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IISc द्वारा भूजल आर्सेनिक शोधन प्रक्रिया का नवाचार

चर्चा में क्यों?

बेंगुलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने भूजल से आर्सेनिक जैसे भारी धातु संदूषकों को हटाने के लिए एक नवीन उपचार प्रक्रिया विकसित की है।

ARSENICA

आर्सेनिक के बारे में 

  • आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक अर्धधात्विक तत्व है जो भू-पर्पटी में व्यापक रूप से वितरित होता है।
  • आर्सेनिक में अधातु के गुण अधिक और धातु के गुण कम पाए जाते हैं, इसीलिए इसे उपधातु (मेटालॉयड) की श्रेणी में रखा जाता है।
  • इसका प्रमुख अयस्क आर्सेनिक सल्फाइड (As2S3) है। कौटिल्य ने 'अर्थशास्त्र' में इसका वर्णन ‘हरिताल’ के रूप में किया है।
  • इसका संकेत As होता है।

भारत में आर्सेनिक की स्थिति 

  • IISc के अनुसार, भारत के 21 राज्यों के 113 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, जबकि 23 राज्यों के 223 जिलों में फ्लोराइड का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। 
    • यह भारतीय मानक ब्यूरो और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित अनुमेय सीमा से बहुत अधिक है। 
  • ये संदूषक मानव और पशु स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित (कैंसरजनित रोग) कर सकते हैं, इसलिए इनका कुशल निष्कासन और सुरक्षित निपटान आवश्यक है।

ARSENNICB

भूजल आर्सेनिक शोधन प्रक्रिया के बारे में

  • IISc के सतत प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा विकसित प्रक्रिया दूषित भूजल से आर्सेनिक जैसी  विषैली भारी धातुओं को निष्कर्षित करने के लिए एक टिकाऊ तीन-चरणीय विधि है। 

प्रक्रिया के चरण 

  • प्रथम चरण:  पहले चरण में दूषित पानी को लोहे और एल्यूमीनियम यौगिकों के साथ मिश्रित चिटोसन-आधारित अधिशोषक की परत (a bed of chitosan-based adsorbent) से गुज़ारा जाता है। यह परत इलेक्ट्रोस्टैटिक बल के माध्यम से अकार्बनिक आर्सेनिक को आगे जाने से रोक लेती है। 
  • द्वितीय चरण : इस चरण में, क्षारीय धुलाई का उपयोग अधिशोषक परत को पुनः उपयोग के तैयार किया जाता है।
  • तृतीय चरण : अंतिम चरण में, बायोरेमेडिएशन का उपयोग किया जाता है, जिसमें गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव अत्यधिक विषैले अकार्बनिक आर्सेनिक को मिथाइलेशन के माध्यम से कम हानिकारक कार्बनिक रूपों में बदल देते हैं।

प्रक्रिया का लाभ 

  • मौजूदा तकनीक से, भूजल से आर्सेनिक को पृथक किया जा सकता है और स्वच्छ पानी प्राप्त किया जा सकता है।
  • यह विधि सुनिश्चित करती है कि हटाए गए भारी धातुओं का पर्यावरण में अनुकूल तरीके से निपटान किया जाए, जिससे यह विषैले तत्व पर्यावरण में दोबारा प्रवेश न कर पाएं।
  • अंतिम चरण में अवशेष कार्बनिक तत्व भूजल में मौजूद अकार्बनिक तत्वों से औसतन 50 गुना तक कम विषाक्त होते हैं।
  • कार्बनिक आर्सेनिक युक्त शेष गोबर की गंदगी को लैंडफिल में सुरक्षित रूप से निपटाया जा सकता है। 
  • इस प्रणाली को असेंबल करना और संचालित करना आसान है, जो इसे निवासियों द्वारा सामुदायिक स्तर पर कार्यान्वयन के लिए उपयुक्त बनाता है।
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