(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं उनसे संबंधित सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्ट्रीय समन्वयक परिषद की 24वीं बैठक 29 जून से 2 जुलाई, 2024 तक कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में आयोजित की गई। भारतीय प्रधानमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुए और भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने किया।
एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन 2024 के प्रमुख परिणाम
- अस्ताना घोषणापत्र
- 24वें एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन में अस्ताना घोषणापत्र को अपनाया गया जो आतंकवाद एवं उग्रवाद के सभी कारणों को खत्म करने के उपायों की रूपरेखा तैयार करने से संबंधित है।
- इसमें आतंकी वित्तपोषण, भर्ती गतिविधियाँ, सीमा पार आतंकवादी आवागमन व आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नई सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग शामिल है।
- इसमें सदस्य राज्यों द्वारा आतंकवादी विचारों, किसी भी प्रकार की धार्मिक असहिष्णुता, ज़ेनोफोबिया, चरम राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय व जातीय भेदभाव के प्रसार को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास भी शामिल है।
- घोषणापत्र में आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में दोहरे मानकों को अस्वीकार करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवादियों को समर्थन एवं प्रश्रय देने की कड़ी निंदा करनी चाहिए।
- इसके संकल्पों में वर्ष 2035 तक एस.सी.ओ. विकास रणनीति का मसौदा, विदेश मंत्रियों की परिषद के प्रस्ताव, आतंकवाद से निपटने के लिए एक सहकारी कार्यक्रम, मादक द्रव्य रोधी गतिविधियां, ऊर्जा सहयोग एवं आर्थिक विकास शामिल हैं।
- सदस्यता विस्तार : वर्ष 2024 में SCO की सदस्यता का विस्तार किया गया। इसमें नए सदस्य के रूप में बेलारूस को शामिल किया गया।
- वैश्विक आर्थिक विकास में मेक इन इंडिया की भूमिका : भारत के अनुसार ‘मेक इन इंडिया' पहल वैश्विक विकास को गति दे सकती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाने में मदद कर सकती है। यह बहुविध, विश्वसनीय एवं लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं बनाने में सहायक हो सकती है।
- आर्थिक सहयोग : सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जाएंगी। SCO व्यापार, निवेश एवं बुनियादी ढांचे के विकास के लिए विभिन्न परियोजनाओं पर ध्यान देगा। विशेष रूप से सदस्य देश ‘सिल्क रोड’ आर्थिक बेल्ट और ‘ईरान-पाकिस्तान-भारत’ गैस पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं पर सहयोग करेंगे।
भारत-चीन द्विपक्षीय बैठक
- कजाकिस्तान के अस्ताना में एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के विदेश मंत्री और चीनी विदेश मंत्री ने सीमा मुद्दे के शीघ्र समाधान पर जोर दिया।
- द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और पुनर्निर्माण के लिए पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शेष मुद्दों को हल करने के लिए राजनयिक व सैन्य चैनलों के माध्यम से प्रयासों में तेजी लाने पर सहमति व्यक्त की गयी।
शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation : SCO)
- क्या है : एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन
- स्थापना : जून 2001 में शंघाई (चीन)
- अध्यक्षता : सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के (चक्रीय) आधार पर एक-एक वर्ष के लिये
- आधिकारिक भाषाएँ : रूसी एवं मंदारिन
- महत्त्व : इसके द्वारा दुनिया की लगभग 42% आबादी, 22% क्षेत्रफल एवं 20% सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिनिधित्व
- वर्तमान में दस सदस्य : कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत, पाकिस्तान, ईरान व बेलारूस
- जून 2017 में अस्ताना (कज़ाखस्तान) में आयोजित एस.सी.ओ. की बैठक में भारत व पाकिस्तान इसके पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुए।
- दुशांबे में आयोजित शिखर वार्ता (2021) में ईरान पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
- जुलाई 2024 में एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन में बेलारूस को पूर्ण सदस्य का औपचारिक दर्जा प्रदान किया गया।
- पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त देश : अफ़गानिस्तान एवं मंगोलिया
- इसके अतिरिक्त 14 संवाद भागीदार देश भी हैं।
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एक कूटनीतिक विकल्प के रूप में शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
- अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विकल्प के रूप में : एस.सी.ओ. उन कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक है जो सुरक्षा मुद्दों से निपटते हैं और जिसमें मुख्यत: एशियाई सदस्य हैं। क्षेत्रीय शक्ति के रूप में रूस व चीन ने ‘पश्चिमी’ अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विकल्प के रूप में इसकी स्थिति पर जोर दिया है।
- ब्रिक्स समूह (भारत, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका एवं ब्राजील) के साथ यह समूह अमेरिकी प्रभाव के खिलाफ खड़े होते दिख रहे हैं।
- चीन एवं रूस के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना : हाल के वर्षों में चीन व रूस के बीच ‘असीम मित्रता’ की घोषणा के बावजूद ऐसे मंचों पर अधिक प्रभाव को लेकर इनके बीच प्रतिस्पर्धा की भी भावना है।
- यद्यपि मध्य एशियाई गणराज्यों को पारंपरिक रूप से रूस के प्रभाव क्षेत्र के हिस्से के रूप में देखा जाता है किंतु चीन ने भी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश के माध्यम से तेल व गैस-समृद्ध देशों से लाभ उठाने की कोशिश की है।
- शक्ति संलुतल का प्रयास : वर्ष 2017 में भारत एवं पाकिस्तान को SCO में शामिल करना भी इसी खींचतान को दर्शाता है। रूस ने भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार के रूप में प्रवेश का समर्थन किया जबकि चीन ने शक्ति संतुलन को रूस के पक्ष में झुकने से रोकने के लिए अपने सहयोगी पाकिस्तान का समर्थन किया।
- चीन की कूटनीतिक रणनीति : हाल के वर्षों में चीन की आर्थिक ताकत में वृद्धि हुई है। साथ ही, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से वह पश्चिमी देशों एवं मध्य एशियाई देशों के साथ संपर्क कायम करना चाहता है।
- SCO का विस्तार : हाल ही में SCO के बड़े विस्तार को रूस व चीन के साथ अमेरिका के बिगड़ते संबंधों के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
- वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में चीन के साथ शुरू हुए व्यापार तनाव जैसी घटनाओं ने इस समूह में और अधिक देशों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया है।
- ईरान को शामिल करने के कदम को संगठन की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति एवं प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक कदम के रूप में देखा गया। ईरान के लिए भी यह अमेरिकी राजनयिक नाकेबंदी को तोड़ने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत के लिए SCO का महत्व
- रणनीतिक एवं सुरक्षा दृष्टिकोण : SCO के माध्यम से भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, जैसे- आतंकवाद, उग्रवाद व ड्रग तस्करी के खिलाफ सामूहिक रूप से कार्य करने का अवसर मिलता है। यह संगठन क्षेत्रीय स्थिरता व सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। SCO के आतंकवाद-निरोधक ढांचे के माध्यम से भारत को आतंकवाद से निपटने में सहयोग मिलता है।
- आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध : SCO के सदस्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक व आर्थिक संबंधों को मजबूती मिलती है। संगठन के माध्यम से भारत को मध्य एशिया के देशों के साथ आर्थिक व ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने का अवसर मिलता है। भारत के ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है और SCO के माध्यम से ऊर्जा संसाधनों तक पहुँच को बढ़ावा मिल सकता है।
- सांस्कृतिक एवं सामाजिक सहयोग : SCO के माध्यम से भारत व अन्य सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षिक व वैज्ञानिक सहयोग को भी बढ़ावा मिलता है। यह संगठन सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग को प्रोत्साहित करता है, जिससे विभिन्न सदस्य देशों के लोगों के बीच समझ व सहयोग बढ़ता है।
- भू-राजनीतिक प्रभाव : SCO में सदस्यता के माध्यम से भारत को एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक मंच प्राप्त होता है, जहां वह चीन व रूस जैसे बड़े देशों के साथ समान मंच पर संवाद कर सकता है। इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को मजबूती मिलती है और उसे वैश्विक मुद्दों पर प्रभावी तरीके से अपनी बात रखने का मौका मिलता है।
- कनेक्टिविटी एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास : SCO के माध्यम से भारत को क्षेत्रीय कनेक्टिविटी एवं इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है। यह संगठन सदस्य देशों के बीच परिवहन, संचार व इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है, जिससे भारत को लाभ हो सकता है।
- सुरक्षा में सहयोग : सुरक्षा के क्षेत्र में SCO ने वर्ष 2005 में ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) का गठन किया। RATS सदस्य देशों के बीच सूचना साझा करने और आतंकवाद रोधी संयुक्त उपायों पर काम करता है।
भारत एवं SCO के समक्ष चुनौतियां
यद्यपि एस.सी.ओ. में भारत की भागीदारी अवसर प्रदान करती है किंतु इसके समक्ष चुनौतियां भी हैं :
- संबंधों में संतुलन : एस.सी.ओ. में भारत की भागीदारी के लिए रूस व चीन दोनों के साथ अपने संबंधों में सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। अलग-अलग हितों और रणनीतिक प्राथमिकताओं को समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- संस्थागत प्रभावशीलता : सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया कभी-कभी एस.सी.ओ. की त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की क्षमता में बाधा बन सकती है। यह तत्काल सुरक्षा या आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने में एक सीमा की तरह हो सकती है।
- कूटनीतिक चुनौतियाँ : एस.सी.ओ. में भारत की भागीदारी उतनी सरल नहीं है, जितनी दिखती है। भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया। साथ ही, चीन एस.सी.ओ. का मुख्य संचालक है। एस.सी.ओ. में पाकिस्तान की उपस्थिति और चीन का प्रभुत्व भारत को इस संगठन में एक गौण भूमिका तक सीमित कर देता है।
- चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो पावर के साथ बार-बार पाकिस्तान के आतंकवादियों को बचाया है। अगर पाकिस्तान एस.सी.ओ. के माध्यम से कश्मीर विवाद को क्षेत्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करता है, तो भारत की प्रतिक्रिया महत्त्वपूर्ण होगी।
- चीन एस.सी.ओ. में तिब्बत का मुद्दा उठाता है तो भारत को भी सावधानी से आगे बढ़ना होगा क्योंकि भारत ने दशकों तक दलाई लामा को शरण दी है।
- SCO का पश्चिमी विरोधी रुख : एस.सी.ओ. ने पारंपरिक रूप से स्पष्टत: पश्चिम विरोधी रुख अपनाया है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए और ऐसी बयानबाजी से बचे।
निष्कर्ष
SCO में सदस्यता भारत के लिए रणनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संगठन के माध्यम से भारत को क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का महत्वपूर्ण अवसर मिलता है। SCO के साथ भारत की सक्रिय व सकारात्मक सहभागिता देश के दीर्घकालिक हितों को प्रोत्साहित करने में सहायक साबित हो सकती है।