(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं सम्बंधित उद्योग, बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)
पृष्ठभूमि
सरकार ने ‘एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल’ कार्यक्रम (Ethanol Blended Petrol Programme) के तहत वर्ष 2022 तक पेट्रोल में 10% बायो-एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है, जिसको बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 20% करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसका उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाना और आयातित कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता को कम करना है। वर्तमान में, शराब/एथेनॉल का उत्पादन करने के लिये एक विशेष प्रकार के शीरा का प्रयोग किया जा रहा है। 1-जी और 2-जी जैव-एथेनॉल संयंत्र बायो-एथेनॉल को मिश्रण के लिये उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हैं। हालाँकि, इन संयंत्रों को निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
कुछ पारिभाषिक शब्द
बायो-एथेनॉल
- जैवभार (Biomass) से उत्पन्न एथेनॉल को बायो-एथेनॉल कहा जाता है। बायो-एथेनॉल के लिये जैवभार के रूप में शर्करा युक्त सामग्री, जैसे- गन्ना, चुकंदर, मीठे चारे आदि के साथ-साथ स्टार्च युक्त मकई, कसावा, पके आलू, शैवाल, लकड़ी के कचरे, कृषि और वन अवशेष आदि को शामिल किया जाता है।
जैव-सी.एन.जी.
- जैव-गैस का शुद्ध रूप, जिसकी संरचना और ऊर्जा क्षमता जीवाश्म आधारित प्राकृतिक गैस के समान होती है। इसे कृषि अवशेषों, पशुओं के गोबर, खाद्य अपशिष्ट, शहरी ठोस अपशिष्ट (MSW) और सीवेज पानी से उत्पन्न किया जाता है।
ड्रॉप-इन ईंधन
- जैवभार, कृषि अपशिष्टों, एम.एस.डब्लू, प्लास्टिक अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट आदि से उत्पादित तरल ईंधन, जो कि मोटर स्पिरिट, हाई स्पीड डीज़ल और जेट ईंधन के लिये भारतीय मानकों पर खरा उतरता है। इंजन प्रणाली में बिना कोई संशोधन किये इसको यथावत या मिश्रित रूप में वाहनों में उपयोग किया जाता है। यह वर्तमान पेट्रोलियम वितरण प्रणाली का भी उपयोग कर सकता हैं।
एथेनॉल और शीरा (Ethanol and Molasses)
- एथेनॉल को ‘एथिल एल्कोहल’ भी कहते हैं। यह एक प्रकार का तरल है। 95% शुद्धता की स्थिति में इसे ‘रेक्टिफाइड स्पिरिट’ या ‘शोधित स्पिरिट’ कहते हैं। इसका प्रयोग मादक पेय (Alcoholic beverages) में नशीले घटकों (Intoxicating Ingredient) के रूप में होता है।
- लगभग 99% शुद्धता की स्थिति में एथेनॉल का प्रयोग पेट्रोल के साथ मिलाने के लिये भी होता है।
- ध्यातव्य है कि दोनों प्रकार के एथेनॉल शीरा से बने होते हैं। शीरा, चीनी निर्माण से प्राप्त एक उप-उत्पाद है। गन्ने में कुल किण्वनीय शर्करा (TFS) सामान्यतः 14% होती है। टी.एफ.एस. घटक में सुक्रोज के साथ-साथ शर्करा ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज़ होता है।
- अधिकतर टी.एफ.एस. क्रिस्टलीकरण द्वारा शर्करा या चीनी में बदल जाते हैं तथा बचे हुए हिस्से को ‘शीरा’ कहते हैं।
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1-जी और 2-जी जैव-ईंधन संयंत्र
- 1-जी जैव-एथेनॉल संयंत्र बायो-एथेनॉल के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में चीनी उत्पादन से प्राप्त उप-उत्पादों, जैसे- गन्ने का रस और शीरा का उपयोग करते है।
- जबकि 2-जी जैव-एथेनॉल संयंत्र बायो-एथेनॉल का उत्पादन करने के लिये कच्चे माल के रूप में ‘जैवभार अधिशेष’ और ‘कृषि अपशिष्ट’ का उपयोग करते हैं। जैवभार अधिशेष या कृषि अपशिष्ट को दूसरी पीढ़ी (2-जी) की प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके एथेनॉल में परिवर्तित किया जा सकता है।
- अध्ययनों के अनुसार, भारत में जैवभार अधिशेष की इतनी मात्रा का आकलन किया गया है, जिससे प्रति वर्ष 3000 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन किया जा सकता है।
- वर्तमान में, भारतीय तेल विपणन कम्पनियों के पास पेट्रोल के साथ मिश्रण करने के लिये बायो-एथेनॉल का घरेलू उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं है।
- चीनी मिलें, जो इन कम्पनियों के लिये जैव-एथेनॉल की प्रमुख घरेलू आपूर्तिकर्ता हैं, 3.3 बिलियन लीटर की कुल माँग का केवल 57.6% ही आपूर्ति कर पाने में सक्षम हैं।
आपूर्ति में कमी का कारण
- विशेषज्ञों के अनुसार, बहुत सी चीनी मिलें जो बायो-एथेनॉल का उत्पादन करने के लिये अधिक उपयुक्त हैं, उनके पास जैव ईंधन संयंत्रों में निवेश करने के लिये वित्तीय स्थिरता की कमी है। साथ ही, भविष्य में बायो-एथेनॉल के मूल्य की अनिश्चितता को लेकर भी निवेशकों के बीच चिंता है। सामान्य तौर पर, चीनी उद्योग स्वयं ही भुगतान और बैलेंस शीट के मुद्दे से परेशान है।
- चीनी मिलों को आपूर्ति की अधिकता की स्थिति में भी सरकार द्वारा निर्धारित गन्ने की ऊँची कीमत चुकानी पड़ती है। ध्यातव्य है कि गन्ना और बायो-एथेनॉल दोनों की कीमतें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
- वर्तमान में, 2-जी संयंत्रों में बायो-एथेनॉल के उत्पादन के लिये आवश्यक कृषि अपशिष्ट प्राप्त करने की कीमत देश में निजी निवेशकों के लिये व्यवहार्य नहीं है।
- केंद्र सरकार को 2-जी बायो-एथेनॉल उत्पादन में निवेश को आकर्षक बनाने के लिये कृषि अपशिष्टों की भी कीमत तय करनी चाहिये।
- वर्तमान में, तीन राज्य-संचालित तेल विपणन कम्पनियाँ 2-जी जैव-एथेनॉल संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं।
बायो-एथेनॉल उत्पादन में निवेश को बढ़ाने के उपाय
- सरकार को एक ऐसे तंत्र की घोषणा करनी चाहिये, जिसके द्वारा बायो-एथेनॉल की कीमत तय की जाए। ऐसा करके सरकार बायो-एथेनॉल की कीमत तय करने में अधिक स्पष्टता दिखा सकती है, जिससे चीनी मिलों को भविष्य में योजना निर्माण में लाभ होगा।
- बायो-एथेनॉल के प्रयोग में तेज़ी लाने के लिये विश्व भर में सरकारों द्वारा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम में 2-जी संयंत्रों से उत्पादित होने वाले एथेनॉल की एक नियत मात्रा के उपयोग को सुनिश्चित किया जाना चाहिये। इससे इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- राज्य सरकारों को ऐसे डिपो या गोदाम स्थापित करने की भी आवश्यकता है, जहाँ किसान कृषि अपशिष्ट को छोड़ सकें।
- उल्लेखनीय है कि कुछ माह पूर्व ही ‘राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति’ (NBCC) द्वारा ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के पास उपलब्ध अतिरिक्त चावल से एथेनॉल बनाने को स्वीकृति प्रदान की गई है।
लाभ
- भारत लम्बे समय से गैर-नवीकरणीय ऊर्जा हेतु दूसरे देशों से आयात पर निर्भर रहा है। इसी संदर्भ में भारत में एथेनॉल का प्रयोग पेट्रोलियम उत्पादों के साथ मिश्रण करने में हो रहा है।
- इसी कड़ी में भारत सरकार द्वारा एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम (EBP) की शुरुआत वर्ष 2003 में की गई थी। साथ ही, पर्यावरण सम्बंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण का कार्यक्रम शुरू किया गया था।
- 2-जी बायो-एथेनॉल ने न केवल ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत प्रदान किया, बल्कि किसानों को अधिक आय प्रदान करने और उन्हें कृषि अपशिष्ट जलाने से रोकने में भी मदद की है।
- इससे किसानों की आय को दोगुना करने के साथ-साथ पराली का पर्यावरण प्रदूषण कम करने के लिये अधिकतम उपयोग किया जा सकेगा। विदित है कि पराली वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
- इस कार्यक्रम से, किसानों के पारिश्रमिक तथा आजीविका में वृद्धि होने के साथ-साथ कच्चे तेल के आयात में सब्सिडी प्रदान करने व विदेशी मुद्रा की बचत में भी सहायता मिल रही है।
- भारत के लिये जैव ईंधन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्वच्छ भारत’ जैसे अभियानों में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। यह कदम रोज़गार सृजन करने और अपशिष्ट से सम्पदा निर्माण करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिये भी अच्छा अवसर प्रदान कर रहा है।
आगे की राह
सरकार ने एथेनॉल उत्पादन क्षमता बढ़ाने और संवर्धन के जरिये चीनी क्षेत्र तथा गन्ना किसानों की सहायता के लिये कई उपाय किये हैं। सरकार ने वर्ष 2018 में ‘जैव-ईंधन राष्ट्रीय नीति’ अधिसूचित की, जिसके तहत अधिकता वाले मौसम में एथेनॉल के उत्पादन के लिये शीरा और गन्ने के रस का उपयोग किया जा सकता है। एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम (ई.बी.पी.) के तहत एथेनॉल की आपूर्ति से बेवजह चीनी के भण्डारण में कमी आएगी और राजस्व बढ़ने के कारण चीनी मिलों में नगदी बढ़ेगी, जिससे वे किसानों का बकाया गन्ना मूल्य चुका सकेंगे। देश में अधिशेष जैवभार वाले स्थानों की पहचान करने पर भी विशेष बल दिया जाना चाहिये। जैव ईंधन उत्पादन के लिये स्वदेशी फीडस्टॉक की आपूर्ति बढ़ाने में ग्राम पंचायत और समुदाय की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भी पहचाना जाना चाहिये।