हाल ही में उत्तराखण्ड में ‘इगास बग्वाल’ (Igas Bagwal) पर्व का आयोजन किया गया।
इगास बग्वाल पर्व के बारे में
- क्या है : उत्तराखंड का एक लोक पर्व
- आयोजन : पर्वतीय क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद
- इसे ‘बूढ़ी दीपावली’ या ‘हरबोधनी एकादशी’ भी कहते हैं।
- उद्देश्य : उत्तराखंड की पुरानी परंपराओं का सम्मान करना और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखना
- प्राचीन मान्यता : दीपावली के 11 दिन बाद इस पर्व के आयोजन के पीछे प्राचीन मान्यता यह है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था।
- ऐतिहासिक संदर्भ : वर्ष 1632 में गढ़वाल नरेश राजा महिपत शाह के शासनकाल में वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में तिब्बत युद्ध में विजय के बाद जब गढ़वाली सैनिक 11 दिन बाद अपने गांव लौटे, तब दीप जलाकर उत्सव मनाया गया, जो इगास का रूप बन गया।
- भैलो खेल : भैलो खेल इस पर्व का मुख्य आकर्षण है। इस खेल में चीड़ की लकड़ी से बने मशाल जैसे भैलो जलाए जाते हैं और उन्हें घुमाते हुए लोक गीतों एवं नृत्य का आनंद लिया जाता है।
- नृत्य-गीत : लोग 'भैलो रे भैलो', 'काखड़ी को रैलू' एवं 'उज्यालू आलो अंधेरो भगलू' जैसे पारंपरिक गीत गाते हैं और ‘चांछड़ी’ व ‘झुमेलो’ नृत्य करते हैं।
- पर्यावरण हितैषी : यह पर्यावरण-हितैषी उत्सव भी है क्योंकि इसमें पटाखों का उपयोग न के बराबर होता है।
- आधुनिक प्रासंगिकता : वर्तमान में इगास बग्वाल न केवल उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को संजोता है बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने व सामुदायिक एकता का महत्व समझने का भी अवसर देता है।