संदर्भ
अप्रैल 2024 में एशियाई विकास बैंक (ADB) की एशियाई विकास आउटलुक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में भारतीय मुद्रा के मूल्यह्रास होने और इसके परिणामस्वरूप आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) में वृद्धि के बारे में चेतावनी जारी की गई है।
- ADB की इस रिपोर्ट में भारत की जीडीपी वृद्धि दर वर्ष 2024 एवं 2025 के लिए क्रमशः 7% एवं 7.2% अनुमानित की गई है।
- साथ ही, इस रिपोर्ट में भारत में मुद्रास्फीति दर वर्ष 2024 एवं 2025 के लिए क्रमशः 4.6% एवं 4.5% अनुमानित की गई है।
आयातित मुद्रास्फीति
आयातित मुद्रास्फीति से तात्पर्य ऐसी मुद्रास्फीति से है, जब किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य स्तर में वृद्धि आयातित वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों या लागत मूल्यों में वृद्धि के कारण होती है।
आयातित मुद्रास्फीति के कारण
घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास
- ADB की हालिया रिपोर्ट में भारत में आयातित मुद्रास्फीति बढ़ने का मुख्य कारण पश्चिमी देशों के रिज़र्व बैंको द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से भारतीय मुद्रा में होने वाली गिरावट को माना गया है।
- जब किसी देश की मुद्रा का मूल्यह्रास होता है, तब उस देश के लोगों को विदेशों से वस्तुएँ एवं सेवाओं के आयात के लिए और अधिक मुद्रा की आवश्यकता होती है। इससे देश में आयात करने वाले उद्योगों एवं कंपनियों को वस्तुएँ एवं सेवाओं के आयात के लिए और अधिक धन खर्च करना पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप देश के अंदर में भी कम्पनियाँ उसी अनुपात में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में वृद्धि कर देंगी।
आयात शुल्क में वृद्धि
- जब किसी देश की सरकार द्वारा अपने देश के उत्पादकों को विकास के अवसर प्रदान करने एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा की क्षमता विकसित करने के लिए आयातित वस्तुओं एवं सेवाओं के शुल्क में वृद्धि कर दी जाती है, इससे आयातित मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- सरकार द्वारा अपने आयात बिल को कम करने या चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए कच्चा तेल, कीमती धातुओं जैसे- सोना इत्यादि के आयात शुल्क में वृद्धि कर दी जाती है, जिस कारण आयातित मुद्रास्फीति देखने को मिलती है।
आयातित वस्तुओं की लागत में वृद्धि
- किसी देश की मुद्रा का अवमूल्यन हुए बिना, जब आयातित वस्तुओं की लागतों में वृद्धि हो जाती है, इससे भी आयातित मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।
- उदहारण के लिए : विश्व में कच्चे तेल के उत्पादन में कमी से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाती है। इससे भारत जैसे देश जिनकी अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के लिए कच्चे तेल के आयात पर निर्भर है, वहाँ पर वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होगी, जोकि आयातित मुद्रास्फीति की स्थिति दर्शाती है।
- आयातित मुद्रास्फीति का यह प्रकार लागत जनित मुद्रास्फीति का एक रूप है, जिसमें यदि उत्पादन कारकों (भूमि, पूँजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि होगी, तो अंतिम उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में भी वृद्धि होगी।
आयातित मुद्रास्फीति के लागत जनित कारकों का आलोचनात्मक पक्ष
- लागत जनित आयातित मुद्रास्फीति के आलोचकों का मानना है कि आर्थिक दृष्टिकोण से लागत द्वारा वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण नहीं होता है बल्कि ग्राहक की वस्तु या सेवा की क्रय करने की इच्छा शक्ति से उत्पन्न मांग द्वारा मुद्रास्फीति का निर्धारण होता है।
- उदहारणस्वरुप, यदि उत्पादक वस्तुओं के निर्माण में कच्चे माल के लिए मँहगी कीमतें देता है, और मँहगी कीमतों पर बाजार में बेचता है। तब अंतिम रूप से ग्राहक द्वारा वस्तु को क्रय करने की या मंहगी कीमत देने की इच्छा से ही मुद्रास्फीति का निर्धारण होगा, क्योंकि यदि ग्राहक वस्तु नहीं खरीदेगा, तब बाजार में मांग में कमी से आपूर्ति में कमी आएगी। परिणामस्वरूप कच्चे माल की लागत में भी कमी आएगी और आयातित मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।
- अंतिम उपभोक्ता द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य निर्धारण की अवधारणा का उल्लेख ऑस्ट्रिया के अर्थशास्त्री कार्ल मेंगर ने 1871 में अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र के सिद्धांत’ (Principles of Economy) में किया था।
- इसी प्रकार लागत जनित आयातित मुद्रास्फीति आलोचकों का यह भी मानना है कि मुद्रा के मूल्यह्रास से मुद्रास्फीति नहीं बढ़ती है। मुद्रा का मूल्यह्रास केवल यह दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर की तुलना में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ी है। और मुद्रा बाजार में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ने से आयातित वस्तुओं की उच्च मांग का पता चलता है, लेकिन मँहगाई का निर्धारण अंतिम उपभोक्ता की क्रय इच्छा शक्ति से उत्पन्न मांग पर ही निर्भर करता है।
- अंतिम रूप से हम कह सकते हैं कि यह अवधारणा लागत जनित मुद्रास्फीति के स्थान पर मांग जनित मुद्रास्फीति को वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों का मुख्य निर्धारक मानती है।
आयातित मुद्रास्फीति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी : आयातित मुद्रास्फीति से भारतीयों को आयात के लिए अधिक भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा, इससे भारत के विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी होगी। ADB की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 29 मार्च 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार 645.58 बिलियन डॉलर था, जो 11 माह के विदेशी आयात के लिए पर्याप्त है।
- सरकारी राजस्व में कमी : आयातित मुद्रास्फीति से भारत में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होगी, जिससे बाजार में वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग में कमी होगी। बाजार में कम बिक्री के परिणामस्वरूप सरकारी राजस्व आय में भी कमी होगी।
- भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन : आयातित मुद्रास्फीति से भारतीय आयातकों को अधिक रुपये का भुगतान करना होगा, इससे मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा की प्रचुरता बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन होगा।
- निवेशकों में उत्साह की कमी : भारत में मुद्रास्फीति बढ़ने से रिज़र्व बैंक को सख्त मौद्रिक नीति का अनुपालन करना होगा, जिससे अर्थव्यवस्था की विकास गति सुस्त हो सकती है। इससे विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकर्षण में कमी आ सकती है।
आगे की राह
- ADB की रिपोर्ट में पश्चिमी देशों में ब्याज दरों में वृद्धि को भारत में आयातित मुद्रास्फीति का मुख्य कारण बताया गया है, इसके लिए भारत सरकार को भारतीय मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मजबूती के लिए भारतीय निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए।
- भारतीय निर्यात को बढ़ाने के लिए भारत सरकार को भारतीय उत्पादकों को विशेष उपाय जैसे- करों में छूट, लागत में सब्सिडी आदि को अपनाना चाहिए।
- व्यष्टि स्तर पर सरकार एवं RBI के साथ-साथ समष्टि स्तर पर भारतीय नागरिकों को अपने क्रय व्यवहार में भारत निर्मित एवं उत्पादित वस्तुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।
निष्कर्ष
आयातित मुद्रास्फीति लागत एवं मांग जनित दोनों कारकों का परिणाम हो सकती है। आवश्यकता है कि भारत साकार ADB की रिपोर्ट पर गंभीर विचार करते हुए आयातित मुद्रास्फीति के प्रभावों के निवारण कि लिए समय रहते समुचित प्रयासों को अपनाएँ।