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इन-स्पेस तथा अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण का निहितार्थ

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, निबंध व सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा प्रभाव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग तथा रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कम्प्यूटर)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सरकार ने ‘इन-स्पेस’ (IN-SPACe) नाम से एक नए संगठन की घोषणा की है। यह संगठन अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने के लिये हो रहे सुधारों का ही एक हिस्सा है।

पृष्ठभूमि

‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में की जा रही पहलों के चौथे चरण में वित्त मंत्री द्वारा अर्थव्यवस्था के आठ क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों की घोषणा की गई। इसमें अंतरिक्ष सहित अन्य क्षेत्रों में निजी भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया। इसके तहत, निजी क्षेत्र के लिये भी अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों को खोलने की घोषणा की गई। अब तक, सरकार द्वारा संचालित ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) का अंतरिक्ष अन्वेषण व उपग्रह प्रक्षेपणों से सम्बंधित सभी गतिविधियों पर एकाधिकार है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, अंतरिक्ष क्षेत्र में यह सुधार उपग्रहों के प्रक्षेपणों व अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी कम्पनियों को एकसमान मौका प्रदान करेगा। इसी संदर्भ में, ‘इन-स्पेस’ संगठन के उद्देश्यों पर एक नज़र के साथ-साथ भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये इसके मायनें पर चर्चा की गई है। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पिछले वर्ष नितिन गडकरी की अध्यक्षता में देश के रणनीतिक क्षेत्रों को मज़बूत करने हेतु अध्ययन करने और उपाय सुझाने के लिये एक समिति का गठन किया गया था।

इन-स्पेस (IN-SPACe)

  • अंतरिक्ष जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में वर्षों से चल रही सुधारों की प्रक्रिया के तहत अंतरिक्ष के निजीकरण हेतु अंतरिक्ष आयोग (सरकार) ने ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष सम्वर्धन और प्राधिकरण केंद्र’ (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre- IN-SPACe) के गठन को मंज़ूरी प्रदान कर दी है। प्रस्तावित संगठन के पास इसरो से स्वतंत्र शक्तियाँ होंगी। यह संगठन मोटे तौर पर अंतरिक्ष मिशनों के अलावा रॉकेट तथा उपग्रहों के अनुसंधान व विकास हेतु निजी कम्पनियों के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • ऐतिहासिक माने जा रहे इस निर्णय द्वारा भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी भागीदारी की वृद्धि को सुनिश्चित किया जा सकेगा। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन के अनुसार, यह प्रयास अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने तथा अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों व सेवाओं को सभी के लिये व्यापक रूप से सुलभ बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण सुधारों का एक हिस्सा था।
  • इन-स्पेस एक सुविधा प्रदान करने वाले केंद्र के साथ-साथ एक विनियामक भी माना जा रहा है। यह इसरो और निजी पक्षों के बीच एक इंटरफेस या सम्पर्क के रूप में कार्य करेगा। साथ ही, यह भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग और अंतरिक्ष आधारित गतिविधियों को बढ़ाए जाने के तरीकों का भी आकलन करेगा।
  • अगले कुछ माह में अपने संचालन को शुरू करने वाली इन-स्पेस निजी प्रतिभागियों की जरूरतों व माँगों का आकलन करेगी। इस आकलन में शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान की माँगों के साथ-साथ इसरो के परामर्श से इन आवश्यकताओं को समायोजित करने के तरीकों का भी पता लगाया जाएगा।
  • निजी क्षेत्र को उनकी क्षमता में सुधार करने के लिए इसरो की सुविधाओं और अन्य सम्पत्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। सरकार निजी क्षेत्र के उम्मीद के मुताबिक नीति और विनियामक वातावरण प्रदान करेगी।
  • साथ ही, अन्य क्षेत्रों के अलावा ग्रह विषयक अन्वेषण और बाह्य अंतरिक्ष के लिये भविष्य की परियोजनाओं को भी निजी क्षेत्र के लिये खोला जाएगा।
  • भू तथा अंतरिक्ष आधारित इसरो की मौजूदा अवसंरचना के साथ-साथ वैज्ञानिक तथा तकनीकी संसाधनों और यहाँ तक ​​कि डाटा को भी इच्छुक पक्षों के लिये सुलभ बनाने की योजना है, ताकि निजी प्रतिभागी अंतरिक्ष सम्बंधी गतिविधियों के संचालन में सक्षम हो सकें।

निजी प्रतिभागियों की आवश्यकता

  • ऐसा नहीं है कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग का कोई स्थान नहीं है। वास्तव में, रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण तथा संरचना का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है। साथ ही, अनुसंधान संस्थानों की भी भागीदारी बढ़ रही है।
  • के. सिवन के अनुसार, तेज गति से बढ़ रही वैश्विक अंतरिक्ष आधारित अर्थव्यवस्था में भारतीय उद्योग की बमुश्किल 3 % हिस्सेदारी थी।
  • इस बाज़ार का केवल 2 % हिस्सा रॉकेट और उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं से था, जिसमें काफी बड़े बुनियादी ढ़ाँचे व भारी निवेश की आवश्यकता होती है। शेष 95 % हिस्सा उपग्रह-आधारित सेवाओं और भू-आधारित प्रणालियों से सम्बंधित हैं।
  • हालाँकि, भारतीय उद्योग प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ है, क्योंकि अब तक इनकी भूमिका मुख्य रूप से अवयवों और उप-प्रणालियों के आपूर्तिकर्ताओं की ही रही है। भारतीय उद्योगों के पास स्पेसएक्स जैसी अमेरिकी कम्पनियों की तरह स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष की परियोजनाओं का संचालन करने के लिये संसाधन या तकनीक नहीं है, जो अंतरिक्ष-आधारित सेवाएँ प्रदान कर सकें।
  • इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं की माँग भारत के अंदर भी बढ़ रही है और इसरो इसे पूरा करने में असमर्थ है। उपग्रह आधारित आँकड़ो, चित्रों और अंतरिक्ष तकनीकों की ज़रूरत अब मौसम से लेकर कृषि, परिवहन व शहरी विकास तक सभी क्षेत्रों में हैं।
  • इन सभी बढ़ती हुई आवश्यकताओं व माँगों को पूरा करने के लिये इसरो को अपने वर्तमान स्तर का 10 गुना विस्तार करना होगा और इस समय कई भारतीय कम्पनियाँ इन अवसरों का उपयोग करने के लिये प्रयासरत हैं।
  • निजीकरण से इसरो के अलावा निजी पक्षों की बहुत सी अंतरिक्ष आधारित अभिनव तकनीकों के विकास का फायदा उठाया जा सकता है।

इसरो को लाभ

  • अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी में वृद्धि के दो महत्वपूर्ण कारण हैं। इसमें पहला कारण वाणिज्यिक और दूसरा रणनीतिक है। वास्तव में, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अधिक प्रसार और अंतरिक्ष संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ-साथ अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में वृद्धि की आवश्यकता है। इसरो वाणिज्यिक आवश्यकता की इस जरूरत को स्वयं पूरा करने में असमर्थ है।
  • निजी पक्षों द्वारा अंतरिक्ष उद्योग में प्रवेश इसरो को विज्ञान, अनुसंधान व विकास, अंतःविषयक अन्वेषण और रणनीतिक प्रक्षेपणों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये अधिक समय और स्वतंत्रता प्रदान करेगा।
  • वर्तमान में इसरो के अधिकतर संसाधनों का उपयोग नियमित गतिविधियों के संचालन में किया जाता है जिससे रणनीतिक उद्देश्यों में देरी होती हैं।
  • इसरो को अकेले मौसम या संचार उपग्रह लॉन्च करने के पीछे कोई विशेष तर्क नहीं है। विश्व भर में, निजी प्रतिभागियों की बढ़ती संख्या वाणिज्यिक लाभ के लिये इन गतिविधियों का संचालन कर रही हैं।
  • नासा की तरह इसरो भी अनिवार्य रूप से एक वैज्ञानिक संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष सम्बंधी अन्वेषण और वैज्ञानिक मिशनों को पूरा करना है। इसरो के सामने आने वाले कुछ वर्षों में कई महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन हैं। इसमें सूर्य के निरीक्षण हेतु एक मिशन के साथ-साथ चंद्रमा के लिये एक मिशन, मानव युक्त अंतरिक्ष उड़ान और सम्भवतः चंद्रमा पर एक मानव लैंडिंग मिशन शामिल है।

इन-स्पेस के अतिरिक्त संगठन

  • ‘इन-स्पेस’ पिछले दो वर्षों में सरकार द्वारा गठित दूसरा अंतरिक्ष संगठन है। वर्ष 2019 के बजट में सरकार ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) नाम की सार्वजनिक क्षेत्र की एक कम्पनी गठित करने की घोषणा की थी, जो इसरो की वाणिज्यिक शाखा के रूप में कार्य करेगी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य इसरो द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों का विपणन करना और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की आवश्यकता वाले ग्राहकों को अधिक से अधिक आकर्षित करना है।
  • हालाँकि, इस प्रकार के कार्य और भूमिका का संचालन पहले से ही अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाली एंट्रिक्स कार्पोरेशन द्वारा किया जा रहा है।
  • सरकार ने कहा कि न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड की भूमिका को पुनर्परिभाषित किया जा रहा है, जिससे यह मौजूदा आपूर्ति-संचालित रणनीति के बजाय माँग-आधारित दृष्टिकोण पर ज़्यादा ध्यान दे सके।
  • सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब यह है कि सिर्फ इसरो से की गई पेशकश के विपणन के बजाय, एन.एस.आई.एल. ग्राहकों की जरूरतों को सुनने के साथ इसरो को उन्हें पूरा करने के लिये कहेगा।
  • इस प्रकार, एन.एस.आई.एल. की भूमिका में यह बदलाव, अंतरिक्ष क्षेत्र में शुरू किये गए सुधारों का ही हिस्सा था।

आगे की राह

ऐसा नहीं है कि निजी प्रतिभागियों के कारण इसरो को वाणिज्यिक लॉन्च के माध्यम से होने वाले राजस्व में कमी आएगी। आगामी वर्षों में, भारत में अंतरिक्ष आधारित अर्थव्यवस्था में बूम आने की उम्मीद है। इस कारण से सभी प्रतिभागियों के पास लाभार्जन और वाणिज्यिक उत्पादन के लिये पर्याप्त से अधिक मौके होंगे। इसके अलावा, इसरो निजी प्रतिभागियों को अपनी सुविधाएँ और डाटा उपलब्ध कराकर कुछ धनार्जन कर सकता है।

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