(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 : आर्थिक विकास; सरकारी बजट, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार)
संदर्भ
विश्व में उत्पादित एवं उपभोग की जाने वाली कई फसलों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक भारत को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है। भारत की एक बड़ी आबादी आजीविका के लिये कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। इसके बावजूद खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ. ए. ओ.) द्वारा जारी कृषि नीति सूचकांक (Agriculture Orientation Index: AOI) में वैश्विक स्तर पर भारत का स्थान 38वाँ है, जो देश में कृषि की चिंताजनक स्थिति को प्रदर्शित करता है।
भारत में कृषि व्यय
- केंद्रीय बजट 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिये समग्र बजटीय आवंटन में 4.4% की मामूली वृद्धि हुई है। यह वृद्धि वर्तमान मुद्रास्फीति दर 5.5% - 6% से भी कम है।
- एफ. ए. ओ. की वर्ष 2001 से 2019 के लिये जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, कृषि में सरकारी व्यय के मामले में विश्व स्तर पर भारत का स्थान शीर्ष 10 देशों में शामिल है। यह अपने व्यय का लगभग 7.3% हिस्सा कृषि पर खर्च करता है।
- यह व्यय कई निम्न-आय वाले देशों जैसे मालावी (18%), माली (12.4%), भूटान (12%) एवं नेपाल (8%) तथा उच्च-मध्यम-आय वाले देशों जैसे गुयाना (10.3%) एवं चीन (9.6%) से कम है।
कृषि नीति सूचकांक
- वर्ष 2015 में एफ. ए. ओ. द्वारा कृषि नीति सूचकांक को सतत विकास लक्ष्य 2 के तहत ‘शून्य भूखमरी’ (Zero Hunger) के हिस्से के रूप में विकसित किया गया। इस लक्ष्य के अंतर्गत ग्रामीण बुनियादी ढाँचे, कृषि अनुसंधान एवं विस्तार सेवाओं के निवेश में वृद्धि, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी के विकास तथा मध्यम एवं निम्न आय वाले देशों में गरीबी उन्मूलन पर ध्यान दिया गया है।
- ए.ओ.आई., कृषि क्षेत्र के लिये सरकारी व्यय एवं सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के बीच के अनुपात को प्रदर्शित करता है। गौरतलब है कि सूचकांक में भारत की स्थिति निम्न स्तर पर है तथा भारत में कृषि क्षेत्र में सरकारी व्यय जी.डी.पी. में इस क्षेत्र के योगदान के अनुरूप नहीं है।
कृषि नीति सूचकांक में भारत की स्थिति
- भारत के ए.ओ.आई. में 2000 के दशक के मध्य से सुधार दिखाई देता है, किंतु यह प्रदर्शन एशिया तथा अन्य कई मध्यम एवं उच्च-आय वाले देशों की तुलना में फिर भी निम्न स्तरीय है।
- एशिया के 4,225 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में भारत में कुल अनाज की उपज केवल 3,282 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
- एशियाई क्षेत्र के अंतर्गत सर्वाधिक अनाज का उत्पादन पूर्वी एशिया में होता है, जो 6,237 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। पूर्वी एशियाई देशों द्वारा कृषि क्षेत्र पर किया गया भारी व्यय उनकी उच्च फसल उपज के रूप में प्रदर्शित होता है।
- चीन ने भारत की तुलना में अल्प औसत भूमि जोत के आकार (0.6 हेक्टेयर) के बावजूद फसल उपज के मामले में अपेक्षाकृत उच्च प्रदर्शन किया है।
महत्त्वपूर्ण बजटीय कटौतियाँ एवं इसके निहितार्थ
- हालिया बजटीय आवंटन में कृषि क्षेत्र से संबंधित फसल बीमा और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं के लिये धनराशि में अत्यधिक कटौती की गई है। ध्यातव्य है कि बजटीय परिव्यय में समग्र वृद्धि के बावजूद, बाजार हस्तक्षेप योजना और समर्थन मूल्य योजना (एम.आई.एस.-पी.एस.एस.) के लिये केवल ₹1,500 करोड़ आवंटन का प्रावधान किया गया है जोकि वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमान से 62% कम है।
- प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पी.एम.-आशा) के लिये केवल एक करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जबकि वित्तवर्ष 2021-22 में यह राशि ₹ 400 करोड़ थी।
- कल्याणकारी योजनाओं के लिये राज्यों को दालों के वितरण हेतु आवंटित राशि को वित्त वर्ष 2021-22 के ₹50 करोड़ (संशोधित अनुमान) की तुलना में घटाकर वर्तमान बजट में ₹9 करोड़ कर दिया गया है। साथ ही, कुल केंद्रीय योजनाओं/परियोजनाओं में समग्र रूप से ₹8 करोड़ की कमी की गई है, जिसका कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश मूल्य समर्थन कार्यक्रमों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके बावजूद ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और विपणन सुविधाओं को बढ़ावा देने हेतु पूंजी निवेश के लिये आवंटन में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। पिछले बजट में ग्रामीण विकास के लिये आवंटन 5.59% था, जिसे घटाकर 5.23% कर दिया गया है।
- हालाँकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम किसान), प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना आदि के लिये धन का आवंटन वांछनीय है, किंतु इन योजनाओं से दीर्घकालिक परिसंपत्ति का उत्पादन नहीं हो सकता।
आगे की राह
- कृषि क्षेत्र के अंतर्गत सरकारी व्यय में वृद्धि से उच्च कृषि संवृद्धि एवं उच्च कृषि आय के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार उन्नत सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों के अनुसार मंडियों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये। साथ ही, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और ग्रामीण परिवहन सुविधाओं के विकास पर भी जोर दिया जाना चाहिये।
- समग्रतः ये सभी उपाय किसानों की बाजारों तक पहुँच बढ़ाने तथा छोटे और सीमांत किसानों को कृषि आपूर्ति श्रृंखला में काफी हद तक एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।