सन्दर्भ
27 मार्च, 2024 को नेचर जर्नल में प्रकाशित एक पेपर से पता चलता है कि मानव गतिविधियो के कारण पृथ्वी का घूर्णन धीमा हो गया है। यह मानव-प्रेरित ग्लोबल वार्मिंग और उसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ के पिघलने और भूमध्य रेखा की ओर पानी के बढ़ने के कारण हो सकता है।
पृथ्वी का घूर्णन
- पृथ्वी का अपने अक्ष के सापेक्ष पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लट्टू की भांति घूमना ही 'पृथ्वी का घूर्णन' कहलाता है। पृथ्वी का घूर्णन "23.45" डिग्री के झुकाव के साथ पूरा होता है। यह सौर समय भिन्नता का प्रतिनिधित्व करता है और इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की कक्षा गैर-वृत्ताकार होती है । इस घूर्णन के साथ, पृथ्वी भी सूर्य के चारों ओर घूमती है और इसे एक चक्कर पूरा करने में 365 दिन लगते हैं।
- हम पृथ्वी के आकार को एक पूर्ण गोले के रूप में कल्पना करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है; यह चपटा गोलाकार है, जिसमें ऊँचे पहाड़ और गहरी समुद्री खाइयाँ हैं जो द्रव्यमान को असमान रूप से वितरित करती हैं और ग्रह को एक ढेलेदार आलू जैसा बनाती हैं।
- पृथ्वी ध्रुवों की तुलना में भूमध्य रेखा पर अधिक तेजी से घूमती है। पृथ्वी भूमध्य रेखा पर चौड़ी है, इसलिए 24 घंटे की अवधि में एक चक्कर लगाने के लिए, भूमध्यरेखीय क्षेत्र लगभग 1,600 किलोमीटर प्रति घंटे की दौड़ लगाते हैं।
पृथ्वी के समय में परिवर्तन
- लाखों वर्षों में चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति कम हो जाती है।
- पृथ्वी पहले बहुत तेजी से घूम रही थी। तलछटों के विश्लेषण से पता चला कि 1.4 अरब साल पहले पृथ्वी अपनी धुरी के चारों ओर एक पूर्ण चक्कर केवल 19 घंटों में पूरा करती थी, जबकि आज इसमें 24 घंटे लगते हैं।
- लगभग 370 मिलियन वर्ष पहले भी एक दिन केवल 22 घंटे का होता था। इस धीमी गति को ध्यान में रखते हुए समन्वित सार्वभौमिक समय में समय-समय पर एक लीप सेकंड जोड़ा जाता है ।
- पिछली बार लीप सेकंड 31 दिसंबर 2016 को जोड़ा गया था।
- 1970 के बाद से पृथ्वी के बाहरी कोर में तरल पदार्थ की कुछ हलचल के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ रही थी। गति में यह वृद्धि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति की धीमी गति का स्थान ले रही थी।
- इसका हिसाब देने के लिए, यह गणना की गई कि 2025 या 2026 में एक लीप सेकंड घटाया जाना था।
- लेकिन मानव-प्रेरित धीमी गति ने इस घटाव को स्थगित कर दिया है। नेचर के लेख से पता चला है कि अब एक लीप सेकंड बाद में शायद 2028 या 2029 में घटाना होगा।
मानवीय गतिविधियों का प्रभाव
- 2016 के एक अध्ययन से पता चला है कि जल द्रव्यमान वितरण में जलवायु-प्रेरित परिवर्तन पृथ्वी के ध्रुवों के खिसकने का कारण बन सकते हैं।
- ध्रुव से भूमध्य रेखा की ओर पानी की आवाजाही के कारण पृथ्वी थोड़ी कम गोलाकार और अधिक चपटी हो गयी है। परिणामस्वरूप, पृथ्वी का जड़त्व आघूर्ण बढ़ गया है। यदि जड़ता का बल बढ़ता है तो पृथ्वी का कोणीय वेग, यानी वह कितनी तेजी से घूम रही है, कम हो जाएगा।
- बड़े भूकंप, दिन की लंबाई को बदल सकते हैं, हालांकि आम तौर पर छोटी मात्रा में ही ऐसा होता है। उदाहरण के लिए, माना जाता है कि जापान में 2011 में 8.9 की तीव्रता वाले महान तोहोकू भूकंप ने पृथ्वी के घूर्णन को अपेक्षाकृत छोटे 1.8 माइक्रोसेकंड तक बढ़ा दिया था।
- हालिया दिनों में, सटीक खगोलीय मापों के साथ परमाणु घड़ियों ने खुलासा किया है कि दिन की लंबाई अचानक लंबी हो रही है, और वैज्ञानिक नहीं जानते कि ऐसा क्यों हो रहा हैं।
- इसका न केवल हमारे टाइमकीपिंग पर, बल्कि जीपीएस और हमारे आधुनिक जीवन को नियंत्रित करने वाली अन्य तकनीकों जैसी चीजों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- एक व्यापक नए अध्ययन के अनुसार, पीने और सिंचाई के लिए भूजल के बड़े पैमाने पर निष्कासन ने पृथ्वी पर पानी के वितरण को इतना बदल दिया है कि ग्रह का झुकाव बदल गया है । यह खोज उस नाटकीय प्रभाव को रेखांकित करती है जो मानव गतिविधि का ग्रह पर हो सकता है।
- मनुष्यों द्वारा जलभृतों से पानी निकालने और महासागरों में इसके पुनर्वितरण के परिणामस्वरूप पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव का बहाव हुआ, क्या इसका पृथ्वी की गति पर भी प्रभाव पड़ेगा, इ सके बारे में अभी शोध कार्य जारी है।
निष्कर्ष
- वर्तमान में प्रमुख चिंता यह है कि मानवीय गतिविधियाँ हमारे ग्रह की गति में महत्वपूर्ण परिवर्तनों को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। इसके लिए अभी और अधिक खोजबीन एवं शोध की आवश्यकता है, जिससे समय रहते किसी बड़े संकट की संभावनाओं को दूर किया जा सके। यह केवल मानवों के लिए ही नहीं अपितु समस्त जीवों एवं हमारी धरती के जीवन के भविष्य के लिए आवश्यक है।