(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
संदर्भ
तमिलनाडु राज्य अपने प्रत्येक ज़िले में एक मेडिकल कॉलेज को स्थापित करने के लिये प्रयासरत है। इससे वहाँ के निवासियों को उन्नत चिकित्सा सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी। हालाँकि, इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये राज्य को मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के विभिन्न विभागों में विशेषज्ञ और वरिष्ठ-विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता होगी।
राज्य की नीतियाँ
- राज्य ने अपने निवेश को सुनिश्चित करने और संस्थागत निरंतरता बनाए रखने के लिये तीन नीतियाँ बनाई हैं।
- सर्वप्रथम एक कोटा निर्धारित किया गया, जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेज में 50 प्रतिशत सीटें सरकारी संस्थानों (कार्यरत उम्मीदवार) में काम करने वाले डॉक्टरों के लिये यह शर्त तय की गई थी कि उन्हें सेवानिवृत्ति तक तमिलनाडु चिकित्सा सेवाओं में कार्य करना आवश्यक होगा।
- प्रशिक्षित वरिष्ठ-विशेषज्ञों को समायोजित करने के लिये, जो तमिलनाडु चिकित्सा सेवाओं (गैर-सेवारत उम्मीदवार) से नहीं जुड़े हैं, उनके लिये सरकारी अस्पतालों (उनके प्रशिक्षण के पूरा होने के बाद) में कम से कम दो साल तक सेवा करने के लिये एक अनुबंध बनाया गया है।
- साथ ही, वरिष्ठ-विशेषज्ञ प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिये अधिवास (Domicile) की आवश्यकता को भी जोड़ा गया है।
- वर्ष 2015-16 तक, तमिलनाडु की वरिष्ठ-विशेषज्ञ चिकित्सा सीटों पर प्रवेश राज्य द्वारा ली जाने वाली प्रवेश परीक्षा के आधार पर, अधिवास तथा कार्यरत कोटा की शर्त के साथ होता था।
- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना राज्यों द्वारा वरिष्ठ-विशेषज्ञ परीक्षा में प्रवेश के लिये निर्धारित की गई अधिवास की शर्त को वर्ष 2016 में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए फ़ैसले के पश्चात् समाप्त कर दिया गया।
- न्यायालय ने परोक्ष रूप से वर्ष 1992 के ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामलें’ के फ़ैसले को लागू किया।
- वर्ष 2017-18 से राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड द्वारा, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-वरिष्ठ विशेषज्ञता (NEET-SS) के आयोजन की शुरुआत की गई।
- राज्य सरकारों ने वरिष्ठ-विशेषज्ञ सीटों पर प्रवेश परीक्षा और परामर्श आयोजित करने की शक्ति से अपने मेडिकल कॉलेजों को वंचित कर दिया।
- ऐसा राज्य सरकार द्वारा अपनी शत-प्रतिशत सीटों को अखिल भारतीय कोटे में शामिल करने के कारण हुआ।
सेवाकालीन कोटे के लिये निर्देश
- ‘तमिलनाडु मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन’ (TNMOA) ने तमिलनाडु में कार्यरत डॉक्टरों की तरफ से स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रम के लिये 50 प्रतिशत कार्यरत कोटा को हटाने के लिये न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी।
- संविधान पीठ ने 31 अगस्त, 2020 को एक आदेश के साथ सेवाकालीन कोटे पर फ़ैसला देते हुए कहा कि न्यूनतम मानकों और समन्वय के निर्धारण को छोड़कर, चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने में राज्य की शक्ति संरक्षित है।
- साथ ही, न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार राज्य की अपनी योग्यता सूची के अंदर से कार्यरत डॉक्टरों के लिये कोटा प्रदान कर सकती है, साथ ही इच्छुक डॉक्टरों को न्यूनतम निर्धारित अंकों के साथ एनईईटी परीक्षा पास करनी होगी।
तमिलनाडु सरकारी आदेश
- तमिलनाडु सरकार के ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग’ ने संविधान पीठ के निर्देशों का विस्तार करते हुए 7 नवंबर, 2020 को एक सरकारी आदेश जारी किया।
- इस आदेश के माध्यम से, तमिलनाडु सरकार ने राज्य में सेवारत उम्मीदवारों के लिये वरिष्ठ-विशेषज्ञ सीटों में 50 प्रतिशत कोटा लागू करने का प्रयास किया।
- चूँकि, प्रवेश प्रक्रिया अंतिम चरण में थी, इसलिये उच्चतम न्यायालय की पीठ ने 27 नवंबर, 2020 को केवल वर्ष 2020-21 के लिये कार्यरत डॉक्टरों के संदर्भ में कोटा की अनुमति नहीं देने का फैसला किया।
- ‘टी.एन.एम.ओ.ए. बनाम भारत संघ मामलें’ का निर्णय और तमिलनाडु सरकार द्वारा जारी आदेश की वैधता के बारे में यह देखा होगा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला किस दिशा में आगे बढ़ता है।
प्रशासन और समावेश
- उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 335 के माध्यम से आरक्षण की माँगों की मनाही के लिये लगातार ‘प्रशासन की दक्षता’ बनाए रखने का तर्क दिया जाता है।
- वर्ष 2019 के ‘बी.के.पवित्रा बनाम भारत संघ मामले’ को इस संबंध में एक स्वागत योग्य कदम माना जा सकता है, जो अदालतों को प्रशासन की दक्षता के बहुआयामी शब्द को परिभाषित करने के लिये प्रेरित करता है।
- तमिलनाडु में, अधिवास और सेवारत कोटा के साथ, वरिष्ठ-विशेषज्ञ सीटों में सेवारत उम्मीदवारों की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत थी।
- लेकिन अधिवास और सेवारत कोटा को हटाने के साथ एनईईटी-एसएस के बाद के परिदृश्य में, सेवारत उम्मीदवारों की संख्या घटकर 6 प्रतिशत रह गई है।