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ट्रांसजेंडर एवं यौनकर्मियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन सबसे निर्धन एवं सबसे कमज़ोर व्यक्तियों को सर्वाधिक प्रभावित करता है। इससे मौजूदा असमानताएं में वृद्धि हो जाती हैं। यदि इनके जोखिम एवं कमज़ोरियों को कम करने के लिए लक्षित नीतियां नहीं बनाई गईं तो गरीबी एवं असमानता की स्थिति अधिक बदतर हो जाएगी।

ट्रांसजेंडर एवं यौन कर्म में संलग्न महिलाओं के समक्ष जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियां 

  • आजीविका का स्रोत : यौन कर्म में संलग्न महिलाओं एवं ट्रांसजेंडर लोगों के पास आय का स्थिर स्रोत नहीं होता है। कई ट्रांसजेंडर एवं महिलाएं आजीविका के स्रोत के रूप में भीख मांगने या यौन कर्म का सहारा लेती हैं। बुनियादी सुविधाओं तक इनकी पहुंच नहीं होती है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव : अत्यधिक धूप या भारी बारिश जैसी मुश्किल परिस्थितियों में काम करने से इनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके बावजूद ट्रांसजेंडर्स एवं यौनकर्मियों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
    • ट्रांसजेंडर समुदाय की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं हो पाना चिंता का एक गंभीर विषय है। गोपनीयता की समस्या के कारण इस समुदाय के कई लोग स्वास्थ्य समस्याओं (एच.आई.वी. और अन्य यौन संचारित संक्रमण) की उच्च दर का सामना कर रहे हैं।
  • योग्यता एवं कौशल की समस्या : भारत में 68% महिला यौनकर्मियों ने 'स्वेच्छा से' इस पेशे को चुना है जिसका एक मुख्य कारण इनकी निम्न घरेलू आय और रोज़गार के लिए ज़रूरी योग्यता एवं कौशल की कमी है। यही ख़राब आर्थिक स्थितियां इन समुदायों की जलवायु संबंधी समस्याओं से उबरने की क्षमता को कम कर देती हैं।
  • चरम जलवायु घटनाओं के साथ संबंध : ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (CEEW) के अनुसार, असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं बिहार जैसे राज्यों में जलवायु घटनाओं में चरम बदलाव दिख सकता है। इनमें से कुछ राज्यों, जैसे- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं बिहार (उत्तर प्रदेश के बाद) में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की आबादी भी अपेक्षाकृत अधिक है।
    • आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में यौनकर्मी भी अधिक हैं। इनमें से कुछ एच.आई.वी. एवं हार्मोनल समस्याओं से ग्रस्त हैं।  अत्यधिक तापमान में इनकी प्रतिक्रिया नकारात्मक हो सकती है।
    • सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर भी जलवायु परिवर्तन का इन समूहों के साथ विशिष्ट अनुभव होता है। इसीलिए जलवायु परिवर्तन के लिंग आधारित विश्लेषण में इनको अधिक-से-अधिक शामिल करना आवश्यक है।

 ट्रांसजेंडर एवं यौन कर्म में संलग्न महिलाओं के लिए मौजूदा पहल

  • इन समूहों के कल्याण के लिए जारी प्रयासों में ट्रांस एवं लैंगिक रूप से विविध लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों का विकास, स्वास्थ्य क्षेत्र के हस्तक्षेपों पर साक्ष्य और कार्यान्वयन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना शामिल है।
  • भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 ने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार जैसे कई क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को स्पष्ट किया है और उनके कल्याण में सुधार उपायों की रूपरेखा तैयार की है। हालांकि, ज़मीनी स्तर पर इसका प्रभाव बहुत कम दिख रहा है।
  • ग्लोबल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्क प्रोजेक्ट्स (NSWP) ने खास तौर पर एच.आई.वी. एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए यौनकर्मियों के नेतृत्व वाले संगठनों द्वारा लागू किए गए प्रभावी प्रयासों की जानकारी दी है। इसमें सरकार, कानूनी एजेंसियों एवं स्वास्थ्य देखभाल समेत सभी क्षेत्रों में सहयोग के महत्व पर ज़ोर दिया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), हमसफर ट्रस्ट (HST) और सेंटर फॉर सेक्सुअलिटी एंड हेल्थ रिसर्च एंड पॉलिसी (C-SHARP) ने ट्रांसजेंडर समुदाय के स्थिति सुधारने के लिए सहयोग किया है।
    • इसका उद्देश्य सामाजिक कल्याण योजनाओं और स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए साक्ष्य-आधारित एवं सहभागी ढांचा विकसित करना है और सामुदायिक आवश्यकताओं तथा अच्छी प्रथाओं को शामिल करके ट्रांसजेंडर लोगों के लिए कार्यक्रम बनाना है।
  • यद्यपि हाशिए पर स्थित इन समूहों को कानूनी मान्यता देने की कोशिश की जा रही है, इसके बावजूद नौकरी के अवसरों, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं में इनकी हिस्सेदारी बहुत सीमित है। इसकी वज़ह कल्याणकारी योजनाओं एवं सामुदायिक जुड़ाव में सरकारों की नीतियों का कम समावेशी होना हैं। 
  • भारत में कुछ ट्रांस क्लाइमेट एक्टिविस्ट अपने जीवन एवं आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिशों की अगुवाई कर रहे हैं।
  • भारत सरकार की सपोर्ट फॉर मार्जिनलाइज़्ड इंडिविजुअल्स एंड इंटरप्राइज (SMILE) योजना का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भीख मांगने का काम करने वालों के लिए पुनर्वास के व्यापक उपाय प्रदान करना है। 
  • कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। इसमें लिंग-आधारित स्वच्छता सुविधाओं की आवश्यकता, सुरक्षित आश्रय और प्राकृतिक आपदाओं के बाद की स्थितियों का मुकाबला करने के लिए परामर्श का अभाव शामिल है।
  • ऐसे में समावेशी विकास के लिए इन समुदायों के लिए एक सक्षम इकोसिस्टम बनाने की आवश्यकता है। 
  • समाज से इन समुदायों के बहिष्कार के मूल कारणों की पहचान करना, हिंसा एवं भेदभाव की समस्या से निपटने की प्रणालियों को मजबूत करना, इस समुदाय व सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना, पहचान व सामाजिक स्थिति के बिना इनके दैनिक कल्याण के लिए काम करने से इन्हें मदद मिलेगी।

 आगे की राह 

  • ट्रांसजेंडर समुदाय एवं यौन कर्म में संलग्न महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढालने में मदद करने के लिए विभिन्न हितधारकों, जैसे- सरकार, नागरिक समाज व गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए।
  • समावेशी नीतियां और सामाजिक सुरक्षा ही सामाजिक सेवाओं, रोजगार के अवसरों, स्वास्थ्य व शिक्षा तक इनकी पहुंच की गारंटी दे सकती है।
  • यौन कर्म में लगी महिलाओं एवं ट्रांसजेंडर्स की सुरक्षा संबंधी नीतियों एवं कार्यक्रम में पर्यावरणीय आपदाओं के मद्देनजर जलवायु-संवेदनशील विशेषताओं एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • इस समुदाय की सुरक्षा व सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा सकता है। इसी तरह कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं के प्रभावों की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय एवं स्थानीय आंकड़ों का संग्रह समावेशी होना चाहिए। इसमें ट्रांसजेंडर्स एवं यौन कर्मियों को भी शामिल होना चाहिए।
  • समावेशिता से नीति-निर्माताओं और दूसरे हितधारकों को ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए उचित उपायों एवं अनुकूलन योजनाओं की पहचान करने तथा उन्हें प्राथमिकता देने में मदद मिलेगी।
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