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ह्यूमन चैलेंज ट्रायल: जीवन रक्षा यानैतिकता

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन– अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र–4 :नैतिकता के आयाम)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दुनिया के कई देशों के लोग स्वेच्छा से एक विवादास्पद परीक्षण विधि‘ ह्यूमन चैलेंज ट्रायल’में भाग लेने के लिये तैयार हो गए हैं। कोरोना वायरस का टीका जल्द निर्मित करने के लिये इस विधि को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

ह्यूमन चैलेंज ट्रायल और इसके महत्त्व

इस विधि में स्वयंसेवकों (वॉलंटियर्स) को जानबूझकर परीक्षण वैक्सीन लगाने के पश्चात लक्षित वायरस से संक्रमित किया जाता है,फिर वायरस के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस प्रकार के परीक्षणों से वैक्सीन विकसित करने में लगने वाले समय की बचत होती है।इसमें प्रतिभागियों परबाहरी परिस्थितियों में संक्रमण के प्रभाव की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है, साथ ही इसमें पारम्परिक क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण के परीक्षण हेतु लाइसेंस प्रक्रिया में लगने वाले समय को भी कम किया जा सकता है,ताकि प्रभावकारी टीके का निर्माण तीव्रता से साथ किया जा सके।

ध्यातव्य है कि ह्यूमन चैलेंज ट्रायल का प्रयोग मलेरिया, डेंगू, इंफ़्लुएंज़ा और हैजा जैसे रोगों के वैक्सीन विकसित करने में किया जाता है।

नैदानिक परीक्षण / क्लीनिकल ट्रायल (Clinical Trial)

क्लीनिकल ट्रायल वैक्सीन निर्माण हेतु एक प्रकार का शोध है। इसमें नए परीक्षणों और उपचारों का अध्ययन किये जाने के साथ ही परीक्षण किये जा रहे टीके का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन भी किया जाता है।लोग स्वेच्छा से दवाओं, कोशिकाओं और अन्य बायोलॉजिकल उत्पादों, शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं, रेडियोलॉजिकल प्रक्रियाओं, चिकित्सकीय उपकरणों, व्यवहार सम्बंधी उपचार के परीक्षणों में भाग लेते हैं।

आमतौर पर टीके के परीक्षण और विकास में कई वर्षों का समय लगता है। अधिकांश विनियामक प्रक्रियाओं के अंतर्गत टीके का विकास क्लीनिकल परीक्षण के चार चरणों के माध्यम से होता है।

पहले चरण में, लोगों के एक छोटे समूह पर नए टीका का परीक्षण किया जाता है।अगर पहले चरण में परीक्षण सफल रहता है तो दूसरे चरण में लोगों के एक बड़े समूह पर टीके के प्रतिकूल प्रभावों की निगरानी की जाती है। गत परीक्षणों के सफल होने पर तीसरे चरण में जनसंख्या के एक व्यापक समूह या देशों में परीक्षण किया जाता है। पहले परीक्षण में भाग लेने वाले देशों की औपचारिक स्वीकृति के पश्चात चौथे चरण में जनसंख्या के एक व्यापक समूह पर लम्बे समय तक परीक्षण किया जाता है।

ह्यूमन चैलेंज ट्रायल की चुनौतियाँ

  • यह परीक्षण नैतिक रूप से उचित नहीं है, क्योंकि इसमें किसी रोग के लक्षणों तथा पूर्ण प्रभाव के सामने आए बिना ही वैक्सीन का परीक्षण शुरू कर दिया जाता है, जिससे इस वैक्सीन के निकट भविष्य में असफल होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • इस परीक्षण में वैक्सीन के दुष्प्रभावों (Side Effects) के मूल्यांकन हेतु पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है,जिससे जल्दबाज़ी में तैयार किया गया वैक्सीन लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • इसमें वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया को सफल बनाने हेतु गरीब अफ्रीकी देशों के लोगों पर आर्थिक दबाव बनाकर परीक्षण के लिये तैयार किया जाता है। यह प्रयास उनके स्वास्थ्य के लिये खतरनाक होने के साथ-साथ मानवाधिकारों के विरुद्ध भी है।

आगे की राह

  • वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने वाले लोगों की पूर्ण सहमति ज़रूरी है । उन पर किसी प्रकार का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दबाव नहीं बनाना चाहिये।
  • सभी मानव परीक्षणों में मानव के स्वास्थ्य सम्बंधी जोखिमों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिये, जिससे गरीब तथा वंचित लोगों के शोषण की रोकथाम कर उनके मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके।

निष्कर्ष

वर्तमान में कोविड-19 का कोई औपचारिक उपचार उपलब्ध नहीं है।इस संकटपूर्ण स्थिति में ह्यूमन चैलेंज ट्रायल वैक्सीन के तीव्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।लेकिन अनुसंधान में सार्वजनिक विश्वास तथा नैतिकता बनाए रखने के लिये मानव परीक्षण में शामिल होने वाले स्वयंसेवकों को इससे सम्बंधित जोखिमों की स्पष्ट तथा पूर्ण जानकारी प्रदान की जानी चाहिये।

प्री-फैक्ट्स :

WHO के अनुसार, नैदानिक परीक्षण के चार चरण (Four Phases) निर्धारित किये गए हैं।

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