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अमेरिका द्वारा डब्लू.एच.ओ. छोड़ने के निहितार्थ

(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)

संदर्भ 

हाल ही में, अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सदस्यता को छोड़ने की घोषणा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इससे संबंधित एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किया है जिसके तहत 22 जनवरी, 2026 से अमेरिका आधिकारिक रूप से डब्लू.एच.ओ. का सदस्य नहीं रहेगा

अमेरिका द्वारा डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने का कारण

  • अमेरिका ने डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने के लिए निम्नलिखित कारण बताए हैं :
    • डब्लू.एच.ओ. द्वारा कोविड-19 महामारी की स्थितियों को ठीक से न संभाल पाना
    • तत्काल आवश्यक सुधारों को अपनाने में डब्लू.एच.ओ. की विफलता
    • सदस्य देशों के अनुचित राजनीतिक प्रभाव में डब्लू.एच.ओ. द्वारा स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थता
    • अमेरिका से अनुचित रूप से अत्यधिक भुगतान की निरंतर मांग
    • सर्वाधिक आबादी के बावज़ूद चीन द्वारा अमेरिका की तुलना में कम वित्तपोषण 

अमेरिका द्वारा डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने के निहितार्थ

  • डब्लू.एच.ओ. को अमेरिकी निधियों एवं संसाधनों के किसी भी हस्तांतरण पर रोक 
  • डब्लू.एच.ओ. के साथ किसी भी क्षमता वाले एवं किसी भी श्रेणी में काम करने वाले सभी अमेरिकी कर्मचारियों की वापसी 
  • वैश्विक महामारी संधि के किसी भी संवाद अथवा सम्मेलन से अमेरिका का अलग होना  तथा ऐसे समझौते एवं संशोधनों को प्रभावी बनाने के लिए की गई कार्रवाइयों का संयुक्त राज्य अमेरिका पर कोई बाध्यकारी प्रभाव न होना।

अमेरिका द्वारा डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने का प्रभाव 

डब्लू.एच.ओ. पर 

डब्लू.एच.ओ. के वित्तपोषण में कमी 

  • अमेरिका डब्लू.एच.ओ. का संस्थापक सदस्य होने के साथ ही इसका सबसे बड़ा वित्तीय समर्थक भी है। 
    • डब्लू.एच.ओ. को अपने कुल वित्तपोषण का लगभग पाँचवां हिस्सा अमेरिका से प्राप्त होता है।
    • वर्तमान में डब्ल्यू.एच.ओ. के पाँच सबसे बड़े योगदानकर्ता : अमेरिका > बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन > गावी एलायन्स > यूरोपीय आयोग > विश्व बैंक
  • यदि अमेरिका इस एजेंसी को प्रदान किए जा रहे वित्तपोषण को रोक देता है तो दुनिया भर में लागू किए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिसमें एच.आई.वी./एड्स, तपेदिक एवं कुछ संक्रामक रोगों के उन्मूलन के लिए हस्तक्षेप शामिल हैं।
  • भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोर फंडिंग देने वाले शीर्ष वैश्विक योगदानकर्ताओं में से एक है। भारत ने वर्ष 2025 से 2028 तक संगठन के कोर कार्यक्रम के लिए 300 मिलियन डॉलर से अधिक देने की प्रतिबद्धता जताई है। 
    •    नवंबर 2024 की स्थिति के अनुसार डब्ल्यू.एच.ओ. को योगदान देने के मामले में भारत 12वें स्थान पर है। 

डब्लू.एच.ओ. को अमेरिकी विशेषज्ञता न प्राप्त होना 

  • किसी नए वायरस या पुरानी बीमारियों के कारण उत्पन्न महामारी से निपटने के लिए डब्लू.एच.ओ. ऐसे दिशा-निर्देश प्रदान करता है जिनका उपयोग एवं अनुकूलन देशों द्वारा उनके स्थानीय कार्यक्रमों के लिए किया जाता है। 
    • अमेरिकी विशेषज्ञ ऐसी कई समितियों का हिस्सा हैं। ऐसे में अमेरिकी विशेषज्ञता के अभाव में मार्गदर्शन प्रदान करने की डब्लू.एच.ओ. की भूमिका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • अमेरिका के डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने से डब्ल्यू.एच.ओ. एवं यू.एस. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के बीच सहयोग समाप्त हो जाएगा। 
    • यू.एस. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य खतरों की निगरानी और उनके विरुद्ध उचित प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।

सहयोग एवं समन्वय में कमी 

  • किसी भी महामारी से निपटने के लिए देशों के बीच सहयोग एवं डाटा और तकनीक का खुला आदान-प्रदान आवश्यक है। कोविड-19 महामारी के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है। 
    • हालाँकि, अमेरिका द्वारा डब्लू.एच.ओ. को छोड़ने से वैश्विक स्वास्थ्य संस्था को विभिन्न क्षेत्रों में अपने मिशनों को संचालित करने में कठिनाई होगी। 

अमेरिका पर प्रभाव 

वैश्विक महामारी से निपटने की क्षमता में कमी 

    • कोविड-19 महामारी से यह सीख मिली है कि स्थलीय एवं भौतिक सीमाएँ (Physical Boundries) रोगाणुओं को किसी दूसरे क्षेत्र में प्रसारित होने से नहीं रोक सकती हैं अर्थात जब तक सभी सुरक्षित नहीं है, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। 
  • ऐसे में अमेरिका के डब्लू.एच.ओ. को केवल छोड़ने से भविष्य में वैश्विक महामारी से निपटने में चुनौती का सामना करना पड़ेगा। 
  • वैश्विक महामारी के संक्रमण से निपटने के लिए डब्ल्यू.एच.ओ. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया संगठन के रूप में कार्य करते हुए वैश्विक वायु परिवहन यातायात पर प्रतिबंध की घोषणा की करता है। 
    • डब्लू.एच.ओ. को छोड़ने के पश्चात अमेरिका उसके दिशा-निर्देशों को मानने के लिए बाध्य नहीं होगा और यात्रियों से रोगों के संक्रमण में वृद्धि की संभावना है। 

वैश्विक स्वास्थ्य सूचना तक सीमित पहुँच

  • डब्लू.एच.ओ. के वैज्ञानिक विभिन्न देशों के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ मिलकर यह निर्धारित करते हैं कि संबंधित टीकों (जैसे- इन्फ्लूएंजा एवं कोविड-19) के अपडेटेड वर्जन में कौन से स्ट्रेन शामिल किए जाएँ। 
    • वर्तमान में एक सदस्य के रूप में अमेरिका के पास इन स्ट्रेन के नमूनों तक पहुँच होती है जो वैक्सीन निर्माताओं को टीकों की पर्याप्त खुराक का उत्पादन करने में मदद करते हैं। इसके अभाव में अमेरिका में संक्रामक रोगों में वृद्धि होने की संभावना है। 
  • किसी भी वैश्विक महामारी की स्थिति में स्रोत देश सर्वप्रथम डब्लू.एच.ओ. को सूचना देने के साथ ही रोग से संबंधित नमूने प्रदान करते हैं जिसे बाद में विभिन्न सदस्य देशों के साथ साझा किया जाता है। 
    • डब्लू.एच.ओ. की सदस्यता छोड़ने से इन सूचनाओं तक अमेरिका की पहुँच सीमित होगी। इससे अमेरिका में महामारी के संक्रमण की गति तीव्र हो सकती है।  

नई अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की आवश्यकता 

  • अमेरिका द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य संस्था से बाहर निकलने के बाद पूर्व में डब्लू.एच.ओ. द्वारा की जाने वाली आवश्यक गतिविधियों के लिए अमेरिका द्वारा नए अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की पहचान करने की आवश्यकता होगी
  • डब्लू.एच.ओ से बाहर निकलने के बाद अमेरिका को डब्लू.एच.ओ. द्वारा पूर्व में की जाने वाली आवश्यक गतिविधियों को जारी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की पहचान करने की आवश्यकता होगी।
    • हालाँकि, वर्तमान में ग्लोबल फंड एवं गावी जैसे अन्य गैर-सरकारी संगठन और परोपकारी संस्थाओं के डब्लू.एच.ओ. के समान किसी भी देश के साथ विश्वसनीय संबंध नहीं है। 
    • यह अमेरिका की वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने की क्षमता को सीमित करेगा। 

अमेरिकी स्वास्थ्य कूटनीति में गिरावट 

  • वर्तमान में अमेरिका वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य के प्रति प्रतिक्रिया करने और उसे बनाए रखने  से संबंधित नीतियों को आकार देता है। 
    • हालाँकि, डब्लू.एच.ओ. से बाहर होने से वैश्विक स्वास्थ्य नीति में एक प्रभावशाली देश के रूप में अमेरिका की भूमिका समाप्त हो जाएगी। विशेषज्ञ इसे अमेरिकी ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य कूटनीति’ में गिरावट के रूप में संदर्भित करते हैं। 
      • सार्वजनिक स्वास्थ्य कूटनीति से तात्पर्य अमेरिका द्वारा उन कार्यक्रमों के संचालन से है जो वैश्विक स्तर पर बच्चों को स्वच्छ पानी, भोजन एवं टीके प्रदान कर बदले में उन देशों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने में सहायक होते हैं। 
  • अमेरिकी वित्तपोषण में कमी को चीन द्वारा पूरा किया जा सकता है जो अमेरिकी के वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की भूमिका को सीमित कर सकता है। 

भारत पर प्रभाव 

  • डब्लू.एच.ओ. भारत सरकार द्वारा संचालित कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों का समर्थन करता है जिसमें उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTDs), एच.आई.वी., मलेरिया, तपेदिक व रोगाणुरोधी प्रतिरोध आदि शामिल हैं। 
  • यह भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसमें पल्स पोलियो टीकाकरण, मिशन इंद्रधनुष आदि शामिल हैं। डब्लू.एच.ओ. की टीमें वैक्सीन कवरेज की निगरानी भी करती हैं।
  • अमेरिका के बाहर होने से वित्तपोषण में कमी से डब्लू.एच.ओ. को भारत में विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में कठिनाई होगी।

आगे की राह 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य संस्था को छोड़ने से पूर्व अपने निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। साथ ही, डब्लू.एच.ओ. एवं अन्य हितधारकों को भी इस संबंध में अमेरिका से निरंतर कूटनीतिक वार्ता जारी रखना चाहिए।  
  • अमेरिकी वित्तपोषण की कमी को यूरोप, चीन एवं भारत सहित वैश्विक दक्षिण के देशों द्वारा पूरा किया जा सकता है। बिल एवं मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे परोपकारी संगठनों द्वारा इस कमी को पूरा करने के लिए आगे आने की आवश्यकता है।
  • महामारी एवं रोग संबंधी दिशा निर्देश, वैक्सीन निर्माण व दवाओं के विकास तथा उसके समावेशी वितरण के लिए डब्लू.एच.ओ. को चिकित्सा अनुसंधान एवं विकास में अग्रणी देशों के साथ गहनता से सहयोग की आवश्यकता है। 
  • डब्लू.एच.ओ. को अपनी गतिविधियों के व्यवस्थित संचालन और अपनी निष्पक्ष को कायम रखने के लिए स्वतंत्र रूप से व्यवहार करने की आवश्यकता है 
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