(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव)
पृष्ठभूमि
चीन क्षेत्रीय प्रसार के साथ-साथ वैश्विक प्रसार की कोशिश लगातार कर रहा है। इसके लिये वह पट्टेदारी तथा लीज़ जैसे उपकरणों का प्रयोग कर रहा है। इसके अतिरिक्त, वह अत्यधिक ऋण देने के साथ-साथ वन चाइना पॉलिसी और चीन के पारम्परिक क्षेत्र जैसे तरीकों का प्रयोग करके अतिक्रमण की कोशिश करता रहता है। भारत-चीन की विवादित सीमा पर चीन द्वारा सीमा उल्लंघन व अतिक्रमण की रिकॉर्ड की गई संख्या वर्ष 2019 में लद्दाख में 75 % तक बढ़ गई है। साथ ही इस वर्ष के पहले चार महीनों में भारतीय क्षेत्र में चीन द्वारा सीमा उल्लंघन के मामलों में भी पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में वृद्धि देखी गई है।
लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) का अर्थ
- भारत और चीन के मध्य सीमा का पूरी तरह से सीमांकन नहीं किया गया है। एल.ए.सी. को दोनों देशों द्वारा अभी तक न तो स्पष्ट किया गया है और न ही इसे स्थाई स्वरुप प्रदान किया गया है।
- भारत और चीन के बीच विवादित सीमा (LAC) को तीन सेक्टरों में विभाजित किया गया है। ये तीन सेक्टर है: पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टर। विभिन्न सेक्टरों में एल.ए.सी. की वास्तविक स्थिति को लेकर दोनों देश असहमत हैं। भारत के अनुसार, एल.ए.सी. की लम्बाई लगभग 3,488 किमी. है जबकि चीन का दावा है की यह लगभग 2,000 किमी. लम्बी है।
- मध्य क्षेत्र (Middle Sector) को छोड़कर, भारत और चीन के बीच अपने-अपने नक्शों का आपसी आदान-प्रदान भी नहीं किया गया है क्योंकि एल.ए.सी. को लेकर दोनों पक्षों की धरणा अलग-अलग है। अतः दोनों पक्षों के सैनिक अपने देश द्वारा निर्धारित एल.ए.सी. के अनुसार क्षेत्र में गश्त करने की कोशिश करते हैं।
- एल.ए.सी. ज्यादातर स्थलीय भागों से गुज़रती है परंतु पैंगोंग त्सो झील में यह जलीय भाग से भी गुज़रती है। दोनों सेनाओं के बीच अधिकांश झड़पें झील के विवादित हिस्से में होती हैं। झील का लगभग 45 किमी. लम्बा पश्चिमी भाग भारत के नियंत्रण में है, जबकि शेष हिस्सा चीन के नियंत्रण में है।
- मूलत:, भारत और चीन द्वारा सीमाओं का निर्धारण अलग-अलग ढंग से किया गया है। यह भारत व पाकिस्तान के मध्य निर्धारित नियंत्रण रेखा (LoC) से अलग है क्योंकी वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों की सेनाओं द्वारा सब कुछ निर्धारित कर लिया गया था।
चीनी अतिक्रमण की वास्तविकता
- चीन द्वारा सीमा का उल्लंघन या अतिक्रमण तब माना जाता (रिकॉर्ड) है, जब इन क्षेत्रों में तैनात सेना या आई.टी.बी.पी. के द्वारा तार्किक रूप से यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि चीनी सैनिकों ने लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को पार करके भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया है।
- चीन द्वारा थल, वायु और पैंगोंग त्सो झील के जलीय सीमा के उल्लंघन को तभी रिकॉर्ड किया जा सकता है, जब इसे सीमा चौकियों द्वारा देखा गया हो। इसके अतिरिक्त, सर्विलांस उपकरणों के प्रयोग द्वारा या गश्ती दल द्वारा देखे जाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों द्वारा दिये गए विश्वसनीय संकेत के आधार पर भी उल्लंघन की घटना को रिकॉर्ड किया जाता है। चीनी सैनिकों द्वारा रैपर व बिस्कुट के पैकेट आदि द्वारा छोड़े गये सबूत भी मानवरहित क्षेत्र में उनकी उपस्थिति को दर्शाते हैं।
- आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 के बाद से उल्लंघन के लगभग तीन-चौथाई मामलें लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पश्चिमी सेक्टर में हुई हैं, जोकि लद्दाख में पड़ता है। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में पड़ने वाले पूर्वी सेक्टर में कुल उल्लंघन की लगभग 20 % (पाँचवाँ हिस्सा) घटनाएँ हुई है।
पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso lake)
‘पैंगोंग त्सो झील’, लद्दाख हिमालय में करीब 14,000 फुट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक लम्बी संकरी, गहरी, एंडोर्फिक (स्थल अवरुद्ध या लैंडलॉक) झील है। पैंगोंग त्सो का पश्चिमी छोर लेह के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। लगभग 135 किमी. लम्बी झील बूमरैंग (Boomerang) आकार में लगभाग 604 वर्ग किमी. में फैली हुई है। इसकी सर्वाधिक चौड़ाई लगभग 6 किमी. है। खारे पानी (Brackish water lake) की यह झील सर्दियों में जम जाने के कारण आइस स्केटिंग व पोलो के लिये आदर्श बन जाती है। लद्दाखी भाषा में, पैंगोंग का अर्थ अवतल और तिब्बती में त्सो का मतलब झील होता है। रणनीतिक रूप से, यह झील चुशुल के प्रवेश द्वार पर पड़ती है, जिसका प्रयोग चीन, भारत के इलाके में हमले या अतिक्रमण के लिये कर सकता है।
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भारत और चीन के मध्य सीमा व अतिक्रमण
- पश्चिमी सेक्टर में एल.ए.सी. की लम्बाई लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के अंतर्गत लगभग 1597 किमी. है। लगभग 545 किमी. लम्बा मध्य सेक्टर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत आता है। इसके अलावा, लगभग 1346 किमी. लम्बा पूर्वी सेक्टर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में आता है।
- भारत के अनुसार, एल.ए.सी., फिंगर 8 से होते हुए गुजरती है जबकि चीन दावा करता है कि एल.ए.सी., फिंगर 2 से होकर गुजरती है। इस विवादित क्षेत्र में दोनों सेनाएँ नियमित रूप से गश्त करती हैं। भारत, फिंगर 4 तक के क्षेत्र को नियंत्रित करता हैं। झील के उत्तरी किनारे पर निर्जन पहाड़ कई जगह आगे की ओर (बाहर) निकले हुए हैं, जिसे सेना द्वारा ‘फिंगर्स’ कहा जाता है।
- मध्य सेक्टर सबसे कम विवादित क्षेत्र है, जबकि पश्चिमी सेक्टर दोनों पक्षों के बीच अधिकतम तनाव का गवाह रहा है।
- चीनियों द्वारा अतिक्रमण की संख्या में वृद्धि यह दर्शाती है कि चीनी सैनिक अक्सर भारतीय क्षेत्र में आ रहे हैं और उनकी गतिविधियों को भारतीय सैनिकों द्वारा देखा व रिकॉर्ड किया जा रहा है।
- इसे चीन की बढ़ती हुई मुखरता के संकेत के रूप में देखा जा सकता है। किसी बड़ी घटना के न होने की स्थिति में, यह माना जाता है कि दोनों पक्षों के बीच स्थापित सीमा तंत्र ठीक तरीके से कार्य कर रहे हैं।
- वर्ष 2017 में सिक्किम-भूटान सीमा पर लगभग ढाई माह के डोकलाम गतिरोध के बाद दोनों पक्षों के बीच कोई बड़ा गतिरोध नहीं हुआ है।
- श्री मोदी और श्री जिनपिंग के मध्य अप्रैल, 2018 में वुहान में प्रथम अनौपचारिक शिखर सम्मलेन का आयोजन किया गया था। जिसके बाद दोनों देशों के द्वारा अपनी सेनाओं के लिये रणनीतिक मार्गदर्शन जारी किया गया था। इस मार्गदर्शन का उद्देश्य सीमा मामलों के प्रबंधन में विश्वास व आपसी समझ बनाने तथा पूर्वानुमान व प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये संचार को मजबूत करना है।
- इसके अतिरिक्त, दोनों पक्षों के बीच विभिन्न विश्वास बहाली के उपायों को ईमानदारी से लागू करने के लिये अपने-अपने सेनाओं को निर्देश भी दिये गये थे। इन उपायों में, सीमा क्षेत्रों में विवादों को रोकने के लिये पारस्परिक और सुरक्षा के समान सिद्धांतों के साथ-साथ मौजूदा संस्थागत व्यवस्था व सूचना साझाकरण तंत्र को मजबूत करना शामिल है।
वुहान स्पिरिट और वर्तमान चिंता
- यह कहना मुश्किल है कि वुहान स्पिरिट के बाद जारी मार्गदर्शन का अर्थ ख़त्म हो गया है, परंतु कोविड-19 की स्थिति में भी भारत व चीन के बीच वर्ष 2020 में तनाव अचानक बढ़ गया है।
- सिक्किम में नाकू-ला (Naku La) और लद्दाख में गलवान (Galwan) नदी घाटी व पैंगोंग त्सो में तनाव के अलावा, भारत, सीमा के मुद्दे पर नेपाल सरकार के हालिया व्यवहार से काफ़ी चिंतित हैं।
- भारत और चीन दोनों ही देश मजबूत सैन्य क्षमताओं के साथ परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। यद्यपि वर्ष 1967 के बाद दोनों देशों के मध्य कोई बड़ी सैन्य झड़प नहीं हुई है। साथ ही, वर्ष 1976 के बाद से दोनों के मध्य गोलीबारी की भी कोई घटना नहीं हुई है। इसके बावजूद, वास्तविकता यह है कि भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने हैं तथा दोनों देशों के मंत्रालयों की ओर से कड़े बयान आए है। यह लक्षण सुखद नहीं हैं, क्योंकि पिछले चार दशकों में दोनों देशों द्वारा सीमा विवादों को हमेशा शांति से हल किया गया है।
- भारत द्वारा कश्मीर की स्थिति में परिवर्तन तथा चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड पहल के कारण क्षेत्रीय दबाव बनाने के लिये पश्चिमी सेक्टर में तनाव ज्यादा देखा जा रहा है। इसका एक उदहारण, हाल ही में गिलगिट-बाल्टिस्तान के विवादित और प्राकृतिक आपदाओं (भूकम्प) के लिये अति सुभेद्य क्षेत्र में पाकिस्तान व चीन द्वारा दायमर-बाशा बाँध के निर्माण हेतु समझौत भी हुआ है। इस मुद्दे पर भारत ने दोनों देशों से विरोध भी दर्ज कराया है।
- इसके अलावा, पानी की उपस्थिति और उसके रणनीतिक प्रयोग के कारण भी इस क्षेत्र में तनाव और विस्तार की रणनीति चीन द्वारा अपनाई जा रही है। चीन द्वारा नदियों के स्रोत को नियंत्रित करने और उसके मार्ग में बदलाव करने सम्बंधी कई घटनाएँ हालिया वर्षों में देखी गई हैं।
- साथ ही एक प्रमुख मुद्दा इस क्षेत्र में पर्यटकों का आगमन है। वर्ष 1990 से ही सम्पूर्ण पैंगोंग त्सो झील में पर्यटकों को जाने की अनुमति नहीं है। आज भी लेह के उपायुक्त द्वारा इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती है।