संदर्भ
‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ के अनुसार, वर्ष 2011-15 की तुलना में वर्ष 2016-19 के दौरान प्रतिशतता के हिसाब से भारत के कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन वृद्धि दर में कमी आई है।
वैश्विक तुलना
- चीन के उत्सर्जन में वर्ष 2016 से 2019 के दौरान 4% की वृद्धि हुई, जबकि अमेरिका के उत्सर्जन में 0.7% की गिरावट दर्ज की गई। हालाँकि, निरपेक्ष संख्या के मामले में इन दोनों देशों का उत्सर्जन भारत से अधिक है।
- उदाहरणस्वरुप, वर्ष 2018 में चीन ने लगभग 10 बिलियन टन और अमेरिका ने 41 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया। इस दौरान भारत का उत्सर्जन 2.65 टन रहा।
- वर्ष 2020 में भारत के उत्सर्जन में 9.7% की कमी आई, जो 6% के वैश्विक औसत से थोड़ा अधिक था। साथ ही, वर्ष 2020 में CO2 के वैश्विक उत्सर्जन में 2.6 बिलियन टन की कमी आई है, जो वर्ष 2019 के स्तर से 7% कम है।
उपाय
- 5 से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक वैश्विक तापन को रोकने के लिये 2020 के दशक के साथ-साथ बाद के दशक में भी 1 से 2 बिलियन टन वार्षिक दर से CO2 में कटौती की आवश्यकता है।
- शोध के अनुसार, वर्ष 2016-2019 के दौरान 64 देशों के जीवाश्म आधारित CO2 उत्सर्जन में कमी आई है। हालाँकि, इस दौरान 150 देशों में उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उत्सर्जन में कमी की दर को दस गुना करने की आवश्यकता है।
- इस वर्ष ग्लासगो, स्कॉटलैंड में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में देशों को वैश्विक तापन को नियंत्रित करने की प्रगति और आगे के शमन उपायों के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने की उम्मीद है।