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आर्थिक संवृद्धि के लिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्त्व

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

दैनिक संक्रमण और मौतों के आधिकारिक अनुमानों में गिरावट के साथ कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर धीरे-धीरे थम रही है। साथ ही, अर्थव्यवस्था भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, कई राज्यों ने लॉकडाउन के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देना शुरू कर दिया है।

अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति

  • जो बात आर्थिक सुधार को चुनौतीपूर्ण बनाती है, वह यह है कि देश में कोरोनवायरस महामारी की चपेट में आने से पहले से ही सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विगत तीन वर्षों से गिरावट दर्ज़ की जा रही है।
  • वर्ष 2019-20 में आर्थिक संवृद्धि पहले ही घटकर 4 प्रतिशत हो गई थी, जो वर्ष 2016-17 में 8.3 प्रतिशत के उच्च स्तर से आधे से भी कम थी। तब से, अर्थव्यवस्था में मंदी ने न सिर्फ़ आर्थिक सुधार के संबंध में स्थितियों को बदतर बना दिया है, बल्कि उन अधिकांश परिवारों ने भी भारी कीमत चुकायी है, जिन्होंने अपनी नौकरी और आय गँवाई है।
  • जी.डी.पी. में तेज़ गिरावट आंशिक रूप से वर्ष 2016-17 के बाद से आर्थिक गतिविधियों में मंदी की प्रवृत्ति का परिणाम है। लेकिन महामारी के पहले वर्ष में आर्थिक मंदी का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक स्थिति के गलत संचालन का परिणाम है।
  • एक कठोर लॉकडाउन ने निश्चित रूप से पिछले वर्ष आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया। इस मंदी के प्रप्रत्युत्तर में अर्थव्यवस्था में माँग को पुनर्जीवित करने के लिये सरकार द्वारा राजकोषीय समर्थन भी पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है।
  • लघु और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ अन्य बड़े असंगठित क्षेत्र, जो आर्थिक गतिविधियों में प्रतिबंधों का खामियाजा भुगत रहे थे, उनकी मदद के लिये नीतिगत ढाँचे को सक्षम किये बिना कई बड़ी घोषणाएँ मोटे तौर पर मौद्रिक पक्ष से ही संबंधित थीं।

कृषि अर्थव्यवस्था की प्रमुख वाहक

  • राजकोषीय समर्थन में कमी के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करके अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • गाँवों की तरफ लौटे लाखों प्रवासियों के लिये आजीवका का मुख्य साधन कृषि क्षेत्रक ही था, जिसने वर्ष 2020-21 की जी.डी.पी. में सकरात्मक योगदान दिया। इसने न केवल प्रवासियों को रोज़गार प्रदान किया गया,बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को मज़बूती भी प्रदान की गई।
  • महामारी की अवधि के दौरान कृषि न केवल सबसे बड़ा उद्धारक रहा है, बल्कि पिछले पाँच वर्षों में लगातार अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण चालक रहा है, जिसने तेज़ी से गिरती अर्थव्यवस्था को संभाले भी रखा।

ग्रामीण क्षेत्र पर प्रभाव

  • चालू वित्त वर्ष में सकारात्मक वृद्धि के कारण रिकवरी का संकेत मिल सकता है। हालाँकि, यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था को पहले ही विगत वर्ष में नुकसान उठाना पड़ा है, कोई भी रिकवरी काफी हद तक एक वास्तविक रिकवरी की बजाय विगत वर्ष के निम्न आधार को ही पूरा करेगी।
  • सत्य यह है कि अधिकांश परिवारों को पहले से ही नौकरी के नुकसान और आय में गिरावट का सामना करना पड़ा है, जो अभी तक अपने पूर्व-महामारी के स्तर को प्राप्त नहीं कर पाए हैं। अतः आर्थिक सुधार पर कोई भी अनुमान लगाने में सावधानी बरतनी होगी।
  • आधिकारिक आँकड़ों में अधिकांश राज्यों में महामारी के कारण होने वाली मौतों को कम करके आँका गया है, जैसा कि हाल में कई समाचार पत्रों में सामने आया है। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक संकट को भी काफी हद तक कम करके आँका गया है।

सरकार की प्रतिक्रिया

  • दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्रों को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। कई परिवारों ने अपने इकलौते कमाने वाले सदस्य को खो दिया है और इतनी ही बड़ी संख्या ने संक्रमण से निपटने में निजी स्वास्थ्य देखभाल व्यय पर बड़ी राशि खर्च की है।
  • यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब ‘गैर-संस्थागत स्रोतों’ से ऋण में तेज़ वृद्धि हुई है। हालाँकि, सरकार की प्रतिक्रिया ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी के पैमाने के अनुरूप नहीं रही है।
  • विगत वर्ष के विपरीत, सरकार ने इस वर्ष महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के लिये आवंटित राशि में वृद्धि नहीं की है।
  • पूरे देश के लिये, मनरेगा में रोज़गार की मांग में वृद्धि के बावजूद मई 2021 में उत्पन्न कार्यदिवस मई 2020 की तुलना में केवल 65 प्रतिशत ही था।
  • मुफ्त खाद्यान्न योजना को इस वर्ष भी बढ़ाया गया है, लेकिन इस वर्ष इसमें दालें शामिल नहीं हैं। इसी तरह, विगत वर्ष के विपरीत, कमज़ोर समूहों के लिये किसी नकद हस्तांतरण की व्यवस्था नहीं की गई है।

रोज़गार और आय में गिरावट

  • अप्रैल 2021 के नवीनतम अनुमानों में वास्तविक मज़दूरी में गिरावट ज़ारी है। विगत दो वर्षों में ग्रामीण गैर-कृषि मज़दूरी में 0.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की गिरावट दिख रही है, जबकि कृषि मज़दूरी स्थिर बनी हुई है।
  • मांग में गिरावट का एक संकेतक अधिकांश कृषि वस्तुओं के थोक मूल्यों में गिरावट को प्रदर्शित करता है। अनाज और सब्जियाँ, जो कुल मिलाकर फसल उत्पादन का आधे से अधिक हिस्सा हैं, की कीमतों में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर छह महीने से अधिक समय से गिरावट देखी गई है। इनमें से कुछ दलहन और तिलहन समूहों की मूल्यवृद्धि परिलक्षित हो रही है, इन दोनों का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
  • निवल परिणाम एक अजीबोगरीब स्थिति है, जहाँ घरेलू बाज़ार में प्रमुख कृषि वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आ रही है, जबकि खाद्य और दलहन जैसी आवश्यक वस्तुओं की उपभोक्ता कीमतें मूल्य वृद्धि में योगदान दे रही हैं।

महँगाई का खतरा

  • घटती आय और नौकरी छूटने से जूझ रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्रय शक्ति के लिये बढ़ती महँगाई एक खतरे के समान है।
  • डीज़ल की बढ़ी हुई कीमतों ने पहले से ही इनपुट लागत को बढ़ाया है, लेकिन हाल ही में अधिकांश उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि ने किसानों की समस्या को और भी बढ़ा दिया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि भी गैर-कृषि अर्थव्यवस्था के लिये खतरा है। पहले से ही कम मांग से जूझ रहे अधिकांश ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र ने अब कच्चे माल की लागत में वृद्धि के कारण अपने लाभ मार्जिन को प्रभावित होते देखा है।

भावी राह

  • उक्त जटिलताओं के बावजूद, कृषि अर्थव्यवस्था सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था आर्थिक पुनरुद्धार की किसी भी रणनीति के लिये महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।
  • लेकिन उसके लिये टीकाकरण में तेज़ी लाकर ग्रामीण आबादी को सुरक्षित करने की आवश्यकता होगी। दुर्भाग्य से अभी तक ग्रामीण क्षेत्र टीकाकरण की समग्र दर में पिछड़ रहे हैं।
  • साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों को भी अर्थव्यवस्था में मांग को पुनर्जीवित करने के लिये प्रत्यक्ष आय समर्थन के रूप में विभिन्न सब्सिडी और बढ़ती इनपुट कीमतों से सुरक्षा के रूप में भी अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

सरकार का तत्काल हस्तक्षेप न केवल आर्थिक पुनरुद्धार का समर्थन करने के लिये आवश्यक है, बल्कि इस बार आर्थिक कुप्रबंधन के परिणामस्वरूप एक और मानवीय संकट को रोकने के लिये भी आवश्यक है।

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