संदर्भ
हिमालय के बारे में बात करते समय ‘भू-राजनीति और सुरक्षा चिंताओं’ से संबंधित प्रश्नों का अंकेक्षण लंबे समय से अपेक्षित है।
हिमालय के प्रति धारणाएँ
- एक निश्चित अर्थ में, हिमालय के बारे में हमारी बौद्धिक चिंताओं को बड़े पैमाने पर भय, संदेह, प्रतिद्वंद्विता, विदेशी आक्रमण और सैन्य अतिक्रमण की धारणा ने आकार दिया है।
- औपनिवेशिक काल में ‘रूसोफोबिया’ था, जबकि वर्तमान में ‘सिनोफोबिया (चीन संबंधी) या पाकिस्तानफोबिया’ है, जो हिमालय के संबंध में हमारी चिंताओं को निर्धारित करता है।
- वस्तुतः हिमालय के बारे में हमारी ये धारणाएँ ‘दिल्ली-बीजिंग-इस्लामाबाद’ त्रय से जुड़ी हैं, न कि हिमालय पर्वत से।
हिमालय की सामरिक धारणा
- हिमालयी अध्ययनों के मामले में राष्ट्रवाद की अनिवार्यता ने क्षेत्रीयकरण की राजनीतिक बाध्यता को जन्म दिया है।
- हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन; पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक योजना है, जो अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- हालाँकि, यह मिशन केवल भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) के लिये ही नीति-निर्माण तक की सीमित है।
- मिशन दस्तावेज़ में स्पष्ट किया गया है कि भारत सरकार इस मिशन के साथ इस तथ्य को स्वीकार करती है कि ‘हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र’ भारत की पारिस्थितिक सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- हिमालय के बारे में भारत की धारणा यथार्थवाद से प्रभावित है क्योंकि हिमालय समुदाय, पारिस्थितिकी या बाज़ार जैसी वैकल्पिक संकल्पनाओं के विपरीत संप्रभु क्षेत्रीयता के संदर्भ में परिभाषित एक क्षेत्र है।
ऐतिहासिक गतिरोध
- हिमालय का क्षेत्रीयकरण (Territorialisation) एक औपनिवेशिक धारण है।
- हिमालयी भू-भाग के अंतर्गत आने वाले पाँच राष्ट्र-राज्यों के मध्य संबंध क्षेत्रीयता और संप्रभुता से इतर सोचने में विफल रहे हैं।
- हिमालयी क्षेत्र से जुड़े विभिन्न देशों द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में अवसंरचना क्षेत्र की परियोजनाओं को अपनाया जाता है, ताकि वे अपने हिमालयी भू-भाग को सुरक्षित कर सकें।
सीमाएँ और उनके अंतर
- हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि राजनीतिक सीमाएँ और सांस्कृतिक सीमाएँ, एक ही चीज़ नहीं हैं।
- राजनीतिक सीमाओं को आधुनिक राष्ट्र-राज्यों की स्पेस-मेकिंग रणनीतियों के रूप में माना जाता है, जो ज़रूरी नहीं कि सांस्कृतिक सीमाओं के साथ मेल खाती हों।
- दूसरे शब्दों में, सांस्कृतिक सीमा राजनीतिक विचार को खारिज कर देती है, जो इसे पारगम्य मानती है।
- वस्तुतः राजनीतिक सीमा की अवधारणा, सांस्कृतिक, व्यापारिक, पारिस्थितिकी या पर्यावरणीय दृष्टि से अनेकार्थी बन जाती है।
- संप्रभु क्षेत्रीयता के प्रतिमान के माध्यम से केवल मानव सुरक्षा को ही ध्यान में नहीं रखा जा सकता है।
- हालाँकि, हिमालयी राज्यों की सुरक्षा प्रणालियाँ सुरक्षा संबंधी मुद्दे से निपटने के संदर्भ में कोई अन्य ढाँचा तैयार करने में विफल रही हैं।
- पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के एक दृष्टिकोण को स्थापित करने के अतिरिक्त, गैर-पारंपरिक सुरक्षा के क्षेत्र को परिभाषित करने के एजेंडे में अक्सर राज्य का वर्चस्व रहा है।
- यह दिलचस्प है कि अक्सर पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के उपायों ने वास्तव में कई मोर्चों पर गैर-पारंपरिक असुरक्षाओं को जन्म दिया है।
भावी राह
- यदि सभी संबंधित देश हिमालय को एक ऐसे स्थान के रूप में मानने के लिये तैयार हैं, जो मानव विषयों में गहराई से अंतर्निहित है तो हम संभवतः एक राष्ट्रीय पकड़ से बाहर आ सकते हैं, जिसकी वास्तव में आवश्यकता है।
- यदि हमें व्यापार, वाणिज्य एचव समुदायों की चिंताओं को दूर करना है, तो पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर ध्यान देना होगा, जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
- आवश्यकता इस बात की है कि सुरक्षा की इन वैकल्पिक धारणाओं को हिमालय के संबंध में नीति निर्माण, रणनीति निर्धारण और राजनयिक संबंधों में प्रमुख स्थान दिया जाए।
निष्कर्ष
अब समय आ गया है कि हिमालय को परस्पर टकराव की बजाय एक साझे राष्ट्रीय स्थल और निवास स्थान के रूप में चिन्हित किया जाए।