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जलवायु परिवर्तन का पवन ऊर्जा पर प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन; आपदा और आपदा प्रबंधन) 

संदर्भ

हालिया प्रकाशित एक शोध-पत्र के अनुसार, विगत 40 वर्षों में संभावित पवन ऊर्जा क्षमता में लगभग 13% की कमी आई है। हिंद महासागर के बढ़ते उष्मन के परिणामस्वरूप ग्रीष्मकालीन मानसून की अनिश्चितता बढ़ी है। यह भारत के महत्त्वाकांक्षी पवन ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य में बाधक बन सकता है। 

मानसून और पवन ऊर्जा

  • वर्ष 2020 मानसून के दृष्टिकोण से बेहतर रहा। जून-सितंबर के मध्य दक्षिण-पश्चिम मानसून के द्वारा लॉन्ग-पीरियड एवरेज (LPA) का 109% वर्षा रिकॉर्ड की गई, जो विगत 50 वर्षों के दौरान अभिलिखित वर्षा के औसत से अधिक थी। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में भी सामान्य से अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई थी।
  • भारत में लगभग दो-तिहाई पवन ऊर्जा का उत्पादन सितंबर में समाप्त होने वाले मानसून के चार महीनों के दौरान होता है। हालाँकि पवन ऊर्जा क्षेत्रक के लिये यह वर्ष ठीक नहीं रहा। सामान्यतया मानसून पवनों की गति लगभग 23-29 कि.मी. प्रतिघंटे होती है, जो टर्बाइनों के सहज संचालन के लिये मुफीद होती है।
  • पिछले वर्ष मानसून पवनों की गति लगभग 20-27 कि.मी. प्रतिघंटे दर्ज़ की गई थी, जो अभी तक के रिकॉर्ड में सबसे धीमी थी।
  • पवन टर्बाइनों का औसत ‘क्षमता उपयोग कारक’ (Capacity Utilization Factor – CUF) विगत दो वर्षों में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 20% की तुलना में 17% रहा।
  • उल्लेखनीय है कि पवन टर्बाइनों के प्रदर्शन को अक्सर एक मीट्रिक द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जिसे ‘क्षमता उपयोग कारक’ कहा जाता है। यह एक पवन ऊर्जा संयंत्र द्वारा वास्तविक उत्पादन का अनुपात है। आदर्श परिस्थितियों में एक वर्ष के दौरान उससे अधिकतम उत्पादन संभव होता है। ‘क्षमता उपयोग कारक’ को सामान्यतः प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
  • विशेषकर, जुलाई और सितंबर माह में पवन की गति सामान्य से भी कम रही। इससे मानसून के दौरान अधिकांश भारत में सी.यू.एफ. में व्यापक कमी दर्ज़ की गई। 

भारत का हरित ऊर्जा कार्यक्रम

  • ‘यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ (UNFCCC) के अंतर्गत हुए ‘पेरिस जलवायु समझौते’ का कार्यान्वयन वर्ष 2021 से आरंभ होगा। भारत ने इस समझौते तहत किये जाने वाले कार्यों की घोषणा करते हुए, अपना ‘राष्ट्रीय अभिनिर्धारित योगदान’ (INDC) प्रस्तुत किया है।
  • आई.एन.डी.सी. के तहत निर्धारित किये गए 8 लक्ष्यों में प्रमुख हैं– वर्ष 2030 तक 2005 के स्तर से जी.डी.पी. की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करना, वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत क्षमता प्राप्त करना आदि।
  • इसी योजना के एक भाग के रूप में, केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के उत्पादन लक्ष्य रखा है, जिसमें 60 गीगावाट पवन ऊर्जा के रूप में उत्पादित की जानी है।
  • मार्च 2021 तक, देश में कुल78 गीगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन होने लगा था। मानसूनी पवनों की अनियमितता, महामारी, लाल-फीताशाही आदि के कारण इसके उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • पिछले मानसून में पवनों की धीमी गति के लिये विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन द्वारा प्रेरित वैश्विक उष्मन तथा अनियमित वर्षा प्रतिरूप को ज़िम्मेदार ठहराया था। यह एक नकारात्मक प्रवृत्ति हैं क्योंकि पवन ऊर्जा वैश्विक उष्मन को कम करने का एक प्रभावी साधन है। 

जलवायु अस्थिरता

  • यदि जलवायु परिवर्तन और हिंद महासागर का उष्मन ऐसे ही जारी रहता है तो पवनों की क्षमता में और गिरावट होगी, लेकिन जलवायु की अस्थिरता को देखते हुए पवनों की क्षमता में उच्च वृद्धि भी देखने को मिल सकती है।
  • हरित ऊर्जा परियोजनाओं के निवेशक भी इन गतिविधियों पर नज़र बनाए हुए हैं, जो दक्षिणी राज्यों के इतर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा तथा मध्य प्रदेश में हुए निवेशों से पता चलता है।
  • डेनमार्क स्थित ‘वेस्टस विंड सिस्टम’ जैसे पवन टरबाइन निर्माताओं ने कम और अति-निम्न पवन गति वाली स्थिति पर लक्षित एक नया टरबाइन बनाया है।
  • विगत वर्ष मध्य भारत में मई-जून के दौरान गर्मी की तीव्रता कम रही थी, इसलिये पवनों की गति अपेक्षाकृत मंद रही थी। इस वर्ष भी लगभग ऐसी ही परिस्थितियाँ रहीं।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, तमिलनाडु को छोड़कर अन्य राज्यों में पवन ऊर्जा उत्पादन में गिरावट दर्ज़ की गई है। तमिलनाडु में गिरावट न होने का मुख्य कारण उसका पूर्वी तट पर स्थित होना है तथा ग्रीष्म ऋतु में वहाँ पवनों की स्थिति अन्य क्षेत्र की अपेक्षा अलग होती है। 

वर्तमान की चिंताएँ

  • पवनों की गति कई पारस्परिक कारकों से प्रभावित होती है, इसलिये पवन के प्रतिरूप में संरचनात्मक को पहचान पाना मुश्किल है। हालाँकि कुछ हालिया अध्ययन मानसून के दौरान दीर्घकालीन पवनों की औसत गति में मामूली कमी होने की बात कहते हैं।
  • हरित ऊर्जा के निवेशक पहले ही कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जैसे– विद्युत खरीद में कटौती, भुगतान में विलंब, भूमि, कनेक्टिविटी की समस्या आदि। यदि पवनों की गति में ऐसे गिरावट दर्ज़ की जाती रही तो संभवतः इन परियोजनाओं की नीलामी बढ़ी हुई कीमतों पर की जाए। 

भावी राह

  • भारत 7500 कि.मी. लंबी विशाल तटरेखा के साथ पवन ऊर्जा का पर्याप्त दोहन करने की क्षमता रखता है। अभी भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक देश है।
  • 100 मीटर के ऊपर भारत की कुल पवन ऊर्जा क्षमता लगभग 302 गीगावाट है। इसने दुनिया के बड़े निवेशकों तथा संप्रभु धन-कोष को भारत की ओर आकर्षित किया है।
  • तमाम अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत में हरित ऊर्जा का क्षेत्र लाभदायक बना हुआ है। हाल के दिनों में पवन ऊर्जा क्षेत्र में लगभग $10 बिलियन का निवेश प्राप्त हुआ है।
  • पवन ऊर्जा क्षेत्र में होने वाले निवेश में जोखम कम करने के लिये पोर्टफोलियो दृष्टिकोण बेहतर होगा क्योंकि पवन की गति ‘स्थान और समय’ के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है।
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