर की प्रभावकारिता के आधार पर इस मामले को स्थगित करने का अनुरोध किया है।
  • यह एक चिंता का विषय है कि केंद्र सरकार एक संवैधानिक न्यायालय से संपर्क करने वाले व्यक्तियों के एक वर्ग को नागरिक अधिकार प्रदान करने के मामले में शीघ्रता नहीं दर्शाती है।

क्या है समलैंगिकता ?

  • किसी व्यक्ति का समान लिंग के व्यक्तियों के प्रति रोमांटिक, यौन रुचि और भावनात्मक रूप से आकर्षित होना समलैंगिकता कहलाता है।
  • समलैंगिक समुदाय विश्व के सबसे वंचित, वर्जित और उत्पीड़ित समुदायों में से एक है।
  • इस समुदाय के लोगों को विश्व में समान अधिकार प्रदान करने तथा उनके आंदोलन को समर्थन देने के लिये ‘इंद्रधनुष के समान झंडे’ और ‘गौरव मार्च’ का प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग किया जाता है।

समलैंगिकता से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

दक्षिण अफ्रीका

  • वर्ष 2005 में दक्षिण अफ्रीका के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में सर्वसम्मति से माना कि विवाह की सामान्य कानूनी परिभाषा अर्थात ‘एक महिला के साथ एक पुरुष का मिलन’ दक्षिण अफ्रीका के संविधान के साथ असंगत है।
  • नतीजतन, न्यायालय द्वारा दक्षिण अफ्रीका की संसद को वर्ष 1961 के विवाह अधिनियम में संशोधन करने के लिये 12 महीने का समय दिया गया। साथ ही, न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि यदि समय-सीमा के अंदर संसद संशोधन करने में विफल रहती है, तो न्यायालय के निर्णय के आधार पर विवाह अधिनियम में ‘पति या पत्नी’ शब्द को ‘जीवनसाथी’ शब्द के साथ संशोधित किया जाएगा।
  • फैसले के परिणामस्वरूप ‘सिविल यूनियन अधिनियम, 2006 अधिनियमित किया गया। इससे विवाह के माध्यम से 18 वर्ष से अधिक आयु के दो व्यक्तियों से स्वैच्छिक मिलन को सक्षम बनाया गया था।

ऑस्ट्रेलिया

  • वर्ष 2007 में ऑस्ट्रेलिया उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश (माननीय माइकल किर्बी) ने समलैंगिक समुदाय के नागरिक अधिकारों में सुधार के तहत ऑस्ट्रेलिया के अटॉर्नी-जनरल को पत्र लिखकर ‘न्यायिक पेंशन योजना’ को उनके समलैंगिक पार्टनर तक विस्तारित करने के लिये कहा गया था, जो उस समय 38 वर्ष का था।
  • संघीय सरकार के आरंभिक विरोध के बाद समलैंगिक संबंध (राष्ट्रमंडल कानूनों में समान उपचार - सामान्य कानून सुधार) अधिनियम, 2008 को अन्य बातों के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा, रोज़गार और कराधान के मामलों में समलैंगिक जोड़ों को समान अधिकार प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया।

इंग्लैंड और वेल्स

  • वर्ष 2013 के विवाह (समलैंगिक जोड़े) अधिनियम ने समलैंगिक जोड़ों को नागरिक समारोहों या धार्मिक संस्कारों के साथ विवाह करने में सक्षम बनाया।

संयुक्त राज्य अमेरिका

  • वर्ष 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया कि समान-लिंग वाले जोड़ों को शादी करने का मौलिक अधिकार है।
  • ‘ओबेरगेफेल बनाम होजेस’ मामले ने अमेरिकी स्थिति में एक ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत की और ‘समलैंगिक विवाहों’ को ‘विपरीत-लिंग विवाहों’ के समान मान्यता और व्यवहार करने की अनुमति दी।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय न्यायालय ने गे (Gays) और लेस्बियन (Lesbians) लोगों का अनादर करने और उनके अधीन रहने के लिये समलैंगिक जोड़ों को विवाह के अधिकारों से वंचित करने को "गंभीर और निरंतर नुकसान" माना।

भारत में समलैंगिकता परिदृश्य

  • भारत में विवाह, पर्सनल लॉ जैसे ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’, ‘भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872’, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937’ आदि के तहत संपन्न होते हैं। हालाँकि, वर्तमान में भारत में समलैंगिक और समलैंगिक विवाह को स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी गई है।
  • अरुण कुमार और श्रीजा बनाम पंजीकरण महानिरीक्षक और अन्य के मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने एक लाभकारी और उद्देश्यपूर्ण व्याख्या की। इसमें कहा गया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत 'दुल्हन' शब्द में ‘ट्रांसवुमन और इंटरसेक्स’ व्यक्ति की पहचान महिलाओं के रूप में शामिल है। इसलिये, हिंदू धर्म को मानने वाले पुरुष और ट्रांसवुमन के बीच हुए विवाह को अधिनियम के तहत वैध विवाह माना जाता है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में शफीन जहान बनाम अशोकन के.एम. और अन्य (हदिया केस) में निर्धारित सिद्धांतों पर आधारित था। इसमें कहा गया था कि ‘एक साथी को चुनने और शादी करने का अधिकार’ संवैधानिक रूप से गारंटीकृत स्वतंत्रता है।
  • ऐसा करके सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवाह की अंतरंगता गोपनीयता के एक मुख्य क्षेत्र के भीतर होती है, जो कि उल्लंघन योग्य है और हमारे भागीदारों की पसंद को निर्धारित करने में समाज की कोई भूमिका नहीं है।
  • इन मामलों की एक-साथ व्याख्या से स्पष्ट होता है कि समान-लिंग और समलैंगिक विवाह के लिये किसी भी कानूनी या वैधानिक प्रतिबंध को अनिवार्य रूप से असंवैधानिक और विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन माना जाना चाहिये।

विवाह पद्धति में विस्तार की आवश्यकता

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में संशोधन के माध्यम से तमिलनाडु (और बाद में, पुडुचेरी में) में ‘स्वाभिमान विवाहों’ को वैध कर दिया गया था।
  • स्वाभिमान विवाह, आमतौर पर उन लोगों के मध्य संपन्न होते हैं, जो द्रविड़ आंदोलन का हिस्सा होते हैं। इस प्रकार के विवाह में पुजारियों और धार्मिक प्रतीकों जैसे कि ‘अग्नि या सप्तपदी’ को समाप्त कर दिया गया है।
  • यद्यपि, स्वाभिमान विवाहों की पद्धति में केवल अंगूठियों या मालाओं के आदान-प्रदान या मंगलसूत्र बाँधने की आवश्यकता होती है।
  • स्वाभिमान विवाहों को अपनी छतरी के नीचे लाने के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में इस तरह के सुधार को विवाह संस्था के भीतर जाति-आधारित प्रथाओं को तोड़ने की दिशा में एक मज़बूत कदम के रूप में देखा जाता है।

आगे की राह

वर्तमान में LGBTQIA+ समुदाय की ज़रूरतों को समझते हुए कानून में अब सभी लिंग और यौन पहचानों को शामिल करने के लिये विवाह संस्था का विस्तार करना चाहिये।

निष्कर्ष

उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’ में इस्तेमाल किये गए शब्द के दायरे को प्रगतिशील तरीके से बढ़ाता है और LGBTQIA+ समुदाय के विवाह अधिकारों की फिर से कल्पना करने के लिये मंच तैयार करता है। विश्व के कम-से-कम 29 देशों ने समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान की है।

अन्य स्मरणीय तथ्य

उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय

  • भारतीय संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियों, प्रक्रियाओं आदि का उल्लेख है।
  • वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 34 (उच्चतम न्यायालय न्यायाधीशों की संख्या संशोधन अधिनियम, 2019) है, जिसमें भारत का मुख्य न्यायाधीश शामिल है।
  • भारतीय संविधान के भाग 6 में अनुच्छेद 214 से 231 तक उच्च न्यायालयों के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियाँ, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है।
  • वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं। इनमें से केवल तीन उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार एक से अधिक राज्यों तक है।
  • दिल्ली एक मात्र ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है जिसका स्वयं का उच्च न्यायालय है।

    भारत का महान्यायवादी

    • भारतीय संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 76 के अनुसार, राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्ह किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा, जो राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा।
    • महान्यायवादी संघ सरकार का अधिवक्ता एवं प्रथम विधि अधिकारी होता है।

    सॉलिसिटर जनरल

    • महान्यायवादी को सहायता प्रदान देने के लिये 2 सॉलिसिटर जनरल तथा अनेक सहायक सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति की जाती है।
    • सॉलिसिटर जनरल के पद का उल्लेख संविधान में नहीं है, बल्कि संसदीय विधि में उल्लिखित है और विधि मंत्रालय के द्वारा इन्हें नियुक्त किया जाता है।
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