हाल ही में ‘भारत में जल, वायु प्रदूषण और विशिष्ट/लक्जरी खपत के कार्बन फुटप्रिंट’ (‘Water, air pollution and carbon footprints of conspicuous/luxury consumption in India’) शीर्षक से एक अध्ययन में समृद्ध व्यक्तियों के पर्यावरणीय प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है, विशेषकर उन लोगों के जो बुनियादी जरूरतों से परे उपभोग में संलग्न हैं।
जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दे को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है और घरेलू पर्यावरणीय फुटप्रिंट के द्वारा इन मुद्दों का गहन आकलन किया जा सकता है।
क्या है पारिस्थितिक फुटप्रिंट (ecological footprint)
पारिस्थितिक फुटप्रिंट मापता है कि हम कितनी तेजी से संसाधनों का उपभोग करते हैं और अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, इसकी तुलना में प्रकृति कितनी तेजी से हमारे अपशिष्ट को अवशोषित कर सकती है और संसाधन उत्पन्न कर सकती है।
सरल शब्दों में, पारिस्थितिक फुटप्रिंट यह बताता है कि मनुष्य अपने आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर कितना दबाव डालता है।
पारिस्थितिक फुटप्रिंट की अवधारणा को पहली बार 1992 में विलियम रीस द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
भारत में घरेलू पर्यावरण\पारिस्थितिक फुटप्रिंट से संबंधित अध्ययन
यह अध्ययन विशेष रूप से भारत में विभिन्न आर्थिक वर्गों के घरों में विलासिता उपभोग विकल्पों से जुड़े CO2, जल और पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) फुटप्रिंट की जांच करता है।
विश्लेषण इन विलासिता उपभोग फुटप्रिंट की तुलना गैर-विलासिता उपभोग से जुड़े लोगों से करता है।
विलासिता उपभोग टोकरी में विभिन्न श्रेणियां शामिल हैं, जैसे- बाहर भोजन करना, छुट्टियां, फर्नीचर, सामाजिक कार्यक्रम आदि।
अध्ययन के निष्कर्ष
अध्ययन से पता चलता है कि जैसे-जैसे परिवार गरीब से अमीर आर्थिक वर्ग की ओर बढ़ते हैं, सभी तीन पारिस्थितिक फुटप्रिंट (CO2, जल और पार्टिकुलेट मैटर-PM2.5) बढ़ते हैं।
विशेष रूप से, 10% अमीर परिवारों के फुटप्रिंट पूरी आबादी के कुल औसत से लगभग दोगुने हैं।
अन्य की तुलना में उच्च आय वर्ग द्वारा वायु प्रदूषण फुटप्रिंट में 68% की उच्चतम वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत, जल फुटप्रिंट में वृद्धि सबसे कम 39% है, जबकि CO2 उत्सर्जन 55% है।
पारिस्थितिक फुटप्रिंट में योगदानकर्ता
पारिस्थितिक फुटप्रिंट में वृद्धि के लिए घर से बाहर भोजन/रेस्तरां को वरीयता देना एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
गौरतलब है कि, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (UNEP) की 2021 में प्रकाशित खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का 10% हिस्सा बर्बाद हुए भोजन के कारण होता है।
फलों और मेवों की खपत को जल फुटप्रिंट में वृद्धि के कारक के रूप में उजागर किया गया है।
व्यक्तिगत विलासिता की वस्तुएं, आभूषण और बाहर खाने-पीने जैसी विलासितापूर्ण उपभोग की वस्तुएं CO2 और वायु प्रदूषण के फुटप्रिंट में वृद्धि में योगदान करती हैं।
गरीब परिवारों की खपत जलाऊ लकड़ी जैसे ईंधन की उपस्थिति ने ऊर्जा संक्रमण के विपरीत प्रभावों को प्रदर्शित किया, जबकि बायोमास से एलपीजी में संक्रमण से प्रत्यक्ष फुटप्रिंट कम हो जाते हैं।
भारत में अमीर वर्ग का औसत प्रति व्यक्ति CO2 फुटप्रिंट, 6.7 टन प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है, जो 2010 के वैश्विक औसत 4.7 टन से अधिक है, जबकि पेरिस समझौते के 1.5°C का लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वार्षिक औसत 1.9 टन CO2eq/cap आवश्यक है।
हालांकि यह असमानता अभी भी अमेरिका या ब्रिटेन में औसत नागरिक के स्तर से नीचे है, लेकिन यह असमानता नीति निर्माताओं से तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
पारिस्थितिक फुटप्रिंट में सुधार के लिए सुझाव
पानी का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए तथा घर में छत पर वर्षा जल संचयन की प्रक्रिया अपनाना।
होटल और रेस्तरां में खाद्य सामग्री की बर्बादी को कम करना।
2012 में, जर्मन संघीय कृषि मंत्रालय ने "टू गुड फॉर द बिन" पहल शुरू की , जहां उपभोक्ता खाद्य पदार्थों को कब फेंकना है,के विषय में जानकारी दी जाती है।
'गुड टू गो' योजना जीरो वेस्ट स्कॉटलैंड द्वारा संचालित की गई थी जिसका उद्देश्य कचरे को कम करना है और दो साल के भीतर, 100 से अधिक रेस्तरां ने इस कार्यक्रम के द्वारा खाद्य कचरे को कम किया।
घरेलू उपकरणों के लिए ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए सौर छत पैनल स्थापित करना चाहिए। इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग और घर में एलईडी लाइटिंग का उपयोग।
सार्वजनिक परिवहन का उपयोग और छोटी दूरी के लिए पैदल या साइकिल या वाहन पूलिंग का उपयोग।
प्लास्टिक पैकेजिंग को कम करने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का प्रयोग।
अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह तथा इस्तेमाल करो और फेंक दो जैसी उपभोग संस्कृति से बचना। इसके बजाय मरम्मत-सुधार-उपयोग अभ्यास का विकल्प चुनना।
राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर सरकारों द्वारा अपशिष्ट, वायु और जल प्रदूषण को कम करके, तथा उच्च गुणवत्ता वाले आवासों का विकास।
व्यापक सामाजिक आकांक्षाओं पर कुलीन जीवन शैली के प्रभाव को देखते हुए, नीति निर्माताओं को स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप समृद्ध परिवारों के उपभोग स्तर को नीचे की ओर लाने के प्रयासों को प्राथमिकता।
सरकारों और व्यवसायों को 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए की गई प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने के लिए अब प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन भी सरकारों और वैश्विक समुदाय और शिक्षा से लेकर बुनियादी ढांचे तक विभिन्न क्षेत्रों के लिए कार्रवाई में सबसे आगे होना चाहिए।