(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भौगोलिक विशेषताएँ और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन तथा इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव)
संदर्भ
नदी से रेत का अत्यधिक निष्कर्षण प्राकृतिक संतुलन के लिये एक बड़ा खतरा है। इससे जलीय पौधे और सूक्ष्मजीवों के साथ-साथ नदी तंत्र की खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप जीवों की भोजन आपूर्ति में कमी से इनकी संख्या में कमी आती है और स्थानीय रूप से इनके विलुप्त होने का खतरा पैदा हो जाता है।
रेत खनन
- रेत बारीक विखंडित चट्टान और खनिज टुकड़ों से बनी एक दानेदार सामग्री है। रेत का निर्माण मंद भूगर्भीय प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है तथा इसका वितरण भी असमान है।
- खान एवं खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम 1957 के अनुसार, रेत को ‘गौण खनिज’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- रेत खनन से तात्पर्य मुख्यत: एक खुले गड्ढे के माध्यम से रेत का निष्कर्षण है किंतु कभी-कभी समुद्र तटों और अंतर्देशीय टीलों से इसका खनन या समुद्र और नदी तल से इसका निष्कर्षण किया जाता है।
- रेत का उपयोग प्राय: निर्माण सामग्री के रूप में किया जाता है।
रेत खनन की स्थिति
- जल के बाद मात्रा के हिसाब से कारोबार किये जाने वाले दूसरे सबसे बड़े प्राकृतिक संसाधन में रेत और बजरी निष्कर्षण शामिल हैं, लेकिन अभी तक इनके विनियमन का अभाव है।
- वैश्विक रेत की मांग का 85% से 90% खदानों तथा रेत और बजरी के गड्ढों से पूरा किया जाता है, वहीं नदियों और समुद्र तटों से निष्कर्षित की गई 10% से 15% बालू पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के कारण एक गंभीर चिंता का विषय है।
- रेगिस्तानी रेत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बाबजूद निर्माण कार्यों के लिये उपयुक्त नहीं है।
रेत और लघु खनिज के लिये सतत खनन संबंधी दिशा-निर्देश
- ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट के माध्यम से नदी पर एकल पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में ध्यान केंद्रित करते हुए खनन के संबंध में निर्णय लिया जाता है।
- इस रिपोर्ट के आधार पर ही यह तय किया जाता है की किस स्थान पर खनन को प्रतिबंधित किया जा सकता है। इसके लिये इसरो, रिमोट सेंसिंग डाटा और ग्राउंड ट्रूथिंग का भी उपयोग किया जाता है।
- सतत खनन के लिये केवल उतनी मात्रा में सामग्री निकालना शामिल है जो प्रत्येक वर्ष निर्मित हो सकती है।
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अत्यधिक खनन से चिंताएँ
समुद्री तट का क्षरण
- इससे समुद्री जीवन की हानि, समुद्री मत्स्य पालन तथा जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
- समुद्र स्तर में वृद्धि और तटीय विकास के कारण पहले से संवेदनशील समुद्र तटों पर दबाव में वृद्धि।
नदी तट का क्षरण
- इससे मीठे पानी की समस्या और पानी की गुणवत्ता में गिरावट।
- नदी तटों पर बढ़ती अस्थिरता से बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि तथा भूजल स्तर में कमी।
- घड़ियाल और मीठे पानी के कछुओं के प्रजनन क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप।
पक्षियों पर प्रभाव
- रेत खनन से पक्षियों के लिये नदी में भोजन की उपलब्धता में कमी।
- पक्षियों के आवास स्थल की क्षति।
- बेसिंग साइटों, घोंसले एवं शिकार पैटर्न आदि में परिवर्तन।
- कई पक्षी रेत के किनारों पर अंडे देते हैं।
अन्य प्रभाव
- तूफान-लहरों की तीव्रता में वृद्धि।
- पर्यटन स्थलों में निर्माण से प्राकृतिक रेत का ह्रास।
- इससे पर्यटन स्थल अनाकर्षक हो जाते हैं।
- अप्रत्यक्ष परिणाम-
- सौंदर्य बोध में कमी।
- स्थानीय आजीविका की क्षति।
- उद्योग का विनियमन न होने से श्रमिकों के लिये सुरक्षा जोखिम।
चुनौतियाँ
- भारत में रेत खनन के पैमाने का मूल्यांकन करने के लिये किसी व्यापक मूल्यांकन प्रणाली की अनुपलब्धता।
- चीन और भारत नदियों, झीलों और समुद्र तटों पर रेत निष्कर्षण प्रभावों के लिये महत्वपूर्ण हॉटस्पॉट की सूची में शीर्ष पर हैं।
- अवैध खनन से पर्यावरण के साथ-साथ सरकारी खजाने को भारी नुकसान।
- मृदा की बढ़ती मांग से इसके गठन और भूमि की मृदा धारण क्षमता पर प्रभाव।
- विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र द्वारा उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के तट पर किये गए क्षेत्रीय अध्ययनों में यह निष्कर्ष सामने आया है।
- वृहद् वैज्ञानिक शोध का आभाव
- चंबल नदी पर रेत खनन के प्रभाव पर शोध से पता चलता है कि रेत खनन से नदी प्रणाली की जैव विविधता को खतरा है।
- यमुना नदी तथा उसकी जैव विविधता पर रेत की निकासी का प्रभाव अब तक महत्त्वपूर्ण विषय नहीं रहा है।
निष्कर्ष
बालू खनिज के संरक्षण के लिये उत्पादन और खपत माप में निवेश व निगरानी और योजना उपकरण की भी आवश्यकता होती है। इसके लिये एक स्थायी समाधान प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है। गुजरात जैसी राज्य सरकारों ने नदी के तल से रेत निष्कर्षण और परिवहन की मात्रा की निगरानी के लिये उपग्रह इमेजरी का उपयोग किया है।