(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ एवं मानचित्र आधारित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति के प्रभाव से संबंधित विषय)
संदर्भ
- हाल ही में, प्रमुख पश्चिम एशियाई देशों ने ऐसे देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत की है, जो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। यह स्थिति वैश्विक राजनीति में नवीन समीकरण स्थापित करेगी तथा शांति बहाली को प्रोत्साहित करेगी।
नीति में परिवर्तन के कारण
- चूँकि पश्चिम एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ ‘तेल’ पर आधारित हैं और महामारी के दौरान तेल की कीमतें गिरी हैं। ऐसे में, इन देशों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। अतः इन देशों को अपनी नीति परिवर्तित करने के लिये विवश होना पड़ा है।
- विभिन्न पश्चिम एशियाई देशों, यथा– सीरिया, यमन, लीबिया आदि लंबे समय से संघर्षरत हैं, लेकिन जान-माल की हानि के अलावा इसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। ऐसे में, इस क्षेत्र में विदेशी संबंधों के पुनर्गठन की माँग बलवती होने लगी। उल्लेखनीय है कि यमन में जारी संघर्ष में ईरान तो हाउती विद्रोहियों (शिया) का, जबकि सऊदी अरब यमन सरकार (सुन्नी) का समर्थन कर रहा है।
पश्चिम एशियाई देशों द्वारा किये गए प्रयास
- इस वर्ष बगदाद में सऊदी अरब और ईरान के मध्य बातचीत हुई। जनवरी 2016 में राजनयिक संबंध टूटने के बाद दोनों देशों की यह पहली बैठक थी। ईरान ने सऊदी अरब के ‘यमन में युद्धविराम’ के प्रस्ताव का समर्थन भी किया है। इसके अलावा, दोनों देशों ने अब तक आपसी प्रतिद्वंद्विता की भारी वित्तीय कीमत भी चुकाई है।
- वर्तमान वर्ष में ही सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर पर लगाए गए राजनयिक और आर्थिक प्रतिबंध भी हटा लिये हैं।
- वर्ष 2013 में, जब मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को सैन्य तख्तापलट द्वारा हटा दिया गया था, तब तुर्की और मिस्र ने अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर लिये थे। तत्पश्चात् अभी मई में तुर्की और मिस्र की पहली राजनयिक बैठक काहिरा में संपन्न हुई।
- तुर्की जहाँ एक तरफ, लीबिया में शांति प्रक्रिया को बढ़ावा दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ, पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में अपने हितों की पूर्ति के लिये ग्रीस, इज़राइल और साइप्रस को चुनौती भी दे रहा है। इसके अलावा, तुर्की ने सऊदी अरब से भी नजदीकी बढ़ाई। उसने 'खशोगी हत्याकांड' पर सऊदी अदालत का फैसला स्वीकार किया तथा हाउती विद्रोहियों के खिलाफ सउदी अरब का साथ देने की बात कही।
- मिस्र तथा कतर के रिश्ते भी बेहतर हुए हैं। ‘कतर’ द्वारा मिस्र में भारी निवेश किये जाने की संभावना है। अल जज़ीरा टेलीविजन पर मिस्र विरोधी प्रसारण में भी कमी आई है।
- ऐसे में, कतर ने क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिये ईरान तथा खाड़ी देशों के मध्य वार्ता के आयोजन की पेशकश की है, जिसका ईरान ने स्वागत किया है।
चुनौतियाँ
- यह अभी केवल एक शुरुआत है और सभी पक्षों को मतभेद सुलझाने के लिये एक लंबा रास्ता तय करना है। उदाहरणार्थ, ‘मिस्र’ मुस्लिम ब्रदरहुड और उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को लेकर तुर्की के साथ असहज बना हुआ है।
- इसी तरह, सऊदी अरब की भी तुर्की के संबंध में समान चिंताएँ हैं तथा सऊदी-ईरान संबंधों सहज करना अत्यंत कठिन है।
- सीरिया में विभिन्न देशों के हित निहित हैं, अतः उनमें आपसी सामंजस्य बिठाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होगा।
अमेरिकी दृष्टिकोण
- पश्चिम एशियाई राष्ट्रों के दृष्टिकोण में इस परिवर्तन की वजह अमेरिका द्वारा इस क्षेत्र से अपनी सेना को वापस बुलाना माना जा रहा है। अमेरिका ने सऊदी अरब व मिस्र में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता जताई तथा यमन में युद्ध का तीखा विरोध किया। इसके अलावा, अमेरिका ‘ईरान’ के साथ हुए परमाणु समझौते को भी पुनर्जीवित कर सकता है।
- ‘रूस-तुर्की संबंध’ अमेरिका की तुर्की से दूरी का प्रमुख कारण है। ‘तुर्की’ अमेरिकी समर्थक ‘सीरिया’ में कुर्दों को सैन्य कार्रवाई की धमकी देता है। इस पर अमेरिकी रुख में नरमी की उम्मीद है। हाल में अमेरिका ने 'अर्मेनियाई नरसंहार' की कड़ी निंदा की थी।
निष्कर्ष
- कहा जा सकता है कि पश्चिम एशियाई राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह हो रहा है कि विभिन्न देश पुरानी दुश्मनी भुलाकर आपसी आत्मविश्वास प्रदर्शित कर रहे हैं तथा शांति बहाली के लिये तत्पर दिखते हैं।
- आज पश्चिम एशियाई देश बाहरी हस्तक्षेप के बिना अपने साझा हितों पर बातचीत करने के लिये तैयार हैं। इन देशों को क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिये ऊर्जा, अर्थव्यवस्था और लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी आदि क्षेत्रों में आपसी सहयोग करना होगा, जो समूचे क्षेत्र के लिये लाभदायक सिद्ध होगा।