(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपपत्र- 2 : भारतीय संवैधानिक योजना की अन्य देशों के साथ तुलना)
संदर्भ
- संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर भड़की हिंसा के आरोप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही पुनः शुरू की जा सकती है।
- इससे पूर्व वर्ष 2019 में ‘पद के दुरूपयोग के मामले’ में ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी। उनपर आरोप था कि उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति पर अपने प्रतिद्वंदी ‘जो बाइडन’ के खिलाफ जाँच बैठाने का दबाव डाला था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में अब तक तीन राष्ट्रपतियों, एंड्रयू जॉनसन (वर्ष 1868), बिल क्लिंटन (वर्ष 1998) और डोनाल्ड ट्रम्प (वर्ष 2019) के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा चुका है, लेकिन वे सभी सीनेट में बरी हो गए थे। वर्ष 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को महाभियोग की कार्यवाही का सामना करना पड़ा था, लेकिन मतदान से पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
मुख्य बिंदु
- इस बात की संभावना कम है कि रिपब्लिकन पार्टी की बहुमत वाली सीनेट में ट्रम्प को दोषी ठहराने के लिये वोट किये जाएँ विशेषकर जब दो सप्ताह से भी कम समय बचा है।
- यदि ट्रम्प के खिलाफ इस तरह की कोई कार्यवाही होती है तो वे अमेरिकी इतिहास के पहले ऐसे राष्ट्रपति हो जाएंगें जिनके विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही दो बार शुरू की गई।
- साथ ही, वर्ष 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भी ट्रम्प की उम्मीदवारी पर रोक लग सकती है साथ ही उनके सार्वजनिक पद धारण करने पर भी रोक लग सकती है।
- ध्यातव्य है कि, कुछ रिपब्लिक पार्टी के नेताओं ने भी ट्रम्प के खिलाफ मतदान करने की बात कही है।
महाभियोग से संबंधित मूलभूत तथ्य/बातें
- सर्वप्रथम, महाभियोग की जाँच होगी और साक्ष्य ‘सदन न्यायपालिका समिति’ (House Judiciary Committee)को भेजे जाएंगे। समिति सुनवाई करने और मसौदा लेख तैयार करने के बाद उसे सदन में भेजेगी।
- इस बार कार्यवाही के लिये यद्यपि बहुत कम समय उपलब्ध है फिर भी डेमोक्रेट्स को ट्रम्प पर लगे आरोपों की जाँच करवाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि दंगे के दौरान कांग्रेस के अधिकांश सदस्य वहाँ मौजूद थे। ऐसी स्थिति में बिना किसी सुनवाई या समिति की कार्रवाई के सदन में ‘फ्लोर-टेस्ट’ करवाया जा सकता है।
- सदन में महाभियोग की प्रक्रिया पर मतदान किये जाने के बाद साक्ष्य आदि सीनेट को भेजे जाते हैं, जहाँ इसकी जाँच की जाती है और दोषी ठहराने या बरी करने के लिये अंतिम रूप से मतदान किया जाता हैं।
क्या है 25वाँ संशोधन?
- यदि उपराष्ट्रपति माइक पेंस एवं मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों ने 25वें संशोधन के तहत ट्रम्प को पद से हटा दिया, तो सदन को महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- इस संशोधन के द्वारा उपराष्ट्रपति एवं मंत्रिमंडल के बहुमत के द्वारा राष्ट्रपति को पद के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है और फिर उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है।
त्वरित महाभियोग वोट
- सदन का कोई भी सदस्य महाभियोग का प्रस्ताव पेश कर सकता है और इस प्रक्रिया की शुरुआत कर सकता है।
- प्रक्रिया के शुरू होने के बाद इस पर इस पर चर्चा भी तुरंत शुरू की जा सकती है।
- इस प्रक्रिया की शुरुआत के लिये डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत की ज़रुरत पड़ेगी जो सदन में उनके पास है (222 के मुकाबले 211)।
ट्रम्प पर आरोप
- डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों द्वारा आरोप लगाया गया है कि ट्रम्प ने जानबूझकर ऐसे बयान दिये हैं, जिनके परिणामस्वरूप राजधानी में हिंसात्मक गतिविधियाँ शुरू हुईं तथा चुनाव के समय भी वे चुनाव नतीज़ों में लगातार बाधा डालने एवं नतीजों को बदलने के लिये अनावश्यक दबाव डाल रहे थे।
- चुनाव के दौरान ट्रम्प द्वारा लगाए गए धोखाधड़ी के सभी आरोपों को चुनाव अधिकारियों और न्यायधीशों द्वारा खारिज कर दिया गया था।
- इसके अलावा ट्रम्प पर यह आरोप भी है कि उन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र प्रणाली पर प्रहार किया तथा सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण में भी रूकावट पैदा की और राष्ट्रपति पद की गरिमा को भी खंडित किया।
महाभियोग के निहितार्थ
- आगामी 20 जनवरी तक सीनेट के सत्र पूर्ण प्रभाव के साथ नहीं चल सकेंगे चूँकि जो बाइडन शपथ ग्रहण कर सत्तासीन हो जाएँगे अतः ट्रम्प पर महाभियोग लगाने का ज़्यादा फायदा नहीं होगा।
- इसके अलावा ट्रम्प को दोषी ठहराने के लिये दो-तिहाई बहुमत की ज़रुरत पड़ेगी जो डेमोक्रेटिक पार्टी के लिये काफी ज़्यादा है।
- रिपब्लिक पार्टी ने यह भी कहा है कि इस प्रकार के महाभियोग के मामले से देश विभाजित ही होगा तथा इसके फायदे कम और नुकसान ज़्यादा होंगें
- लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी का कहना है कि यह महाभियोग का मुकदमा मिसाल होगा ताकि भविष्य में न कोई राष्ट्रपति इस प्रकार के विद्रोह का कारण न बने।