(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी एवं सामान्य विज्ञान से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास के अनुप्रयोग तथा संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण तथा पर्यावरण प्रभाव का आकलन से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने सूचना दी है कि भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा एक ‘बेहतर जल प्रबंधन प्रणाली’ विकसित की गई है।
- इस प्रणाली के माध्यम से कपड़ा कारखानों से निकलने वाले ‘औद्योगिक डाई अपशिष्ट जल’ की विषाक्तता को समाप्त कर, उसे पुनः घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिये उपयुक्त बनाया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक चरण वाली वर्तमान जल उपचार प्रक्रियाएँ विषाक्त औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार करने में असमर्थ हैं।
उच्च लागत
- औद्योगिक अपशिष्ट (डाई-आधारित) में रंग और गंध के लिये स्टैंड-अलोन ‘उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रिया’ (Advanced Oxidation Process – AOP) निर्धारित सरकारी मानकों को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
- यह संश्लेषित औद्योगिक रंगों, चमकीले रंग और गंध को दूर नहीं कर सकता है। इसका असर विशेष रूप से जलीय जीवन पर लंबे समय तक पड़ने वाले ‘कैंसरकारी और विषाक्त प्रभाव’ के रूप में होता है।
- इस विषाक्तता को दूर करने के लिये ए.ओ.पी. तकनीक के साथ एक उन्नत उपाय को जोड़ना होगा।
- इस दिशा में काम करते हुए, ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ (IIT) कानपुर के शोधकर्ताओं ने ‘मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान’, जयपुर और ‘एम.बी.एम. कॉलेज’, जोधपुर के साथ मिलकर एक संशोधित ए.ओ.पी. को विकसित किया है।
संशोधित ए.ओ.पी. प्रक्रिया
- यह पूर्णतः संशोधित उपचार प्रक्रिया है, जिसमें तीन चरण शामिल हैं-
- प्राथमिक चरण में प्राइमरी डोसिंग स्टेप (Primary Dosing Step)
- दूसरे चरण में रेत निस्पंदन (Filtration)
- तृतीय चरण में कार्बन निस्पंदन
- यह त्रि-चरणीय पारंपरिक प्रक्रिया की आवश्यकता को समाप्त करता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिकतम रंग को हटाने के साथ-साथ यह अंतर्देशीय जल निर्वहन मानकों (Inland water discharge standards) को भी पूरा करता है।
- ‘शून्य जल निर्वहन प्रणाली’ को लक्षित करने वाली उन्नत ए.ओ.पी. तकनीक द्वारा घरेलू तथा औद्योगिक उपयोग के लिये 10 किलो लीटर प्रतिदिन की दर से ‘औद्योगिक डाई अपशिष्ट जल’ को पुनः उपयोग के लिये उपयुक्त बनाया जा रहा है।
- अपशिष्ट जल में अघुलनशील कार्बनिक पदार्थों को डिग्रेड और खनिजीकरण करने के लिये इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त, वस्त्र उद्योगों से निष्कासित जहरीले व कैंसरजन्य रंगों (Dey) को उपचारित करने में उक्त तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
कम लागत वाला समाधान
- यह मौजूदा अपशिष्ट उपचार प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित कर सकता है, जिसमें निम्न लागत आधारित अम्ल-संशोधित मिट्टी का अवशोषण शामिल है।
- इसके पश्चात् इस प्रक्रिया में एक ‘फोटोकैमिकल रिएक्शन चरण’ होता है।
- प्रायोगिक आधार पर स्थापित होने के पश्चात् यह औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार करता है।
लाभ
- यह प्रणाली जल की उपचार लागत को कम करने के साथ-साथ जल के अपव्यय को भी कम कर सकती है।
- इसके माध्यम से शुष्क क्षेत्रों में पानी के पुनः उपयोग की सुविधा प्रदान की जा सकती है।
- इस प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में जल उपचार (विशेष रूप से कीचड़ निपटान की उच्च लागत के कारण) के लिये पारंपरिक पद्धतियों से होने वाली उपचार लागत में 50 प्रतिशत की कमी आई है।
- इसके अलावा, मौजूदा औद्योगिक आवश्यकता को पूरा करने के लिये इस संयंत्र की क्षमता को 100 किलोलीटर प्रतिदिन तक बढ़ाने पर कार्य चल रहा है।