(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय) |
संदर्भ
आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले एक-दूसरे पर मतदाता सूची में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है जिसने मतदाता पहचान-पत्र को आधार से जोड़ने के मुद्दे को पुनः चर्चा में ला दिया है।
मतदाता पहचानपत्र के आधार से जोड़ने की आवश्यकता एवं लाभ
- डुप्लिकेट मतदाताओं की समस्या का समाधान : डुप्लीकेट मतदाता पंजीकरण की समस्या का समाधान होने से प्रत्येक व्यक्ति के पास केवल एक मतदाता पहचान पत्र सुनिश्चित किया जा सकता है।
- मतदाता पंजीकरण में सटीकता : आधार से लिंक करने से वास्तविक समय सत्यापन (Real-time Verification) और मतदाता पहचान के बेहतर सत्यापन से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मतदाता सही निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत हैं। अत: इससे मतदाता सूची की समग्र सटीकता में वृद्धि होगी।
- चुनावी प्रक्रिया में सरलता : इससे मतदाताओं को अपने पंजीकरण विवरण आदि को ऑनलाइन अपडेट करना आसान हो जाता है जिससे चुनावी प्रक्रिया में अधिक नागरिकों के भाग लेने को प्रोत्साहन मिलता है।
- बेहतर सुरक्षा उपाय : आधार से जुड़ी बायोमेट्रिक विशेषताएँ, जैसे- फिंगरप्रिंट एवं आईरिस स्कैन, पहचान की चोरी और धोखाधड़ी वाले मतदान प्रथाओं के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा मिलती हैं।
- अन्य सरकारी सेवाओं तक बेहतर पहुँच : कई सरकारी सेवाओं में पहचान के उद्देश्यों के लिए आधार एवं मतदाता पहचान पत्र दोनों की आवश्यकता होती है। इन्हें आपस में जोड़ने से विभिन्न सरकारी सेवाओं तक पहुँच को सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
- सुधारों में सहायता : आधार लिंकेज दूरस्थ मतदान, इलेक्ट्रॉनिक एवं इंटरनेट आधारित मतदान आदि जैसे सुधारों में उपयोगी हो सकता है।
- कुशल चुनाव प्रबंधन : यह मतदाताओं पर आसानी से नज़र रखने, चुनाव प्रक्रियाओं में त्रुटियों एवं धोखाधड़ी को कम करने में मदद करता है।
प्रमुख चिंताएँ
- निजता संबंधी चिंताएँ : मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने पर निजता एवं डाटा सुरक्षा को लेकर विभिन्न चिंताएँ हो सकती हैं। आलोचकों के अनुसार इन दो पहचानपत्रों को लिंक करने से व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग एवं गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है।
- बहिष्करण संबंधी मुद्दे : यह विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारणों से बिना आधार वाले एवं हाशिए पर स्थित समूहों को असमान रूप से प्रभावित कर सकता है। बिना आधार कार्ड वाले लोगों को मतदान करने या संबंधित सेवाओं तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- राजनीतिक दुरुपयोग : मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने में प्रशासनिक भ्रष्टाचार की संभावना हो सकती है जिसमें राजनीतिक उद्देश्यों के आधार पर मतदाताओं के नामों को गलत तरीके से हटाना शामिल है।
- गैर-नागरिकों का शामिल किया जाना : आधार केवल निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। ऐसे में गैर-नागरिक मतदाता को मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है।
- प्रशासनिक एवं तकनीकी चुनौतियाँ : आधार डुप्लिकेट मतदाता पहचान-पत्रों को खत्म करने में मदद कर सकता है किंतु यह प्रक्रिया में धोखाधड़ी, हेरफेर या मानवीय त्रुटियों जैसे अन्य मुद्दों को संबोधित नहीं कर सकता है।
- बायोमेट्रिक प्रणाली में त्रुटियाँ : आधार बायोमेट्रिक आधारित प्रमाणीकरण पर आधारित है और यह प्रक्रिया त्रुटिरहित नहीं हैं। ऐसे में आधार डाटा बेस की त्रुटियाँ मतदाता पहचान पत्र को भी प्रभावित करेगी।
- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अनुसार, आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण में त्रुटि दर 12% है।
आगे की राह
‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव’ संविधान की मूल ढांचा का महत्वपूर्ण अंग है जिसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से सीमित नहीं किया जा सकता है। आधार कार्ड के साथ मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) लिंकेज निश्चित रूप से डुप्लिकेट मतदाता पंजीकरण की समस्या का समाधान करने में महत्वपूर्ण है। हालाँकि, इस संदर्भ में उपर्युक्त चिंताओं पर विचार करने की आवश्यकता है-
- EPIC एवं आधार को जोड़ने के लाभों के बारे में व्यापक प्रचार करना
- वोट की गोपनीयता से समझौता होने के बारे में मतदाताओं के मध्य किसी भी प्रकार की चिंता का समाधान करना
- वर्तमान में मतदाता सूचियों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में 650 मिलियन से अधिक आधार नंबर पहले ही अपलोड की जा चुकी हैं।
- प्रमाणीकरण डेटा का उपयोग और निजता संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए मजबूत डाटा सुरक्षा सिद्धांतों की आवश्यकता
- फॉर्म 6 बी को भी संशोधित करने की आवश्यकता
- इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मतदाताओं के लिए मतदाता पहचानपत्र एवं आधार लिंक करना अनिवार्य नहीं है।
राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण एवं प्रमाणीकरण कार्यक्रम (National Electoral Roll Purification and Authentication Programme : NERPAP)
- शुरुआत : चुनाव आयोग (EC) द्वारा वर्ष 2015 में
- उद्देश्य : मतदाता सूची में डुप्लिकेट पंजीकरण की समस्या का समाधान करना
- प्रक्रिया : चुनाव आयोग द्वारा मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) डाटा को आधार से जोड़कर प्रमाणित करना।
- हालाँकि, अगस्त 2015 में आधार की अनिवार्यता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के अनुसार, आधार का अनिवार्य उपयोग केवल कल्याणकारी योजनाओं और पैन लिंकिंग के लिए होना चाहिए। इसके बाद यह प्रमाणीकरण बंद कर दिया गया।
- संसद ने ‘चुनाव फोटो पहचान पत्र’ (EPIC) को आधार से जोड़ने के लिए दिसंबर 2021 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 में संशोधन किया गया।
- मतदान का अधिकार (Right to Vote) एक संवैधानिक अधिकार है।
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