(प्रारंभिक परीक्षा :भारतीय राज्यतंत्र और शासन- अधिकारों संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका)
संदर्भ
न्यायपालिका ने पिछले दिनों गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) से संबंधित तीन मौलिक निर्णय दिये हैं। इनमें से एक मामला दिल्ली उच्च न्यायालय, दूसरा राष्ट्रीय अन्वेंषण एजेंसी न्यायालय (NIA Court) तथा तीसरा कर्नाटक उच्च न्यायालय से संबंधित है।
गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम से संबंधित मुद्दे
- मूल रूप से वर्ष 1967 में अधिनियमित ‘यू.ए.पी.ए.’ को वर्ष 2004 और 2008 में ‘आतंकवाद विरोधी कानून’ के रूप में संशोधित किया गया था।
- यह सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से इतर, अपनी ‘असाधारण’ शक्तियों को गठित करता है, जहाँ अभियुक्तों के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को या तो अस्तित्वहीन या पहुँच से बाहर कर दिया जाता है।
- इसके अंतर्गत गिरफ़्तारी की अवधि बढ़ा दी जाती है, जो आगे भी बढ़ती जाती है। इसके पहले सामान्य ज़मानत नहीं दी जा सकती है। साथ ही, नियमित ज़मानत भी न्यायाधीश की संतुष्टि के अधीन ही है कि कोई प्रथम दृष्टया मामला मौजूद नहीं है।
- ज़मानत के अतिरिक्त यह प्रक्रिया पूर्व-परीक्षण, जघन्य आतंक अपराधों के दोषी माने जाने वाले अभियुक्तों के लिये लंबी अवधि की सुनवाई तथा कैद की लंबी अवधि को भी सुनिश्चित करती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े
- यू.ए.पी.ए. की कठोरता का उदाहरण राज्य के अपने आधिकारिक आँकड़ों से भी परिलक्षित होते हैं।
- वर्ष 2016 और 2019 के मध्य, जिस अवधि के लिये एन.सी.आर.बी. द्वारा यू.ए.पी.ए. के आँकड़े प्रकाशित किये गए हैं, इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत कुल 4,231 प्राथमिकी दर्ज की गईं, जिनमें से 112 मामलों में दोषसिद्धि हुई है।
- निर्दोष साबित होने वालों की संख्या कम है, लेकिन वास्तविक तस्वीर लंबित दरों में उभरती है। पुलिस जाँच के स्तर पर लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है, औसतन 83 प्रतिशत।
- एक तथ्य जो यह प्रदर्शित करता है कि पुलिस द्वारा औसतन जाँच के लिये शामिल किये गए कुल मामलों में लगभग 17 प्रतिशत में चार्जशीट दायर की जाती है।
- मुकदमे के स्तर पर लंबित रहने की दर औसतन 95.5 प्रतिशत है, जिसका अर्थ है कि हर वर्ष 5 प्रतिशत से कम मामलों में मुकदमे पूरे किये जाते हैं, जो लंबे समय तक विचाराधीन कारावास के कारणों को प्रदर्शित करता है।
न्यायालयों के निर्णय
- इस वर्ष के आरंभ में, उच्चतम न्यायालय ने एक उपाय प्रस्तुत किया था। ‘भारत संघ बनाम के. ए. नजीब’ मामले में, न्यायालय ने कहा कि यू.ए.पी.ए. के तहत ज़मानत पर प्रतिबंध के बावजूद, संवैधानिक न्यायालय अभी भी इस आधार पर ज़मानत दे सकते हैं कि अभियुक्तों के ‘मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’ किया गया है।
- न्यायालय ने कहा कि यू.ए.पी.ए. के अंतर्गत जमानत प्रतिबंधों की कठोरता तब कम हो जाएगी, जब उचित समय के भीतर मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है और पहले से ही कैद की अवधि निर्धारित सज़ा के एक बड़े हिस्से से अधिक हो गई है।
- ‘आसिफ इकबाल तन्हा बनाम एन.सी.टी. दिल्ली राज्य में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस तर्क को एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा कि न्यायालयों के लिये यह वांछनीय नहीं होगा कि वे तब तक प्रतीक्षा करें जब तक कि अभियुक्तों के ‘स्पीडी ट्रायल’ के अधिकार निर्दोष साबित होने से पहले समाप्त नहीं हो जाते।
गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन अधिनियम, 2019
- उक्त अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन निर्दिष्ट कर सकती है, अगर वह-
(I) आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है
(II) आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है
(III) आतंकवाद को बढ़ावा देता है
(IV) अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।
- सरकार को अधिकार है कि वह समान आधार पर ‘व्यक्तियों को भी आतंकवादी’ निर्दिष्ट कर सकती है।
- अधिनियम के अंतर्गत जाँच अधिकारी को उन संपत्तियों को ज़ब्त करने से पहले पुलिस महानिदेशालय से मंजूरी लेनी होती है, जो आतंकवाद से संबंधित हो सकती है।
- यदि किसी संपत्ति की एन.आई.ए. के अधिकारी द्वारा जाँच की जा रही है, तो ऐसी संपत्ति की ज़ब्ती से पूर्व एन.आई.ए. के महानिदेशक से पूर्व मंज़ूरी लेनी आवश्यक है।
- अधिनियम के अंतर्गत नौ संधियाँ हैं, जैसे ‘कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ टेरिरिस्ट बॉम्बिंग्स’ (1997) और ‘कन्वेंशन अगेंस्ट टेकिंग ऑफ होस्टेजेज़’ (1979)। ।
- इन संधियों में कुछ गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं, इन गतिविधियों को आतंकवादी गतिविधि माना जाएगा। अधिनियम की प्रविष्टि में एक और संधि को शामिल किया गया है, ‘द इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सप्रेशन ऑफ एक्ट्स ऑफ न्यूक्लियर टेरीरिज़्म (2005)।
निष्कर्ष
- यू.ए.पी.ए. की कठोर बाधाओं के भीतर भी, बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है, यदि एक ‘उत्तरदायी और स्वतंत्र’ न्यायपालिका ‘प्राकृतिक न्याय और सम्यक प्रक्रिया’ के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करती है।
- लेकिन न्यायपालिका तक पहुँच, व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाने वाले इस कानून के तहत कैद किये गए लोगों में से अधिकांश के लिये सीमित है। सरकार के आँकड़ों के अनुसार, केवल वर्ष 2016 से 2019 के मध्य इस कानून के तहत 5,922 को गिरफ्तार किया गया था।
- इस प्रकार, आशा की जाती है कि यू.ए.पी.ए. से संबंधित मामलों में न्यायपालिका द्वारा तीव्र न्याय प्रदान कर ‘निर्दोषों’ को शीघ्र न्याय उपलब्ध कराया जा सकेगा।