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भारतीय अर्थव्यवस्था पर रेटिंग का प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा - आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विकास प्रक्रिया तथा उद्योग- संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका )

क्या है क्रेडिट रेटिंग एजेंसी?

  • ‘क्रेडिट रेटिंग एजेंसी’ एक प्रकार की इकाई (समूह या सरकारी कंपनी) है, जो वित्तीय उत्तरदायित्त्व और जोखिमों का आकलन करती है। इसके आधार पर अर्थव्यवस्था की स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
  • यह संस्थानिक निवेशकों को जोखिम उठाने तथा भुगतान के लिये एक निर्धारक आधार की भूमिका निभाती है। CRISIL, ICRA CARE, BRICKWORK आदि भारत की प्रमुख रेटिंग एजेंसियाँ हैं, जबकि MOODY, S&P, FITCH GROUP इत्यादि वैश्विक स्तर की रेटिंग एजेंसियाँ हैं।
  • उल्लेखनीय है कि सेबी सभी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को विनियमित करता है। रेटिंग को अंग्रेजी के कुछ अक्षरों के माध्यम से इंगित किया जाता है, जैसे- AAA, BBB, A, B आदि।

क्रेडिट रेटिंग पर भारत का दृष्टिकोण

  • पूर्व में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की पारदर्शिता को लेकर अविश्वसनीयता प्रदर्शित की जा चुकी है। साथ ही, रेटिंग देने की कार्य प्रणाली को और अधिक स्पष्ट व विषयगत बनाए जाने की माँग की जाती रही है ।
  • भारत रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग और अर्थवयवस्था के मूलभूत स्वरुप के सुसंगत न होने की बात करता रहा है। साथ ही, वर्तमान बजट के परिप्रेक्ष्य में भी रेटिंग से बहुत अधिक प्रभावित न होने की भी बात की जा रही है।
  • भारत ने अक्सर कहा है कि सभी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को रेटिंग एजेंसियों के पूर्वाग्रह व व्यक्तिवादी तरीकों के लिये एकजुट होना होगा ताकि भविष्य में गहराने वाले संकट से निपटा जा सके।

भारत द्वारा रेटिंग बढ़ाने के उपाय

  • भारत की प्रशासनिक व्यवस्था विनियामक मानकों का पालन कम करती है, जबकि कानूनी नियमों को अधिक अध्यारोपित करती है। अतः कानूनी हस्तक्षेप कम से कम किये जाने की आवश्यकता है।
  • यह संभव नहीं है कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का विनियमन किया जा सके; इसलिये हर तरह के परिणामों के लिये सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना अनुचित है। ऐसा माना जाता है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक नियंत्रित करता है, जिस कारण निवेशकों को बाज़ार में तेज़ी से निवेश करने में समस्या होती है। साथ ही, वे कानूनी प्रक्रिया से जुड़ी दिक्कतों में भी उलझ जाते हैं।
  • भारत अपने पर्यवेक्षण प्रक्रिया को कम करके विनियमन क्रिया को सरल बना सकता है, जिससे वास्तविक स्थिति के आधार पर नीति-निर्माता सही निर्णय ले सकें।
  • बैंक तथा विनियामक संस्थाओं के बीच सूचनाओं की असमानता को देखते हुए पूँजी की गुणवत्ता पर निगरानी करते रहना चाहिये।
  • हालाँकि, स्वतंत्र रेटिंग एजेंसियों का बाज़ार पर बहुत प्रभाव देखने को नहीं मिलता है लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया इसका एफ.पी.आई. में अंश तथा कर्ज साधन के प्रवाह पर असर पड़ सकता है।
  • हाल ही में एस. एंड पी. तथा मूडी ने भारत को BBB3 एवं BBB (-) रेटिंग दी है, जो सबसे कम निवेश को दर्शाती है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत कई मानदंडों पर स्पष्ट रूप से निम्न स्थिति में है, इसके बावजूद अर्थव्यवस्था के मूलभूत स्वरुप पर इसकी झलक कम दिखती है, अत: यह कहा जा सकता है कि रेटिंग एजेंसियों को स्वयं को अधिक पारदर्शी एवं विषयगत बनाने की आवश्यकता है।
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