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भारत के लिए आर्कटिक का महत्त्व

संदर्भ 

मार्च 2024 में, आर्कटिक के लिए भारत का पहला शीतकालीन वैज्ञानिक अभियान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजुजू ने 18 दिसंबर 2023 को नई दिल्ली में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुख्यालय से भारत के पहले चार सदस्यीय शीतकालीन वैज्ञानिक अभियान का शुभारम्भ किया था। 

भारत-आर्कटिक मिशन 

  • भारत-आर्कटिक संबंधों की शुरुआत वर्ष 1920 में पेरिस में हुई थी। इस वर्ष पेरिस में नॉर्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका, डेनमार्क, फ्रांस, इटली, जापान, नीदरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड, स्वीडन एवं ब्रिटिश भारतीय डोमिनियन के बीच स्पिट्सबर्जेन को लेकर स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर किये थे। 
  • भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक में सूक्ष्म विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और भूविज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन शुरू करने के लिए अपना पहला वैज्ञानिक अभियान शुरू किया था। 
  • इसके एक वर्ष बाद 2008 में भारत ने अपना पहला भारतीय अनुसंधान स्टेशन, हिमाद्रि स्वालबार्ड के ऐलुशुण्ड में राष्ट्र को समर्पित किया। 
    • चीन के अलावा भारत एक मात्र विकासशील देश है जिसके पास अपना आर्कटिक अनुसंधान केंद्र है।  
  • वर्ष 2013 में भारत को आर्कटिक परिषद में एक पर्यवेक्षक राष्ट्र का दर्जा प्राप्त हुआ। 
    • आर्कटिक परिषद में 8 आर्कटिक देश - कनाडा, डेनमार्क, फ़िनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है। 
  • वर्ष 2014 में, भारत ने पानी के अंदर पहली मल्टी सेंसर वेधशाला IndArc, स्वालबार्ड में स्थापित की थी। 
  • वर्ष 2016 में, भारत ने गुरवेब्डेट में अपनी सबसे उत्तरी वायुमंडलीय प्रयोगशाला की स्थापना की थी। 
  • वर्ष 2022 में, भारत द्वारा अपनी आर्कटिक नीति का अनावरण किया गया था। 

भारत की आर्कटिक नीति

  • मार्च 2022 में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत की आर्कटिक नीति का अनावरण किया, जिसका शीर्षक "भारत और आर्कटिक : सतत विकास हेतु साझेदारी का निर्माण" था। 
  • भारत की आर्कटिक नीति के 6 स्तम्भ है:-
    1. विज्ञान एवं अनुसंधान
    2. जलवायु और पर्यावरण संरक्षण 
    3. आर्थिक और मानव विकास 
    4. परिवहन एवं कनेक्टिविटी 
    5. शासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 
    6. राष्ट्रीय क्षमता निर्माण 

वर्तमान में भारत के लिए आर्कटिक का महत्त्व

जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप आर्कटिक की बर्फ की परत पिघलने से दक्षिण एशिया के मानसून पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इससे भारत में चरम जलवायविक घटनाओं में वृद्धि हुई है। 
  • भारत में 70 % से अधिक वार्षिक वर्षा मॉनसून के मौसम में होती है, इससे भारतीय कृषि, खाद्यान्न उत्पादन, निर्यात, महंगाई सभी क्षेत्रो में प्रभाव पड़ता है। 
  • इसीलिए भारतीय आर्कटिक कार्यक्रम का एक मुख्य केंद्र बिंदु जलवायु परिवर्तनों के भारत पर प्रभावों को समझने के लिए लम्बे समय तक आर्कटिक क्षेत्र और तटीय जल की निगरानी करना है। 

आर्थिक संभावनाएं

  • आर्कटिक क्षेत्र में उत्तरी सागर व्यापार मार्ग के अधिक सक्रिय होने से व्यापार सुगमता बढ़ी है। इससे भारत के लिए व्यापार में समय, धन, ईंधन, सुरक्षा में बचत होगी। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में दुनिया के दुर्लभ खनिजों का भंडार है। बर्फ पिघलने से इन खनिजों के निष्कर्षण की संभावना बढ़ेगी, जिसमे भारत आर्कटिक राज्यों के साथ सहयोग कर नई संभावनाएं तलाश कर सकता है। 
  • आर्थिक और मानव विकास के संबंध में, आर्कटिक में भारत के दृष्टिकोण का उद्देश्य स्थानीय समुदायों सहित आर्कटिक निवासियों के अधिकारों का सम्मान और मूल्यांकन करते हुए सतत आर्थिक विकास प्राप्त करना है। 

भू-राजनीति 

  • भारत ने ऐसे समय में आर्कटिक क्षेत्र में अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जब यह क्षेत्र रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तनाव ग्रस्त है। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में हिंसा एवं तनाव के बढ़ने से क्षेत्रीय कूटनीतिक सहयोग संगठन लगभग निष्प्रभावी हो गए है।
    • वैश्विक समुदाय इस बढ़ते तनाव के कारण अत्यधिक चिंतित है, विशेष रूप से कोला प्रायद्वीप में रूस की नाभिकीय निवारण नीति पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ने से स्थिति और अधिक गंभीर हो गई है। 
  • जलवायु एवं भू-वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक आर्कटिक लगभग बर्फ मुक्त हो जायेगा, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक शक्तियों के मध्य इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए संघर्ष बढ़ेगा। 
  • वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, साथ ही उपर्युक्त सभी कारक आर्कटिक क्षेत्र में भारत के भविष्य के दृष्टिकोण एवं रणनीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। इसीलिए आर्कटिक भारत के लिए अनिवार्य हो गया है। 

चीन का आर्कटिक में बढ़ता प्रभाव

  • चीन द्वारा आर्कटिक क्षेत्र में 90 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है। 
  • चीन ने अपनी BRI नीति को आगे बढ़ाते हुए आर्कटिक क्षेत्र में घ्रुवीय सिल्क रोड की गतिविधियां शुरू कर दी है, जिनकी 2025 तक पूरी होने की संभावना है। 
  • रूस द्वारा चीन को उत्तरी सागर मार्ग के उपयोग के अधिकार की अनुमति बढ़ा दी गई है, इससे चीन ने इस क्षेत्र में अपना व्यापारिक एकाधिकार स्थापित कर लिया गया है। 
  • चीन के आर्कटिक में बढ़ते प्रभाव से भारत की चिंताएँ बढ़ी है, हालांकि भारत भी अपनी नीतियों में बदलाव कर रहा है। 

भारत द्वारा चीन का प्रभाव कम करने के लिए उठाये गए कदम

  • भारत द्वारा चेन्नई-व्लादिवोस्टोक समुद्री गलियारा बनाया गया है, इसका उद्देश्य चीन के प्रभाव को सीमित करते हुए भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापर को बढ़ाना है। 
  • भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय उतर-दक्षिण यातायात गलियारे का विकास किया जा रहा है, जो एक बहुउद्देशीय मालवाहक गलियारा है, इसका उपयोग चीन के BRI के ध्रुवीय सिल्क रोड एवं स्वेज नहर मार्ग दोनों के विकल्प के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है। 
  • भारत आर्कटिक देशों जैसे- नॉर्वे के साथ जलवायु परिवर्तन, डेनमार्क एवं फ़िनलैंड के साथ कचरा प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण, नवीकरणीय ऊर्जा एवं हरित क्षेत्रों में सहयोग स्थापित कर रहा है।

चुनौतियाँ

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष के मध्य दोनों पक्षों के साथ कूटनीतिक संबंधों में संतुलन एवं मजबूती बनाए रखना, भारत के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है।   
  • चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए आर्कटिक क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने की चुनौती है। 
  • आर्कटिक में बर्फ के तीव्र गति से पिघलने से मौसम पर प्रभाव, बढ़ता समुद्र जल स्तर, चरम जलवायु घटनाओं के समाधान के लिए समय रहते सतत विकास नीति की चुनौती है, अन्यथा कहीं बहुत देर न हो जाए।  
  • आर्कटिक क्षेत्र में उपस्थित दुर्लभ संसाधनों का निष्कर्षण एवं समुद्री संसाधनों का दोहन करना। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में व्यापर को बढ़ाने एवं सुरक्षा के पुख्ता इंतेज़ाम करना।  

आगे की राह

  • भारत को आर्कटिक देशों के साथ अपने संबंधों को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत को अब जलवायु परिवर्तन से आगे नीली अर्थव्यवस्था, संपर्क, समुद्री परिवहन, निवेश एवं अवसंरचना और उत्तरदायी संसाधन विकास जैसे मुद्दों पर अधिक केंद्रित होने की आवश्कयता है। 
  • भारत सरकार को आर्कटिक क्षेत्र में समुद्र तल खनन एवं संसाधनों के दोहन के लिए स्पष्ट एवं पारदर्शी नीति अपनाने और दोहन के सतत तरीकों का समर्थन करना चाहिए। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में नए भूराजनैतिक तनाव बनते जा रहे है, भारत को वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर इन मुद्दों के कूटनीतिक रचनात्मक हल निकालने का प्रयास करना चाहिए।
  • चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीति का सामना करने के लिए आर्कटिक में शोध कार्य एवं पूँजी निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष: आर्कटिक क्षेत्र में भारत के वैज्ञानिक, आर्थिक, पर्यावरणीय एवं भू-राजनैतिक हित शामिल है। इस क्षेत्र में भारत की वर्तमान नीति एक जिम्मेदार हितधारक के रूप में अपनी साख मजबूत करने के लिए हरित ऊर्जा एवं हरित-स्वच्छ उद्योग के क्षेत्रो में आर्कटिक देशों के साथ सहयोग की रही है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में बढ़ती चुनौतियों के साथ, भारत को नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन में पर्यावरणीय प्रभावों का ध्यान रखते हुए, भू-राजनैतिक एवं आर्थिक दोहन के मध्य संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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