इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA)ने भारत का 'भाषा एटलस'बनाने के लिए देश भर में एक भाषाई सर्वेक्षण करने का प्रस्ताव रखा है।
IGNCA केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
भारत का पहला और सबसे विस्तृत भाषाई सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया था, जो वर्ष 1928में प्रकाशित हुआ था।
भारत, विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहा है।
एक महत्वपूर्ण है प्रश्न उन भाषाओं की वास्तविक संख्या पर बना हुआ है, जिन्हें देश में क्रियात्मक माना जा सकता है।
भारत का भाषा एटलस बनाने के लिए एक व्यापक भाषाई सर्वेक्षण करने की तत्काल आवश्यकता है।
सर्वेक्षण मेंयह जानने की कोशिश की जाएगी कि भारत में कितनी भाषाएँ बोली जाती हैं और कितनी लिपियाँ तथा बोलियाँ हैं।
ऐसी कई भाषाएं और बोलियां भी शामिल होंगी जो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।
सर्वेक्षण में IGNCA का सहयोग केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, राष्ट्रीय संग्रहालय, लुप्तप्राय भाषाओं के केंद्र और विभिन्न विश्वविद्यालयों के भाषाई विभाग करेंगे।
IGNCA और UNESCO द्वारा प्रकाशित प्रो. रमेश सी. गौड़ की पुस्तक‘ट्राइबल एंड इंडिजिनस लैंग्वेजेज ऑफ इंडिया’में वर्ष, 1961 की जनगणना में भारत में बोली जाने वाली 1,554 भाषाएँ दर्ज की गईं हैं।
संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।
वर्ष, 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 97% जनसंख्या इनमें से कोई एक भाषा बोलती है।
जनगणना में अतिरिक्त 99 गैर-अनुसूचित भाषाएँ शामिल हैं।
लगभग 37.8 मिलियन लोग इन गैर-अनुसूचित भाषाओं में से किसी एक को अपनी मातृभाषा के रूप में मानते हैं।
वर्ष, 1971 की जनगणना के बाद से 10,000 लोगों से कम बोलने वाली भाषाओं को शामिल नहीं करने के निर्णय के कारण 1.2 मिलियन लोगों की मूल भाषा अज्ञात बनी हुई है।
इनमें से कई भाषाएँ आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती हैं।
वर्ष, 1961 की आधिकारिक जनगणना भाषाई डेटा के संबंध में सबसे विस्तृत थी।
इस जनगणना में एक व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को भी रिकॉर्ड में शामिल किया गया था।