(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)
चर्चा में क्यों?
ईरान की सरकार ने अपनी मुद्रा (रियाल) के नाम परिवर्तन तथा उसके मूल्य-वर्ग में बदलाव का निर्णय लिया है।
पृष्ठभूमि
ईरान ने दिसम्बर 2016 में भी तत्कालीन मुद्रा ‘रियाल’ (Rial) के नाम और मौद्रिक-मूल्य (Monetary Value) में बदलाव प्रस्तावित किया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1930 से पूर्व ईरानी मुद्रा का नाम ‘तोमन’ (Toman) हुआ करता था, 1930 के बाद नाम बदलकर ‘रियाल’ कर दिया गया। उस समय एक तोमन का मूल्य 10 रियाल के बराबर निर्धारित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के अनुसार, वर्तमान में विभिन्न देशों द्वारा किया जाने वाला मुद्रा अवमूल्यन वैश्विक व्यापार में तनावों का केंद्र-बिंदु बन गया है।
वर्तमान परिवर्तन
- अमेरिकी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप मुद्रा के मूल्य में तेज़ गिरावट के बाद ईरान ने राष्ट्रीय मुद्रा से 4 शून्य हटाने का निर्णय लिया है। नई योजना के अनुसार, एक तोमन का मूल्य 10,000 रियाल होगा।
- ईरान के केंद्रीय बैंक को मुद्रा में बदलाव के लिये दो वर्ष का समय दिया जाएगा।
- विदेशी विनिमय वेबसाइट के अनुसार, अनाधिकारिक रूप से ईरानी मुद्रा रियाल, डॉलर के मुकाबले 156,000 के स्तर पर है।
- वर्ष 2008 से ही मुद्रा से चार शून्य हटाने का विचार चल रहा था, परंतु अमेरिका द्वारा वर्ष 2018 में ईरान परमाणु समझौते से बाहर निकलने और ईरान पर प्रतिबंधों को लागू करने के बाद इस विचार को और अधिक मज़बूती मिली।
- इन प्रतिबंधों के कारण रियाल के मूल्य में 60 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई। ईरान की मुद्रा के कमज़ोर होने (मूल्य में कमी) और उच्च मुद्रास्फीति के कारण वर्ष 2017 के अंत में विरोध प्रदर्शन भी हुआ था।
परिवर्तन के कारण
- वर्ष 1979 में इस्लामिक क्रांति के कारण धार्मिक सरकार के सत्ता में आने के बाद से ईरान की राष्ट्रीय मुद्रा में लगातार गिरावट देखी गई है। हाल के वर्षों में इस गिरावट में और तेज़ी आई है क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया है। ध्यातव्य है कि ईरान में वर्ष 1971 के बाद से लगभग 3,500 बार मुद्रा का अवमूल्यन किया जा चुका है।
- रियाल के अवमूल्यन को चार प्रमुख कारण के संदर्भ में देखा जा सकता है। वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति इसका प्रमुख कारण है। इस समय पश्चिम के सहयोग से चल रही शाह (फारस देश के राजा की उपाधि) की सरकार गिर गई और मौलवियों के एक धार्मिक और वैचारिक समूह ने सरकार का पदभार सम्भाल लिया। इस कारण कई उद्यमी और व्यवसायी उत्पीड़न के डर से देश छोड़कर चले गए और साथ ही वे अपनी सम्पत्ति को भी बाहर ले गए।
- वर्ष 1989 में समाप्त हुए ईरान-इराक युद्ध ने भी इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। ईरान को अपनी बिखरती हुई अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में लगभग आठ वर्ष लग गए। इस दौरान अनियंत्रित मुद्रास्फीति और बिना जाँचे किये हुई मुद्रा की छपाई (Unchecked Printing of Cash) के कारण अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रियाल का मूल्य लगभग 100% कम हो गया।
- विगत वर्षों में कट्टरपंथी छवि वाले राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के कार्यकाल को भी इसके लिये उत्तरदाई माना जाता है। महमूद अहमदीनेजाद द्वारा वर्ष 2013 में पद छोड़ने से पूर्व ईरान को गम्भीर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था। इस कारण वैश्विक मुद्रा बाज़ारों में रियाल के मूल्य में लगभग 400% से अधिक की गिरावट देखी गई थी।
- अमेरिका द्वारा ईरान को परमाणु समझौते से बाहर निकालने का निर्णय अंतिम प्रमुख कारणों में से एक है। यह निर्णय अभी भी ईरान की अर्थव्यवस्था और मुद्रा की गिरावट में भूमिका निभा रहा है। इस निर्णय ने ईरान की पहले से ही संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को हर तरह से प्रभावित किया है।
- अमेरिका द्वारा तेहरान पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के दो महीने से भी कम समय में रियाल के मूल्य में 40% की गिरावट आई थी। रियाल में गिरावट का दौर जारी है। रियाल क्रांति से पूर्व की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 600% कमज़ोर हुआ है।
इस संकट में अन्य कारणों का योगदान
- ईरान ने वर्ष 1979 से कई वित्तीय आपदाओं का सामना किया है। इनमें ईरान पर लगाए गए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध भी शामिल हैं, जिन्होंने उसकी तेल विक्रय क्षमता को अत्यधिक सीमित कर दिया है, परिणामस्वरूप उसके राजस्व के प्राथमिक स्रोत में कमी आई है।
- इसके अतिरिक्त, सरकार ने विदेशी मुद्रा की पहुँच और उपयोग पर भी सख्त नियम लागू किये हैं। इस कारण देश के भीतर गैर-ईरानी नकदी और मुद्रा के लिये कालाबाज़ारी का एक बड़ा आधार तैयार गया है, इसके चलते भी राष्ट्रीय मुद्रा के मूल्य में और गिरावट आई है।
- ईरान में सीमावर्ती देशों, विशेषकर अफगानिस्तान से डॉलर की कालाबाज़ारी में वर्ष 2015 से अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। डॉलर की कमी ने आयातकों को नुकसान पहुँचाया है। साथ ही, विदेश यात्रा तथा विदेश में अध्ययन या व्यापार करने वाले ईरानियों को असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा था। इन कारणों से भी डॉलर की कालाबाज़ारी में वृद्धि हुई है।
- अमेरिका द्वारा अधिकतम दबावों का सामना कर रहे ईरान और उसके लोगों के लिये कोविड-19 ने तनाव को और भी अधिक बढ़ा दिया है।
वर्तमान कार्यवाही के निहितार्थ
- यदि इस बदलाव को सावधानीपूर्वक और व्यापक वित्तीय सुधारों की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में लागू किया जाता है तो मुद्रा का नवमूल्यीकरण (Redenomination ) एक सकारात्मक कदम होगा। हालाँकि, यह निर्णय देश के अन्य कई आर्थिक संकटों के लिये शायद ही उपायोगी हो; फिर भी यह वित्तीय लेन-देन को आसान बनाने के लिये एक आवश्यक कदम है।
- यह ईरानी उपभोक्ताओं और विक्रेताओं द्वारा मुद्रास्फीति के कारण खरीदारी करने हेतु अधिक मात्रा में रियाल की आवश्यकता को कम करने के साथ वित्तीय गणना को भी सरल बनाएगा।