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ब्रिटेन में कोयला उपयोग समाप्ति का भारत के लिए निहितार्थ

(मुख्यपरीक्षा,सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: दक्षिण एशिया एवंभारतीय उपमहाद्वीप सहितविश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण,भारत सहितविश्वके विभिन्न भागों में प्राथमिक, द्वितीयक वतृतीयक क्षेत्र के उद्योगों को स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार कारक)

संदर्भ 

हाल ही में ब्रिटेन कोयला आधारित विद्युत उत्पादन को समाप्त करने वाला पहला G-7 देश बन गया है।

ब्रिटेन में कोयला उपयोग की शुरुआत 

  • ब्रिटेन ने 1882 में लंदन के फ्लीट स्ट्रीट के पास सबसे पहला ज्ञात सार्वजनिक कोयला-आधारित बिजली संयंत्र स्थापित किया था। 
  • 1960 के दशक के मध्य तक कोयला ब्रिटेन में बिजली उत्पादन का  मुख्य आधार बना रहा जिसने आधी सदी से भी ज़्यादा समय तक घरों, उद्योगों और व्यवसायों को विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की। 
  • वर्ष 1920 में ब्रिटेन में कोयला रोजगार चरम पर था, जब देश भर में लगभग 3,000 खदाने कार्यशील थी। 
    • इस समय ब्रिटेन में लगभग 100 छोटे कोयला-आधारित बिजली संयंत्र थे, जो समीप के शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों को विद्युत आपूर्ति करते थे। 
  • 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन ने कोयला निर्यात पर बल दिया। इस दौरान ब्रिटेन की वैश्विक कोयला निर्यात में लगभग 30% हिस्सेदारी थी। 
  • 1960 के दशक के बाद ब्रिटेन ने धीरे-धीरे प्राकृतिक गैस, परमाणु और हाल ही में पवन एवं सौर ऊर्जा की ओर रुख किया गया।

ब्रिटेन में कोयले का चरणबद्ध उन्मूलन 

  • ब्रिटेन के कोयले के चरणबद्ध उन्मूलन की शुरुआत सामान्यत: वर्ष 1952 के लंदन के विनाशकारी ग्रेट स्मोग से हुई जिसके बाद वर्ष 1956 के स्वच्छ वायु अधिनियम जैसे पर्यावरण संबंधी कानून पारित किए गए। 
    • इसके अतिरिक्त भू-राजनीतिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक दबाव ने भी ब्रिटेन को कोयला उपयोग के चरणबद्ध समाप्ति के लिए विवश किया। 
  • वर्ष 1965 में उत्तरी सागर में प्राकृतिक गैस की खोज और शीत युद्ध के चरम पर सोवियत संघ से कोयले के आयात पर प्रतिबंध ने संयुक्त रूप से कोयले के उपयोग से दूर जाने की प्रक्रिया को तेज कर दिया। 
  • 1980 के दशक के मध्य में मार्गरेट थैचर सरकार द्वारा लगभग 20 खदानों को जबरन बंद कर दिया गया। 

ब्रिटेन द्वारा कोयला उपयोग में कमी के कारण

पेरिस जलवायु समझौते के तहत प्रतिबद्धता 

  • वर्ष 2015 में ब्रिटेन ने पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए व्यापक उपायों के हिस्से के रूप में अगले दशक के भीतर कोयला संयंत्रों को बंद करने की योजना की घोषणा की थी। 
    • वर्ष 2015 में ब्रिटेन की लगभग 30%विद्युत उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों से होता था लेकिन पिछले साल यह घटकर सिर्फ़ 1% रह गया।
  • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में कमी से ब्रिटेन के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आई है। 

नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य 

  • ब्रिटेन का लक्ष्य वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना है। इसके लिए वह वर्ष 2030 तक विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने की योजना बना रहा है। 
  • वर्तमान में ब्रिटेन पवन और सौर जैसी नवीकरणीय ऊर्जा विकल्प में तेज़ी से वृद्धि के अवसर की तलाश कर रहा है।

जी-7 देशों  के मध्य सहमति

  • इसी वर्ष अप्रैल में G-7 समूह के औद्योगिक देशों ने अगले दशक की पहली छमाही तक कोयला आधारित विद्युत उत्पादन को समाप्त करने पर सहमति जताई थी।
    • हालाँकि जर्मनी (25%) एवं जापान (30%) अभी भी कोयला आधारित बिजली उत्पादन संयंत्रों पर अत्यधिक निर्भर है।
  • यूनाइटेड किंगडम ने कोयला उपयोग के चरणबद्ध समाप्ति  को वैश्विक स्तर पर दोहराने का भी आह्वान किया है।

भारत द्वारा कार्बन उत्सर्जन

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश  है। 
  • एक अनुमान के अनुसार भारत द्वारा वर्ष 2023 में लगभग 2.9 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन किया गया। इस दौरान भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2 टन था। 
  • हालाँकि यह वैश्विक औसत से फिर भी कम था। 

भारत में कोयला उपयोग 

  • भारत की पहली कोयला खदान रानीगंज कोयला क्षेत्र वर्तमान पश्चिम बंगाल  एवं झारखंड में विस्तृत है। इसे वर्ष 1774 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित किया गया था। 
    • इसने भारत के पूर्वी एवं मध्य राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अधिकांश हिस्सों से बड़े पैमाने पर कोयला निष्कर्षण को बढ़ावा दिया। 
  • भारत का पहला कोयला आधारित बिजली संयंत्र हुसैन सागर थर्मल पावर स्टेशन था, जिसे वर्ष 1920 में निज़ाम शासन के दौरान हैदराबाद में स्थापित किया गया था। 
  • वर्ष 1956 में मुंबई के पास ट्रॉम्बे पावर स्टेशन की स्थापना के साथ ही तापीय संयंत्रों को भारत के मुख्य ऊर्जा आधार के रूप में घोषित किया गया। 
  • भारत ने पड़ोसी म्यांमार और श्रीलंका को कोयला निर्यात किया है, लेकिन इसने अपने अधिकांश भंडार का उपयोग घरेलू विद्युत उत्पादन के लिए किया है। 
  • वर्तमान में बिजली की मांग में लगातार वृद्धि के कारण भारत कोयले का आयात भी कर रहा है। भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन  में लगभग 70%  में कोयले की हिस्सेदारी  है। 
  • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद के एक अध्ययन का अनुमान है कि भारत के तापीय विद्युत संयंत्र लगभग 4,00,000 लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।

भारत का नेट-जीरो लक्ष्य 

  • वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित COP-26 में भारत और चीन ने अंतिम घोषणा में संशोधन की मांग की और कोयले को ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्त’ करने के बजाय ‘चरणबद्ध तरीके से कम करना’ वाक्यांश पेश किया। 
  • भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने और वर्ष 2050 तक अपनी आधी ऊर्जा आवश्यकताओं को नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करने का संकल्प लिया है।

भारत के लिए निहितार्थ 

  • ब्रिटेन का हालिया प्रयोग कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए अच्छा हो सकता है लेकिन विकासशील एवं कम विकसित देशों के लिए अधिक अनुकूलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। 
  • भारत ने शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 45 और वर्षों की पर्याप्त समयसीमा निर्धारित की है। साथ ही भारत के नवीकरणीय क्षमता में पहले से ही प्रभावशाली वृद्धि हुई है। 
  • भारत को प्लांट डीकमीशनिंग, क्षेत्रीय पुनर्विकास कार्यक्रमों और खनिकों एवं बिजली संयंत्र कर्मचारियों के पुनर्प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
  • भारत के ऐतिहासिक रूप से कोयले पर निर्भर क्षेत्र देश होने के कारण केवल एक समग्र, पारदर्शी और योजना दृष्टिकोण ही समावेशी एवं न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण को गति प्रदान कर सकता है।
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