(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : बुनियादी ढाँचा- ऊर्जा)
संदर्भ
हाल के दिनों में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि पिछली सरकारों ने देश की ऊर्जा आयात निर्भरता को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया होता तो मध्यम वर्ग पर इसका बोझ कम पड़ता। ऐसे में, इस तर्क की समीक्षा की दृष्टि से विगत और वर्तमान सरकार द्वारा किये गए सार्थक प्रयासों की चर्चा आवश्यक है।
क्या दृष्टिकोण रहा विगत सरकारों का?
- यू.पी.ए. सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान यात्री वाहनों के लिये ईंधन दक्षता मानकों को तैयार किया गया, जो वर्तमान में प्रभावी है। साथ ही, ‘राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना’ (NEMMP) का भी गठन किया गया। हालाँकि, ये दोनों प्रयास पर्याप्त नहीं रहे।
- यात्री कारों के लिये भारत के वर्ष 2022 के ईंधन दक्षता मानक यूरोपीय संघ के मानकों की तुलना में लगभग 20% कम कठोर हैं।
- ‘राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना’ मुख्यत: हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों पर केंद्रित थी, इसलिये इसके तहत अधिकांश प्रोत्साहन राशि का प्रयोग इलेक्ट्रिक वाहनों की बजाय हल्के हाइब्रिड वाहनों के लिये सब्सिडी के रूप में किया गया।
क्या योजना है वर्तमान सरकार की?
- भारी वाहन अब ईंधन दक्षता मानकों के अधीन हैं, जो देश में प्रयोग में लाए जाने वाले डीज़ल का लगभग 60% उपभोग करते हैं। साथ ही, जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 के तहत आयतन के अनुसार पेट्रोल में बायोएथेनॉल की मात्रा लगभग 8% तक बढ़ गई है।
- सरकार ने प्राकृतिक गैस सहित परिवहन क्षेत्र में कई फ्यूल पाथवेज़ (Fuel Pathways) को प्रोत्साहित किया है। फ्यूल पाथवेज़ तीन घटकों का एक विशिष्ट संयोजन है, जिसमें फीडस्टॉक, उत्पादन प्रक्रिया और ईंधन का प्रकार शामिल हैं।
- साथ ही, ‘इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण योजना’ (FAME-II) काफी हद तक इलेक्ट्रिक वाहनों पर ही केंद्रित है। सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर उन्मुखता बढ़ाने के लिये कई अतिरिक्त राजकोषीय एवं गैर-राजकोषीय प्रोत्साहन भी प्रदान किये हैं।
कैसे कम हो पेट्रोलियम पर निर्भरता?
- सर्वप्रथम सरकार को एक ‘शून्य-उत्सर्जन वाहन’ (ZEV) कार्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता है, इसके अंतर्गत निर्माताओं के लिये एक निश्चित संख्या में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन अनिवार्य किया जाए। इस तरह के कार्यक्रम चीन, अमेरिका, कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया और दक्षिण कोरिया में प्रभावी हैं।
- सरकार को नई यात्री कारों और वाणिज्यिक वाहनों के लिये ईंधन दक्षता आवश्यकताओं को भी अनियार्य करना चाहिये। भारत में दोपहिया वाहन किसी भी ‘ईंधन दक्षता मानक’ के अधीन नहीं हैं। ध्यातव्य है कि ये वाहन कुल पेट्रोल उपभोग की लगभग दो-तिहाई खपत करते हैं।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन परिषद’ (ICCT) के विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2030 तक नए दोपहिया वाहनों द्वारा ईंधन की खपत में 50% कमी की अनिवार्यता वाले मानक से न सिर्फ इंजन (ICE) की दक्षता में सुधार होगा, बल्कि इससे देश में लगभग 60% नए दोपहिया वाहनों का विद्युत आधारित संचलना भी सुनिश्चित होगा।
- साथ ही, अधिक ईंधन दक्ष इंजन (ICE) वाले वाहनों से उपभोक्ताओं की आर्थिक बचत भी होगी क्योंकि ये ऊर्जा की कम खपत करते हैं और पेट्रोल व डीज़ल की तुलना में बिजली सस्ती भी है।
- ऊर्जा आपूर्ति में विस्तार और विविधता लाना अच्छा प्रयास है, किंतु भारत को ऊर्जा आयात निर्भरता कम करने के लिये पहले पेट्रोलियम उत्पादों की माँग का प्रबंधन करने की आवश्यकता है।
अन्य पूरक नीतियाँ भी हैं
- फेम योजना दो और तीन पहिया वाहनों, टैक्सियों और बसों पर केंद्रित है। इसे न सिर्फ सभी यात्री कारों और वाणिज्यिक वाहनों बल्कि कृषि कार्य में संलग्न ट्रैक्टर्स तक भी विस्तारित किया जाना चाहिये।
- सभी प्रकार के वाहनों के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करना और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाना अन्य पूरक नीतियाँ हैं। साथ ही, सभी यात्री वाहनों के लिये जी.एस.टी. दरों को उनके ईंधन दक्षता स्तर के समानुपाती किया जाना भी एक अच्छा उपाय है, जबकि वर्तमान में जी.एस.टी. दरें वाहन की लंबाई और इंजन के आकार पर निर्भर करती हैं।