(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास, अंतरिक्ष)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन’ (DRDO) ने ‘हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन वाहन’ (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle-HSTDV) का सफल परीक्षण किया।
पृष्ठभूमि
डी.आर.डी.ओ. द्वारा यह परीक्षण ओडिशा के व्हीलर द्वीप (डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वीप) स्थित प्रक्षेपण केंद्र से किया गया। इस वाहन में मानवरहित स्क्रैमजेट प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया गया है, जिसकी गति ध्वनि की गति से लगभग छह गुना तेज़ है। इस वाहन के प्रदर्शन के साथ ही भारत हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पूर्व अमेरिका, रूस और चीन इस तकनीक को प्राप्त कर चुके हैं।
क्रिया विधि
- HSTDV क्रूज़ वाहन एक ठोस रॉकेट मोटर पर लगाया गया है, जो इसे आवश्यक ऊँचाई तक ले जाता है।
- एक बार जब यह कुछ मैक संख्या की गति प्राप्त कर लेता है, तो क्रूज़ वाहन को लॉन्च वाहन से अलग कर दिया जाता है। उसके बाद स्क्रैमजेट इंजन स्वचालित रूप से प्रज्वलित होता है।
- वर्तमान परीक्षण में ईंधन के रूप में हाइपरसोनिक दहन की प्रक्रिया लगातार जारी रही और क्रूज़ वाहन अपने वांछित उड़ान पथ पर 20 सेकंड तक मैक 6 की गति से उड़ता रहा।
- परीक्षण के मापदंडों की निगरानी कई ट्रैकिंग रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम और टेलीमेट्री स्टेशनों द्वारा की गई। साथ ही हाइपरसोनिक वाहन के क्रूज़ चरण के दौरान प्रदर्शन की निगरानी बंगाल की खाड़ी से भी की गई।
हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन वाहन और स्क्रैमजेट इंजन
- HSTDV हाइपरसोनिक गति पर एक मानव रहित स्क्रैमजेट प्रदर्शन विमान है।
- HSTDV स्वयं में एक हथियार नहीं है परंतु हाइपरसोनिक और लम्बी दूरी की क्रूज़ मिसाइलों के लिये एक वाहक वाहन के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- ध्वनि की गति से पाँच गुना या अधिक गति को हाइपरसोनिक गति कहा जाता हैं। डी.आर.डी.ओ. ने जिस इकाई का परीक्षण किया है, वह ध्वनि की गति से छ: गुना या मैक 6 तक की गति प्राप्त कर सकती है, जो लगभग दो किलोमीटर प्रति सेकंड से अधिक है।
- इस परीक्षण में स्क्रैमजेट के ‘फ्यूल इंजेक्शन’ और ‘स्वत: दहन’ जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं के प्रदर्शन ने तकनीकी परिपक्वता को प्रदर्शित किया।
- स्क्रैमजेट, जेट इंजनों की श्रेणी का एक प्रकार है। इसे ‘एयर ब्रीदिंग इंजन’ कहा जाता है। ध्यातव्य है कि ‘एयर ब्रीदिंग इंजन’ द्वारा ईंधन के दहन में वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है। इसमें टर्बोजेट, टर्बोप्रॉप, रैमजेट और पल्स-जेट जैसे इंजन शामिल हैं। यह प्रणाली उपयोग में अन्य प्रणालियों की तुलना में हल्की, कुशल और लागत प्रभावी है।
- रैमजेट, ‘एयर ब्रीदिंग इंजन’ जेट इंजन का एक रूप है, जो बिना किसी घूर्णन कंप्रेसर (संपीडक) के आने वाली हवा को संपीडित करने के लिये वाहन की (आगे की) फॉरवर्ड मोशन या अग्र गति का उपयोग करता है।
- स्क्रैमजेट इंजन, रैमजेट इंजन का एक विकसित स्वरूप है, क्योंकि यह हाइपरसोनिक गति पर कुशलतापूर्वक संचालित होता है और सुपरसोनिक दहन की अनुमति देता है। इस प्रकार, इसे सुपरसोनिक दहन रैमजेट या स्क्रैमजेट के रूप में जाना जाता है।
- हालाँकि, यह तकनीक हाइपरसोनिक गति प्राप्त करने में मदद करती है परंतु इसकी कुछ खामियाँ है, जिसमें इसकी बहुत उच्च लागत और ‘थ्रस्ट-टू-वेट’ (Thrust-to-Weight) का उच्च अनुपात हैं । कोई इंजन जितना बल पैदा करता है, उसको ‘थ्रस्ट’ और वाहन के वज़न को ‘वेट’ कहते हैं।
गति सीमा |
मैक संख्या |
सबसोनिक या उपध्वनिक |
0.8 से कम |
ट्रांसोनिक |
0.8 से 1.3 के मध्य |
सुपरसोनिक या पराध्वनिक |
1.3 से 5 के मध्य |
हाइपरसोनिक या अतिध्वनिक |
5 से 10 के मध्य |
उच्च-हाइपरसोनिक |
10 से 25 के मध्य |
प्रौद्योगिकी का विकासक्रम
- डी.आर.डी.ओ. ने 2010 के दशक की शुरुआत में इंजन के विकास पर कार्य शुरू किया था। इसरो ने भी इस प्रौद्योगिकी के विकास पर कार्य किया है और वर्ष 2016 में इस प्रणाली का एक सफल परीक्षण किया। डी.आर.डी.ओ. ने भी जून 2019 में इस प्रणाली का परीक्षण किया है।
- हाइपरसोनिक गति पर किसी सिस्टम को 25000C की सीमा तक के तापमान के साथ-साथ हवा की गति को भी सम्भालना पड़ता है जो कि इसके विकास की मुख्य चुनौतियों में से एक है।
- स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग करना अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
परीक्षण का महत्त्व
- इस मिशन के साथ डी.आर.डी.ओ. ने अत्यधिक जटिल प्रौद्योगिकी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जो उद्योगों के साथ साझेदारी में अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक वाहनों के लिये बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में काम करेगा।
- यद्यपि इस प्रणाली का परीक्षण बहुत कम अवधि के लिये किया गया परंतु इसने वैज्ञानिकों को आगे के विकास के लिये डाटा पॉइंट्स का एक महत्त्वपूर्ण सेट प्रदान किया है।
- इस प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास से हाइपरसोनिक वाहनों के साथ निर्मित प्रणालियों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा, जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल सिस्टम के साथ-साथ अंतरिक्ष क्षेत्र भी शामिल है।
क्रूज़ मिसाइल
I. क्रूज़ मिसाइलों को सतह, समुद्र या हवा से प्रक्षेपित किया जा सकता है, जो सबसोनिक, सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक गति से दूरी तय कर सकती हैं।
II. पृथ्वी की सतह के समांतर चलने के कारण क्रूज़ मिसाइल को मिसाइल-रोधी प्रणाली द्वारा आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता है। इन मिसाइलों का प्रयोग भारी विस्फोटकों को लम्बी दूरी तक उच्च सटीकता से ले जाने के लिये किया जाता है।
बैलिस्टिक मिसाइल
I. सीधे हवा में प्रक्षेपित की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल परवलयाकार पथ (Ballistic Trajectory) का अनुसरण करती है, जो गुरुत्वाकर्षण और सम्भवतः वायुमंडलीय घर्षण के प्रभाव में आगे बढ़ती है।
II. वायुमंडल की ऊपरी परतों में पहुँचकर इनमें लगा हुआ वारहेड मिसाइल से अलग होकर पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर गिरता है।
अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (Inter Continental Ballistic Missile- ICBM)
I. अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल की मारक क्षमता न्यूनतम 5,500 किमी. तथा अधिकतम 7,000 से 16,000 किमी. तक होती है।
II. रूस, अमेरिका, चीन और फ्रांस के साथ-साथ भारत व उत्तर कोरिया के पास ICBM क्षमता है।
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अनुप्रयोग व लाभ
- यह स्वदेशी तकनीक, ध्वनि की गति की छह गुना (Mach 6) गति से दूरी तय करने वाली मिसाइलों के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
- इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग आने वाले समय में लम्बी दूरी वाली क्रूज़ मिसाइलों में किया जा सकेगा। साथ ही यह तकनीक कम लागत पर उपग्रहों के प्रक्षेपण में भी प्रयोग की जा सकती है।
- इसकी उच्च गति के कारण, अधिकांश रडार इसका पता लगाने में असमर्थ होंगे। यह अधिकांश मिसाइल रक्षा प्रणालियों को भेदने में भी सक्षम होगा।
- यह तकनीक कम लागत, उच्च दक्षता वाले पुन:प्रयोज्य उपग्रहों (Reusable Satellites) के विकास में सहायक होगी।
आगे की राह
- यह परीक्षण स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकियों में एक विशाल छलांग और एक सशक्त तथा आत्मनिर्भर भारत के लिये मील का पत्थर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह परीक्षण एक बड़ा कदम है परंतु अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के प्रौद्योगिकी स्तर को प्राप्त करने के लिये कई अतिरिक्त परीक्षण की आवश्यकता होगी।
- हाइपरसोनिक मिसाइलों को ‘सैन्य खतरे का एक नया वर्ग’ कहा जा रहा है, क्योंकि ये चकमा देने और 5,000 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक गति से उड़ने में सक्षम हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलों की गतिशीलता इसे मिसाइल रक्षा प्रणाली से बचने में सक्षम बनाती है और इसके प्रति किसी भी प्रतिक्रिया के लिये समय बहुत कम होता है।
- अत: भारत द्वारा ज़िम्मेदारी से आगे बढ़ते हुए कम लागत पर छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण सहित कई नागरिक अनुप्रयोगों के लिये HSTDV का उपयोग करना चाहिये।
प्री फैक्ट/ प्री कैप्सूल/ प्री ऐड ऑन/ प्री बूस्टर :
- अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करने वाला विश्व का चौथा देश बना।
- डी.आर.डी.ओ. द्वारा हाइपरसोनिक तकनीक का परीक्षण ओडिशा के व्हीलर द्वीप स्थित डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्रक्षेपण केंद्र से किया गया।
- स्क्रैमजेट के ‘फ्यूल इंजेक्शन’ और ‘स्वत: दहन’ जैसी महत्त्वपूर्ण तकनीक का प्रदर्शन भी किया गया।
- हाइपरसोनिक या अतिध्वनिक की मैक संख्या 5 से 10 के बीच होती है।
- रूस, अमेरिका, चीन और फ्रांस के साथ-साथ भारत व उत्तर कोरिया के पास ICBM क्षमता है।
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