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खाद्य सुरक्षा अधिनियम का सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रभाव

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र)

संदर्भ 

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (National Food Security Act : NFSA) के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में अनिवार्य सुधारों के कार्यान्वयन से लीकेज में कमी आई है। 
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey : NSS) के वर्ष 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण के अनुसार एन.एफ.एस.ए., 2013 के कार्यान्वयन के बाद पी.डी.एस. लीकेज 22% तक कम हो गया था।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली 

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली या PDS सरकार द्वारा प्रायोजित दुकानों की एक श्रृंखला है, जिसे समाज के जरूरतमंद वर्गों को अत्यधिक निम्न दरों पर बुनियादी खाद्य एवं गैर-खाद्य वस्तुओं के वितरण का कार्य सौंपा गया है। 
  • गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल (केरोसीन ऑइल), चीनी आदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा वितरित की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुएँ हैं।
  • PDS पूरक प्रकृति का है अर्थात इसका उद्देश्य किसी परिवार या समाज के एक हिस्से को इसके तहत वितरित किसी भी वस्तु की संपूर्ण आवश्यकता उपलब्ध कराना नहीं है। 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का क्रियान्वयन 

  • PDS को केंद्र एवं राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत संचालित किया जाता है। 
  • केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India : FCI) के माध्यम से राज्य सरकारों को खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन एवं थोक आवंटन की जिम्मेदारी संभाली है।
  • राज्य के भीतर आवंटन, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना और उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज की निगरानी आदि राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। 
  • कुछ राज्य/संघ राज्य क्षेत्र PDS दुकानों के माध्यम से जन उपभोग की अतिरिक्त वस्तुएं, जैसे- दालें, खाद्य तेल, आयोडीन युक्त नमक, मसाले भी वितरित करते हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव की समस्या  

  • पी.डी.एस. में लीकेज (रिसाव) का अर्थ भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा जारी किए गए पी.डी.एस. वाले चावल एवं गेहूं के उस अनुपात से है जो उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाता है। 
  • लीकेज का अनुमान खाद्य मंत्रालय के मासिक खाद्यान्न बुलेटिन में उल्लेखित ‘ऑफटेक’ डाटा के साथ घरेलू पी.डी.एस. खरीद पर एन.एस.एस. डाटा का मिलान करके लगाया जाता है।
  • एन.एस.एस. के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011-12 में अखिल भारतीय स्तर पर लीकेज लगभग 41.7% था।
    • हालाँकि, वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 के मध्य शुरुआती सुधार करने वाले राज्यों में लीकेज में अत्यधिक कमी दर्ज की गई। इसमें मुख्य रूप से शामिल थे : 
      • बिहार (91% से घटकर 24%)
      • छत्तीसगढ़ (52% से घटकर 9%) 
      • ओडिशा (76% से घटकर 25%)
  • एन.एफ.एस.ए. 2013 द्वारा पी.डी.एस. सुधारों को अनिवार्य किए जाने से इस समस्या में अधिक सुधार देखा गया है। 

एन.एफ.एस.ए. के बारे में 

पृष्ठभूमि 

  • 5 जुलाई, 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 का अधिनियमित किया गया। 
  • यह अधिनियम कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के अधिकार का प्रावधान करता है।
  • महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक कदम के रूप में इस अधिनियम के तहत राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की परिवार की सबसे बड़ी महिला को परिवार का मुखिया माना जाता है।
  • वर्तमान में इस अधिनियम को सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में क्रियान्वित किया जा रहा है। 

खाद्य सुरक्षा भत्ता 

  • एन.एफ.एस.ए. के तहत पात्र व्यक्तियों को खाद्यान्न या भोजन की निर्धारित मात्रा की आपूर्ति न होने की स्थिति में उन्हें संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित खाद्य सुरक्षा भत्ता प्रदान किया जाएगा। 
  • इस भत्ते का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। ये प्रावधान खाद्य सुरक्षा भत्ता नियम, 2015 के माध्यम से शासित होते हैं।

एन.एफ.एस.ए. के अंतर्गत केंद्रीय निर्गम मूल्य

  • एन.एफ.एस.ए. के अंतर्गत खाद्यान्न अधिनियम के लागू होने की तिथि (13 जुलाई, 2013) से तीन वर्ष की प्रारंभिक अवधि के लिए चावल, गेहूं एवं मोटे अनाज को क्रमशः 3/2/1 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमतों पर उपलब्ध कराया जाना था। 
  • इसके बाद, केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर कीमतें तय की जानी थीं। सरकार ने समय-समय पर एन.एफ.एस.ए. के तहत उपर्युक्त सब्सिडी वाले मूल्यों को जारी रखने का निर्णय लिया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा- 40 में प्रावधान है कि राज्य सरकारें, केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुरूप इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बना सकती हैं।

एन.एफ.एस.ए. का प्रभाव

  • एन.एफ.एस.ए. 2013 में शामिल प्रमुख पी.डी.एस. सुधारों में से एक पी.डी.एस. कवरेज का विस्तार था। इसका उद्देश्य बहिष्करण संबंधी त्रुटियों को कम करना था किंतु इसका लीकेज को कम करने पर 'स्पिलओवर प्रभाव' था। 
  • एन.एफ.एस.ए. से पहले वर्ष 2011-12 में 50% से कम परिवारों के पास राशन कार्ड थे। 
    • यह वर्ष 2004-05 की तुलना में सुधार था क्योंकि इस दौरान एक-चौथाई से भी कम (24%) परिवार पी.डी.एस. का उपयोग कर रहे थे।
    • वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 के बीच सुधार छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा जैसे राज्यों में सुधारों से प्रेरित था। 
  • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey : HCES) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 में PDS से खरीदारी करने वाले परिवारों का अनुपात बढ़कर 70% हो गया है।

PDS कवरेज में सुधार के लिए उतरदायी कारक 

  • पी.डी.एस. की कीमतों में कमी
  • खाद्यान्न की डोरस्टेप डिलीवरी
  • रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण
  • पंचायतों एवं स्वयं सहायता समूहों को पी.डी.एस. दुकानें सौंपकर इनके प्रबंधन का निजीकरण 
  • इन सुधारों को एन.एफ.एस.ए. 2013 (अध्याय V) में शामिल किया गया था।
  • कुछ अध्ययनों के अनुसार आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (ABBA) के एकीकरण से PDS में सुधार हुआ है। हालाँकि, प्राथमिक सर्वेक्षणों के आँकड़े इसका समर्थन नहीं करते हैं।

आगे की राह 

  • वर्तमान में PDS सामाजिक नीति का एक कार्यात्मक साधन है, जो कई लोगों को खाद्य सुरक्षा की गारंटी देता है। 
  • कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इसने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के साथ-साथ राहत प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
  • वर्तमान में विलंबित जनगणना में तेजी पर बल दिया जाना चाहिए जिससे अधिकांश वंचित समूहों तक इसका लाभ सुनिश्चित किया जा सके। 
  • PDS में दालों एवं खाद्य तेल जैसी अधिक पौष्टिक वस्तुओं को शामिल करना चाहिए ताकि खाद्य सुरक्षा के साथ ही लोगों के पोषण जीवन स्तर में भी सुधार हो।
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