संदर्भ
7 अक्टूबर, 2023 को इजरायल पर हमास के हमलों के बाद से मध्य-पूर्व में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष का मध्य-पूर्व के भविष्य और भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय अभिनेताओं की भूमिका पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
इजराइल-हमास युद्ध
- हमास के हमले और उसके परिणामस्वरूप गाजा पट्टी पर इजरायली जमीनी आक्रमण ने क्षेत्रीय राजनीति में इजरायल-फिलिस्तीनी मुद्दे की केंद्रीयता को पुनर्जीवित कर दिया है।
- यह युद्ध 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद से सबसे लंबे और घातक संघर्षों में से एक साबित हो चुका है।
- युद्धविराम और बातचीत से समाधान के सभी क्षेत्रीय और वैश्विक प्रयासों का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
- युद्ध को समाप्त करने का नवीनतम प्रयास में अमेरिका द्वारा प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) संकल्प 2735 को पारित किया गया है।
- जिसके पक्ष में 14 वोट पड़े जबकि रूस ने मतदान में भाग नहीं लिया।
अमेरिकी प्रभाव में गिरावट
- द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से अमेरिका मध्य-पूर्व में सबसे प्रमुख वैश्विक शक्ति बना हुआ है।
- हालाँकि, चीन और रूस जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में इसके प्रभाव कम होता जा रहा है।
- अमेरिका के प्रभाव में गिरावट इस क्षेत्र में कई घटनाओं से संबंधित है जैसे :
- अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमला
- वर्ष 2011-12 के दौरान अरब स्प्रिंग विद्रोह
- इस क्षेत्र में अपनी सैन्य प्रतिबद्धताओं को कम करने की अमेरिकी प्रवृत्ति
- चीन को नियंत्रित करने के लिए एशिया और इंडो-पैसिफिक पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अमेरिकी विदेश नीति
शक्ति प्रतिस्पर्धा
चीन
- एक महत्वाकांक्षी और इक्कीसवीं सदी की उभरती हुई एशियाई शक्ति के रूप में चीन क्षेत्रीय संघर्षों में भागीदारी के लिए अमेरिका की घटती भागीदारी के कारण उत्पन्न शक्ति शून्यता को मध्य-पूर्व में एक अवसर के रूप में देख रहा है।
- चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और क्षेत्रीय शक्तियों के साथ रणनीतिक समझौतों और आर्थिक प्रतिबद्धताओं के माध्यम से अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है।
- मार्च 2023 में राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने के लिए चीन की मध्यस्थता वाले सऊदी-ईरान समझौते ने क्षेत्रीय राजधानियों में चीन के बढ़ते राजनीतिक प्रभुत्व को रेखांकित किया है।
- वित्तीय एवं आर्थिक लाभ और अमेरिका के साथ संबंधों को संतुलित करने की संभावनाओं ने क्षेत्रीय शक्तियों को चीन की ओर आकर्षित किया है।
रूस
- सितंबर 2015 में सीरियाई गृहयुद्ध ईरान के साथ साझेदारी रूस के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई।
- इसने सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और तुर्किये जैसे अमेरिका के सहयोगियों को मॉस्को के साथ मुद्दा-आधारित सहयोग की तलाश के लिए भी सहमत किया है।
- यमन और लीबिया में क्रमशः सऊदी-यूएई और मिस्र-यूएई सैन्य हस्तक्षेपों की विफलताओं ने तीनों क्षेत्रीय शक्तियों को अमेरिका के विकल्प तलाशने के लिए और अधिक आश्वस्त किया है।
अरब शक्तियों पर दबाव
- 7 अक्टूबर के हमलों के बाद से हुए घटनाक्रमों ने अमेरिका और अरब शक्तियों की विदेश नीति प्रभावित किया है और बिडेन प्रशासन ने कूटनीतिक सफलता हासिल करने के लिए मध्य-पूर्व के सबसे प्रमुख देश सऊदी अरब का समर्थन मांगा है।
- अमेरिका और सऊदी अरब तीन प्रमुख मुद्दों के साथ गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए गहन कूटनीतिक वार्ता में लगे हुए हैं:
- अब्राहम समझौते के विस्तार के रूप में इजरायल और सऊदी अरब के बीच राजनयिक सामान्यीकरण, जिससे फिलिस्तीन में इजरायल की रियायतों के लिए एक प्रोत्साहन हो सकता है।
- इजरायल के संबंध के बदले सऊदी अरब भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य, युद्ध की समाप्ति और गाजा से इजरायल रक्षा बलों की पूरी तरह से वापसी की दिशा में एक रोडमैप की मांग कर रहा है।
- अमेरिका ने सऊदी अरब को अमेरिका के एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा देकर प्रोत्साहित करने की कोशिश की है जिसमें महत्वपूर्ण सुरक्षा गारंटी शामिल होगी।
- उपरोक्त में से किसी भी समझौते को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है जिससे अमेरिका-सऊदी संबंध प्रतिकूल होने के साथ ही क्षेत्रीय भूराजनीति तनावपूर्ण बनी हुई है।
युद्ध पर भारत का मत
- चल रहे इजराइल-हमास युद्ध और व्यापक इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष पर भारत का रुख संयुक्त राष्ट्र में पारित प्रस्तावों के दायरे में कूटनीतिक वार्ता के माध्यम से प्राप्त दो-राज्य समाधान (Two State Solutions) के अपने ऐतिहासिक रुख के अनुरूप बना हुआ है।
- युद्ध और इसके क्षेत्रीय नतीजों के दीर्घावधि तक बने रहने से भारत के आर्थिक और रणनीतिक हित प्रभावित हो सकते हैं। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं :
- भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा
- इजराइल और ईरान के साथ संबंधों के बीच संतुलन
- इसके अलावा, भू-राजनीतिक घटनाक्रम विशेष रूप से इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति, भारत के हितों को बाधित कर सकती है।
मध्य-पूर्व में अस्थिरता का भारत के लिए निहितार्थ
- वर्तमान में भारत को मध्य-पूर्व की राजनीति में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाली प्रमुख वैश्विक शक्तियों में से एक माना जाता है।
- भारत की मध्य-पूर्व में संलग्नता और आर्थिक सहयोग की क्षमता दो बुनियादी मुद्दों पर आधारित है :
- शांति और स्थिरता :
- यह इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष जैसे लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों को समाप्त करने या नियंत्रण में रखने पर निर्भर करती है।
- भारत के लिए यह अधिक लाभकारी होगा यदि उन्हें सऊदी अरब, इजरायल और अमेरिका जैसी मित्रवत क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के बीच सहयोग के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए।
- चीनी वर्चस्व से मुक्त क्षेत्र :
- मध्य-पूर्व में भारत की सफलता का एक प्रमुख कारक इस क्षेत्र में चीनी वर्चस्व की समाप्ति है।
- हालाँकि चीन मध्य-पूर्व में एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय य अभिनेता बनने से बहुत दूर है, लेकिन पिछले दशक में भू-राजनीतिक घटनाक्रम और चल रहे गाजा युद्ध ने बीजिंग को मध्य-पूर्व में अपनी स्थिति बढ़ाने में मदद की है।