New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM | Call: 9555124124

 कॉर्पोरेट कराधान हेतु वैश्विक समन्वय की आवश्यकता और निहितार्थ

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप; वृद्धि एवं विकास संबंधित मुद्दे) 

संदर्भ

अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट एल. येलन द्वारा वैश्विक समन्वय के लिये प्रस्तावित ‘निगम कर’ के व्यापक निहितार्थ हो सकते हैं। यह कॉर्पोरेट कर दरों में कमी को लेकर विभिन्न देशों के मध्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने संबंधी प्रतिस्पर्धा को समाप्त करेगा।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमेरिकी वित्त मंत्री द्वारा ‘वैश्विक न्यूनतम निगम कर’ को लागू करने हेतु प्रयास करने का आग्रह किया गया।

समान निगम कर की आवश्यकता क्यों

  • हालाँकि, इस पहल की प्रतीक्षा पहले से ही की जा रही थी किंतु वैश्विक महामारी के प्रभाव ने विकसित देशों को भी इस संबंध में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान किया है।
  • कोविड- 19 आपदा के चलते वर्तमान में, सरकारों को व्यापक संसाधनों की आवश्यकता है ताकि वे आय हस्तांतरण, सार्वजनिक सेवाओं, व्यवसायों की विफलता पर नियंत्रण आदि के माध्यम से लोगों की सहायता कर सके।
  • यद्यपि, आर्थिक मंदी के कारण सरकारी संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से राजकोषीय घाटा भी रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
  • महामारी के दौरान उच्च राजकोषीय घाटे के बावजूद शेयर बाज़ारों में पूँजी का प्रवाह निकट समय में ‘माँग में वृद्धि’ की संभावना के कारण बढ़ा है।
  • फलतः जिन निवेशकों ने शेयर बाज़ार में बढ़त हासिल किया हैं तथा जिन्होंने महामारी के दौरान रोज़गार और आय के साधन खो चुके हैं, उनके मध्य असमानता में भारी वृद्धि हुई है।

उच्च बजट घाटा

  • बाइडेन प्रशासन ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से $3 ट्रिलियन का ‘पैकेज’ प्रस्तावित किया है। यह पूर्व में घोषित $1.9 ट्रिलियन के पैकेज के अतिरिक्त होगा, जिसे वर्ष 2021 में खर्च किया जाएगा।
  • इससे पूर्व ट्रंप प्रशासन ने भी वर्ष 2020 में क्रमशः $900 बिलियन तथा $2 ट्रिलियन के दो पैकेज की घोषणा की थी। इस प्रकार पूर्व में विद्यमान घाटे को वर्ष 2020 तथा 2021 में जी.डी.पी. के 15 प्रतिशत के अतिरिक्त घाटे को शामिल किया जा रहा है, यह बजटीय घाटे का एक अभूतपूर्व स्तर है।

अतिरिक्त कर संग्रहण

  • अतिरिक्त कर संग्रहण से इस बृहत् घाटे को कम करने में सहायता मिलेगी। यही वजह है कि अमेरिकी प्रशासन इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहा है।
  • अमेरिकी व्यावसायिक वर्ग तथा रुढ़िवादियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। हालाँकि, जेफ बेज़ोस जैसे अमेरिकियों ने अमीरों पर अधिक कर लगाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
  • अमेरिका तथा यूरोप के अमीरों पर अधिक कर लगाने का प्रस्ताव वर्ष 2011 से ही चर्चा का विषय रहा है। वैश्विक वित्तीय संकट (2007-09) के दौरान सर्वप्रथम वॉरेन बफेट ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूती प्रदान करने के लिये इस विचार को प्रस्तुत किया था।
  • इसके बाद यह प्रस्ताव कई बार आया लेकिन निगमों पर कर बढ़ाने की बजाय तत्कालीन ट्रंप प्रशासन ने जनवरी 2018 में निगम कर के उच्चतम सीमांत कर की दर को 35 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत कर दिया, जो हालिया वर्षों सर्वाधिक कटौती है।
  • इस प्रकार यह प्रतीत होता है कि निगम कर की दरों में वृद्धि करना कितना मुश्किल है तथा क्यों अमेरिकी वित्त मंत्री ने कॉर्पोरेट कराधान पर एक वैश्विक समझौते का प्रस्ताव किया है?

निगम कर की दर कम होने के कारक

  • 1990 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् पूर्वी यूरोप के राष्ट्र बुरी तरह प्रभावित हुए, उन्हें आर्थिक संकट से उबरने के लिये पूँजी की आवश्यकता थी।
  • इन परिस्थितियों में वैश्विक पूँजी को आकर्षित करने के लिये देशों ने कर की दरों में कटौती की। इसी के बाद कई अन्य देश भी कर की दरों को कम करने की होड़ में शामिल हो गए।
  • यूरोप के कई देश न सिर्फ निवेश आकर्षित करने के लिये बल्कि पूँजी को बाहर जाने से रोकने के लिये भी कर की दरों में कटौती करने के लिये मज़बूर हुए। इसका पूरे विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
  • राष्ट्रों ने संसाधनों में कमी के कारण सार्वजनिक सेवाओं पर होने वाले व्यय में कटौती की तथा निजीकरण को प्रोत्साहित किया। सरकार के इन क़दमों से शिक्षा, स्वास्थ्य तथा नागरिक सुविधाओं के लिये आवश्यक संसाधनों की कमी हुई।
  • विकासशील देशों ने भी ये जानते हुए कि निजी बाज़ार ग़रीबों के हितों के विपरीत होता है, इसके बावज़ूद भी इसी ‘मॉडल’ को अपनाया। इस प्रकार, राष्ट्रों के मध्य असमानताओं में व्यापक वृद्धि हुई।

‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ तथा राजस्व का नुकसान

  • राष्ट्रों के मध्य कर की दरों में भिन्नता होने के कारण विश्व ने ‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ (Base Erosion and Profits Shifting- BEPS) का अनुभव किया। नामतः कंपनियों ने अपने लाभ को निम्न कराधान वाले देशों में स्थानांतरित कर दिया, विशेषकर ‘टैक्स हैवंस’ देशों में।
  • उदाहरणस्वरूप, गूगल और फेसबुक जैसी लाभकारी कंपनियों पर कर बचाने के उद्देश्य अपने लाभ को आयरलैंड तथा अन्य ‘टैक्स हैवंस’ में स्थानांतरित करने के आरोप हैं।
  • यूरोपीय संघ द्वारा उक्त गतिविधियों के आरोप में इन कंपनियों पर ज़ुर्माना लगाया गया। वर्ष 2009 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि बी.ई.पी.एस. के कारण अमेरिकी राजस्व को लगभग $100 बिलियन का नुकसान हो रहा है।
  • चूँकि सभी आर्थिक सहयोग व विकास संगठन (Organization for Economic Co-operation and Development-OECD) देशों को कर की दरों में कटौती तथा बी.ई.पी.एस. के नुकसान को उठाना पड़ रहा था, अतः उसने इस परंपरा पर अंकुश लगाने की पहल की। लेकिन वे तब तक पूर्णतया सफल नहीं होंगे जब तक कि सभी राष्ट्रों के बीच समझौता नहीं हो जाता।
  • जो भी देश आर्थिक प्रतिकूलता का सामना कर रहा वो कर की दरों में कटौती करेगा तथा अन्य देश भी इस प्रथा का अनुसरण करेंगे। भारत ने भी 1990 के दशक में अपने कर की दरों में कटौती की थी।
  • हाल के वर्ष 2019 में दक्षिण-एशियाई देशों में प्रचलित निगम कर के समतुल्य रखने के लिये इसमें भारी कटौती की गई थी। इस प्रकार की कटौती से असमानता में वृद्धि होने के साथ-साथ ग़रीबों तथा गुणवत्तायुक्त सार्वजनिक सेवाओं के लिये संचालित योजनाओं के वित्तपोषण पर प्रभाव पड़ता है।

प्रतिगामी कर संरचना

  • प्रत्यक्ष करों में कटौती का एक अन्य निहितार्थ यह भी है कि सरकारें राजस्व सृजन के लिये प्रतिगामी अप्रत्यक्ष करों पर निर्भर होती हैं। सरकारों ने राजस्व सृजन के लिये मूल्य वर्धित कर तथा वस्तु एवं सेवा कर का अधिकतम प्रयोग किया है।
  • प्रतिगामी अप्रत्यक्ष कर अमीर वर्ग को अनुपातिक रूप से कम प्रभावित करता है साथ ही इसके कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है, जो ग़रीब वर्ग के लिये कष्टदायी है।
  • प्रत्यक्ष कर आय की असमानता कम करने में भी सहायक है। बढ़ती असमानता के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी और माँग में कमी होती है।
  • मंदी तथा माँग में वृद्धि के लिये ही निवेश तथा पूँजी में रियायत की आवश्यकता होती है। हालाँकि, यह आवश्यक नहीं है कि इससे अर्थव्यवस्था में तेज़ी आ जाए क्योंकि निवेश के लिये कर की दरों में की गई कटौती अनिश्चित होती है, इसके विपरीत सरकारी व्यय में वृद्धि से माँग में निश्चित तौर पर वृद्धि होती है।
  • वैश्विक वित्तीय पूँजी, प्रकृति में गतिशील होने के कारण इसका प्रभावी प्रयोग ‘टैक्स हैवंस’ तथा ‘शेल कंपनियों’ के माध्यम से लाभ तथा पूँजी को स्थानांतरित करने के लिये किया जाता है।
  • यह गतिशीलता देशों के मध्य कर की दरों को एक-दूसरे के समतुल्य रखने तथा रियायत देने की प्रतिस्पर्द्धा को जन्म देती है, इसे ही सामान्यतया ‘रेस टू दी बॉटम’ कहते हैं। अतः बिना वैश्विक समन्वय के निगम कर की दरों में वृद्धि नहीं किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत जैसे विकासशील देशों में सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान, असमानता तथा पूँजी की कमी तथा गरीबी पर इसके ‘दूरगामी प्रभाव’ परिलक्षित होंगे। अमेरिका द्वारा किया जाने वाला यह पहल तभी संभव होगा जब सभी देश वैश्विक पूँजी से संबंधित शक्ति प्रयोग को बंद करने के लिये सहमत हो। साथ ही, टैक्स हैवंस संबंधी प्रलोभन के संदर्भ में उपयुक्त वैश्विक नीतियों को क्रियान्वित करने के लिये भी आपसी समन्वय की आवश्यकता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR