(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
पृष्ठभूमि
विगत दिनों क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ (इन्वेस्टर्स सर्विस) ने भारत सरकार की विदेशी-मुद्रा और स्थानीय-मुद्रा दीर्घकालिक इश्युअर रेटिंग (Long-term Issuer Ratings) को कम कर दिया है। अन्य प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों जैसे, ‘फिच’ और ‘स्टैण्डर्ड एंड पूअर्स’ (S&P) की तुलना में मूडीज़ भारत के बारे में ऐतिहासिक रूप से अधिक आशावादी दृष्टिकोण रखता है, अतः मूडीज़ द्वारा भारत की रेटिंग में कमी करना अपने आप में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। मूडीज़ द्वारा मौजूदा रेटिंग में की गई कमी भारत को निम्नतम निवेश श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है।
रेटिंग में वर्तमान कमी
- मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस ने भारत की सॉवरेन (राष्ट्रीय) क्रेडिट रेटिंग को पिछले 2 दशक से भी अधिक समय में पहली बार 'बीएए2' (Baa2) से एक पायदान घटाकर 'बीएए3' (Baa3) कर दिया है।
- 'बीएए3' सबसे निचली निवेश ग्रेड वाली रेटिंग है। इसके नीचे कबाड़ या बेकार (Junk) वाली रेटिंग ही बचती है।
- मूडीज़ ने इससे पहले नवम्बर 2017 में 13 साल के अंतराल के बाद भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को 1 पायदान बढाकर ‘बीएए2’ किया था।
- मूडीज़ ने भारत सरकार की विदेशी-मुद्रा और स्थानीय-मुद्रा दीर्घकालिक इश्युअर रेटिंग (Long-term Issuer Ratings) को भी ‘बीएए2’ से ‘बीएए3’ कर दिया है।
- साथ ही मूडीज़ ने स्थानीय-मुद्रा सीनियर अनसिक्योर्ड रेटिंग को 'बीएए2' (Baa2) से 'बीएए3' (Baa3) करने के साथ-साथ अल्पकालिक स्थानीय मुद्रा रेटिंग को भी पी-2 (P-2) से घटाकर पी-3 (P-3) कर दिया है।
- एजेंसी ने कहा है कि नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाले समय में निम्न आर्थिक वृद्धि, बिगड़ती वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र के दबाव जोखिम को कम करने में चुनौतियाँ पैदा करेंगी।
- मूडीज़ का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष (FY21) के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में 4 प्रतिशत तक संकुचन हो सकता है। भारत के मामले में पिछले 4 दशक से अधिक समय में यह पहला मौका होगा, जब पूरे वर्ष के आँकड़ों में जी.डी.पी. में गिरावट आएगी।
- ध्यातव्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अंतिम बार जी.डी.पी. संकुचन (नकारात्मक वृद्धि दर) वर्ष 1979-80 में देखा गया था। वित्त वर्ष 1979-80 में वृद्धि दर (-) 5.2 % थी। इसके पूर्व भी भारत की अर्थव्यवस्था में 4 बार और संकुचन देखा जा चुका है।
- इन सबके अतिरिक्त, मूडीज़ ने भारत के आउटलुक (दृष्टिकोण) को भी ‘नकारात्मक’ रखा है। मूडीज़ ने नवम्बर 2019 में भारत के आउटलुक को ‘स्थिर’ (Stable) से ‘नकारात्मक’ कर दिया था।
भारत की रेटिंग कम करने का कारण
- मूडीज़ ने इस फैसले के पीछे चार मुख्य कारण बताए हैं।
- वर्ष 2017 से आर्थिक सुधारों का कमज़ोर कार्यान्वयन
- एक निरंतर अवधि तक अपेक्षाकृत निम्न आर्थिक विकास
- केंद्र व राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति में भारी गिरावट, तथा
- भारत के वित्तीय क्षेत्र में बढ़ता दबाव
- पिछले वर्ष नवम्बर में मूडीज़ ने भारत के आउटलुक (दृष्टिकोण) को ‘बीएए2’ रेटिंग के अंतर्गत ही ‘स्थिर’ (Stable) से ‘नकारात्मक’ (Negative) कर दिया था क्योंकि जोखिमों में वृद्धि हो रही थी।
- नवम्बर 2019 की कई आर्थिक आशंकाओं के बाद से, मूडीज़ ने ‘नकारात्मक’ दृष्टिकोण को बनाए रखते हुए रेटिंग को ‘Baa2’ से कम करके ‘Baa3’ कर दिया है।
- मूडीज़ के आधिकारिक बयान के अनुसार, यह निर्णय दर्शाता है कि देश के नीति निर्धारण संस्थानों को ऐसी नीतियों को क्रियान्वित और लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिनके क्रियान्वयन से लम्बी अवधि तक निम्न वृद्धि, सरकार की सामान्य वित्तीय स्थिति के और बिगड़ने और वित्तीय क्षेत्र में बढ़ते दबाव के जोखिम को कम करने में मदद मिले।
‘नकारात्मक’ दृष्टिकोण का तात्पर्य
- नकारात्मक दृष्टिकोण अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली में गहरे तनाव को प्रभावशाली, पारस्परिक रूप आश्रित और नकारात्मक जोखिमों को दर्शाता है जो राजकोषीय मज़बूती के अधिक गम्भीर होने और लम्बे समय तक गिरावट का कारण बन सकता है।
- विशेष रूप से, मूडीज़ ने तेज़ आर्थिक विकास के लिये लगातार आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों को उजागर किया है, जैसे- कमज़ोर बुनियादी ढाँचा, श्रम, भूमि और उत्पाद बाज़ारों से सम्बंधित कठोर नियम और वित्तीय क्षेत्र में बढ़ते जोखिम।
- दूसरे शब्दों में कहें तो ‘नकारात्मक’ आउटलुक का तात्पर्य है की भारत की रेटिंग को और कम किया जा सकता है।
क्या रेटिंग में गिरावट का कारण कोविड-19 का प्रभाव है?
- मूडीज़ ने स्पष्ट किया है कि यद्यपि रेटिंग में यह गिरावट कोरोना वायरस महामारी के समय में हो रही है परंतु यह महामारी के प्रभाव से प्रेरित नहीं है। इसके पीछे महामारी पूर्व भारत में वित्तीय सुधारों की गति का सुस्त होना है।
- मूडीज़ के अनुसार, महामारी भारत की पहले से ही मौजूद क्रेडिट प्रोफाइल की कमज़ोरियो में वृद्धि करती है जिसने पिछले वर्ष ही नकारात्मक दृष्टिकोण को प्रेरित किया था।
- नवम्बर 2017 में मूडीज़ ने भारत की रेटिंग को 1 पायदान बढ़ाकर ‘स्थिर’ दृष्टिकोण के साथ ‘बीएए2’ कर दिया था जो इस उम्मीद पर अधारित था कि महत्त्वपूर्ण सुधारों का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाएगा और इससे अर्थव्यवस्था, संस्थानों और वित्तीय मज़बूती में लगातार सुधार आएगा।
- वर्ष 2017 में रेटिंग में वृद्धि के बाद से, सुधारों का कार्यान्वयन अपेक्षाकृत कमज़ोर रहा है जो नीतियों के सीमित प्रभावशीलता को दर्शाता है। नीतियों की कम प्रभावशीलता और वृद्धि की गति में परिणामी नुकसान भारत की जी.डी.पी. वृद्धि दर में तेज़ गिरावट का सबूत है।
- 2019-20 के लिये जी.डी.पी. वृद्धि दर में अनंतिम (Provisional) अनुमान 4.2 % आंका गया था जोकि पिछले एक दशक में सबसे कम वार्षिक वृद्धि दर है। यहाँ तक कि इन अनुमानों को संशोधित करके और कम किये जाने की सम्भावना है।
- प्रत्येक वर्ष, केंद्र सरकार अपने वित्तीय घाटे के (अनिवार्य रूप से बाज़ार से कुल उधारी) लक्ष्य को पूरा करने में विफल रही है। इसके कारण कुल सरकारी ऋणों में नियमित वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में, सरकारी ऋण पहले से ही काफी अधिक था।
रेटिंग में कमी का प्रभाव
- विदित है कि रेटिंग अर्थव्यवस्था के समग्र पहलुओं और सरकारी वित्त की स्थिति पर आधारित होती हैं।
- रेटिंग में गिरावट का तात्पर्य यह है कि भारत सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड अब पहले की तुलना में अधिक जोखिम युक्त होंगे क्योंकि कमज़ोर आर्थिक वृद्धि और बिगड़ती राजकोषीय स्थिति सरकार द्वारा पुनर्भुगतान की क्षमता को कमज़ोर करती हैं।
- न्यूनतम जोखिम अपेक्षाकृत बेहतर होता है क्योंकि यह उस देश की सरकारों और कम्पनियों को कम ब्याज दर पर ऋण देने की अनुमति देता है।
- जब भारत की सॉवरेन (राष्ट्रीय) क्रेडिट रेटिंग में कमी की जाती है, तो भारत सरकार के साथ-साथ सभी भारतीय कम्पनियों के लिये फंड जुटाना महंगा हो जाता है क्योंकि ऐसी स्थिति में दुनिया ऐसे ऋणों को जोखिम के रूप में देखती है।
मूडीज़ का आर्थिक वृद्धि, नौकरियों और प्रतिव्यत्ति आय सम्बंधी दृष्टिकोण
- मूडीज़ को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की वास्तविक जी.डी.पी. में 4.0 % की गिरावट होगी। इसके बाद वित्त वर्ष 2021-22 में तेज़ रिकवरी की उम्मीद व्यक्त की गई है।
- दीर्घावधि में, यह बताता है कि निजी क्षेत्र के निवेश में लगातार कमी, नौकरियों के सृजन में कठिनाई और बिगड़ी हुई वित्तीय प्रणाली के कारण वृद्धि दर पहले की तुलना में कम हो सकती है।
- इसमें कहा गया है कि लम्बी अवधि के लिये निम्न वृद्धि दर जीवन स्तर में सुधार की गति को कम कर सकती है।