(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, प्रमुख फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसल पैटर्न, सिंचाई के विभिन्न प्रकार और सिंचाई प्रणालियाँ; भंडारण, परिवहन एवं कृषि उपज का विपणन व मुद्दे तथा संबंधित बाधाएँ) |
संदर्भ
दिल्ली में आयोजित बिजनेसलाइन एग्री एंड कमोडिटी समिट, 2025 का मुख्य केंद्रीय विषय कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियाँ रहीं जिससे निपटने के लिए सरकार ने द्वि-आयामी दृष्टिकोण ‘अनुकूलन’ एवं ‘शमन’ को अपनाया है।
कृषि एवं किसानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- कृषि उत्पादकता में परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन एवं अनुकूलन उपायों को न अपनाए जाने की स्थिति में भारत में वर्षा आधारित चावल की पैदावार वर्ष 2050 में 20% और 2080 तक 47% कम होने का अनुमान है।
- जलवायु परिवर्तन से वर्ष 2050 तक गेहूं की पैदावार में 19.3% और 2080 के परिदृश्यों में 40% की कमी आने का अनुमान है जिसमें महत्वपूर्ण स्थानिक भिन्नताएँ होंगी।
- जलवायु परिवर्तन के कारण खरीफ मक्का की पैदावार में भी कमी आने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन से फसल की पैदावार कम होने के साथ-साथ उपज की पोषण गुणवत्ता भी कम होती है।
- मृदा एवं जल संसाधनों पर प्रभाव : जलवायु परिवर्तन से अमेरिका में भारी वर्षा की आवृत्ति बढ़ने की संभावना है जो मृदा कटाव और पोषक तत्वों के क्षय के कारण फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है।
- कृषि श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्रभाव : कृषि श्रमिकों को जलवायु संबंधित कई स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इनमें गर्मी और अन्य चरम मौसम के संपर्क में आना, कीटों की बढ़ती मौजूदगी के कारण कीटनाशकों के संपर्क में आना, मच्छरों एवं टिक्स जैसे रोगाणुओं वाले कीट व खराब वायु गुणवत्ता शामिल हैं।
संबंधित चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन का कृषि पद्धतियों, जल उपयोग क्षमता एवं जल की उपलब्धता, नाइट्रस ऑक्साइड व मीथेन उत्सर्जन, मृदा क्षरण, नाइट्रोजन व फास्फोरस प्रदूषण, कीट दबाव, कीटनाशक प्रदूषण और जैव विविधता हानि पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
- घटती पैदावार एवं उर्वरता की कमी के कारण खाद्य उत्पादन के लिए वनों की कटाई बढ़ सकती है। उत्पादकता बनाए रखने के लिए उर्वरक एवं कीटनाशकों के अधिक प्रयोग की आवश्यकता होगी, जिसका आसपास के पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि खाद्य प्रणालियों पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं। वर्षा व तापमान में परिवर्तन और अप्रत्याशितता के कारण चरम मौसम की घटनाएँ व सूखा, बाढ़, कीटों एवं बीमारियों के प्रकोप तथा महासागरीय अम्लीकरण जैसी आपदाओं की अधिक घटनाएँ होती हैं।
सरकार द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयास
अनुकूलन संबंधी रणनीतियां
जलवायु परिवर्तन अनुकूलन से तात्पर्य उन गतिविधियों से है जो जलवायु परिवर्तन के वर्तमान या अपेक्षित प्रभावों, जैसे- मौसम की चरम स्थितियों एवं खतरों, समुद्र-स्तर में वृद्धि, जैव-विविधता की हानि या खाद्य एवं जल असुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता को कम करने में मदद करते हैं।
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- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) : यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अंतर्गत आने वाले मिशनों में से एक है। इस मिशन का उद्देश्य भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाने के लिए रणनीतियाँ विकसित करना और उन्हें लागू करना है।
- जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने इस परियोजना की शुरूआत की है। इस परियोजना का उद्देश्य कृषि में जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और बढ़ावा देना तथा सूखा, बाढ़, गर्मी व शीत लहर आदि जैसी चरम मौसम की स्थिति से ग्रस्त जिलों एवं क्षेत्रों को ऐसी चरम घटनाओं से निपटने में मदद करना हैं।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के साथ अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक अनुसंधान कार्यक्रम : इन कार्यक्रमों में फसलों, बागवानी, पशुधन, मत्स्य पालन एवं मुर्गी पालन को शामिल करते हुए अनुकूलन व शमन शामिल है। इसमें शामिल प्रमुख क्षेत्र हैं :
- सर्वाधिक असुरक्षित जिलों/क्षेत्रों की पहचान करना
- अनुकूलन एवं शमन के लिए फसल किस्मों व प्रबंधन प्रथाओं का विकास करना
- पशुधन, मत्स्य पालन और मुर्गीपालन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करना तथा अनुकूलन रणनीतियों की पहचान करना
- वर्ष 2014 से 1500 से अधिक जलवायु लचीली किस्में विकसित की गई हैं। इसके अलावा 68 स्थान-विशिष्ट जलवायु लचीली प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है।
शमन संबंधी रणनीतियां
जलवायु परिवर्तन शमन का तात्पर्य सरकारों, व्यवसायों या लोगों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को कम करने या रोकने या उन्हें वायुमंडल से हटाने वाले कार्बन सिंक को बढ़ाने के लिए की गई किसी भी कार्रवाई से है।
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- कृषि पद्धतियों में बदलाव : खेती के कुछ तरीकों से मीथेन एवं नाइट्रस ऑक्साइड की उच्च मात्रा निष्कर्षित होती है जो शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं। पुनर्योजी कृषि पद्धतियाँ के माध्यम से सरकार शमन का समर्थन कर रही हैं। इन पद्धतियों में मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाना, पशुधन से संबंधित उत्सर्जन को कम करना, डायरेक्ट सीडिंग तकनीक और कवर फसलों का उपयोग करने को बढ़ावा देना शामिल है।
- वनों का संधारणीय प्रबंधन एवं संरक्षण : वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की समग्र सांद्रता को कम करते हैं। वनों की कटाई और वन क्षरण को कम करने के उपाय जलवायु शमन के लिए हैं।
- सहायक वातावरण का निर्माण : सरकार उत्सर्जन में कमी लाने को प्रोत्साहित करने वाले निवेश, नीतियों एवं विनियमन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। इनमें प्रोत्साहन, कार्बन मूल्य निर्धारण और प्रमुख क्षेत्रों से उत्सर्जन पर सीमाएं निर्धारित करना शामिल है।
क्या किया जाना चाहिए
- प्राकृतिक खेती इनपुट लागत को कम करने और किसानों को रसायन मुक्त खेती की ओर आकर्षित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- सरकार का लक्ष्य किसानों को जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कार्बन बाजार प्रोत्साहन का उपयोग करना भी है। यह दृष्टिकोण बदलती जलवायु के सामने खाद्य सुरक्षा एवं किसानों की आजीविका सुनिश्चित करता है।
- सभी क्षेत्रों में हरित ऋण में तेजी लाना, डाटा तक पहुंच प्रदान करना, आंतरिक हरित परिवर्तन और जलवायु-लचीली गतिविधियों को निधि देने के लिए संसाधन जुटाना चार स्तंभ हैं जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक हैं।
- परिशुद्ध कृषि, बारहमासी फसल एकीकरण, एग्रीवोल्टाइक्स, नाइट्रोजन फिक्सेशन एवं नवीन जीनोम संपादन उन उभरती हुई तकनीकों में शामिल है जिनका प्रयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हुए कृषि में उत्पादन व दक्षता को बढ़ावा दे सकता है।