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आर्द्रतायुक्त गर्मी में वृद्धि

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत एवं विश्व का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन- 3 : महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ एवं भौगोलिक विशेषताएँ, वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव, आपदा एवं आपदा प्रबंधन)

संदर्भ

एक शोध के अनुसार, भारत में मानसून के दौरान अत्यधिक आर्द्रतायुक्त गर्मी या उमस भरी गर्मी (Extreme Levels of Humid Heat) से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या में वर्ष 1951 से वर्ष 2020 के बीच कम-से-कम 67 करोड़ की वृद्धि हुई है।

शोध निष्कर्ष के प्रमुख बिंदु

  • शोध के अनुसार, 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक चरम एवं हानिकारक वेट-बल्ब तापमान (Wet-bulb Temperatures) वाले क्षेत्र में करीब 43 मिलियन वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है। 
    • वस्तुतः इस क्षेत्र में 67 करोड़ से अधिक लोग शामिल हैं।
  • आर्द्रतायुक्त गर्मी में लगातार वृद्धि मानसून के दौरान श्रम-गहन कार्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक वेट-बल्ब तापमान वाली आर्द्र गर्मी के चरम पर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र मुख्यत: इंडो-गंगा के मैदान और पूर्वी तट थे।
    • वस्तुतः आर्द्रता युक्त गर्मी में वृद्धि इस क्षेत्र रहने वाले लगभग 37-46 मिलियन लोगों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है।

वेट-बल्ब ग्लोब तापमान

वेट-बल्ब ग्लोब तापमान (WBGT) पैरामीटर मनुष्यों पर तापमान, सापेक्ष आर्द्रता, वायु एवं सौर विकिरण के प्रभाव का अनुमान लगाता है।

  • ग्लोबल वार्मिंग से वर्ष 1951 से 2020 के बीच गर्म व आर्द्र चरम दिनों की संख्या में 10 की वृद्धि हुई है।
  • साथ ही, औसत सापेक्ष आर्द्रता (RAH) वर्ष 2001-10 के औसत की तुलना में पिछले दस गर्मियों के सीजन के दौरान काफी बढ़ गई है।
  • बेंगलुरू को छोड़कर अन्य महानगरों में औसत सापेक्ष आर्द्रता में 5% से 10% की वृद्धि हुई है। 
    • वस्तुतः हैदराबाद जैसे शुष्क क्षेत्रों में सापेक्ष आर्द्रता 2001-2010 की तुलना में 10% बढ़ी है, जबकि दिल्ली में 8% बढ़ी है। 
    • मुंबई, कोलकाता एवं चेन्नई अभी भी दिल्ली व हैदराबाद की तुलना में 25% अधिक आर्द्रता प्रदर्शित करते हैं।

क्या है आर्द्रतायुक्त गर्मी

  • आर्द्रतायुक्त गर्मी से तात्पर्य उच्च तापमान एवं आर्द्रता के संयोजन के फलस्वरूप बढ़ी हुई परिवर्तित गर्मी से है।
    • वस्तुतः उच्च तापमान एवं वायु में आर्द्रता के उच्च स्तर के कारण आर्द्रतायुक्त गर्मी उत्पन्न होती है।
  • अतः ऐसी स्थिति में शरीर का पसीना आसानी से वाष्पित नहीं होता है, जिसके कारण शरीर को ठंडा करना कठिन हो जाता है। 
    • परिणामस्वरूप, आर्द्र गर्मी तुलनात्मक रूप से अधिक खतरनाक होती है।

आर्द्रतायुक्त गर्मी का प्रभाव

स्वास्थ्य

  • यह ऊर्जा में कमी एवं सुस्ती की दशा को बढ़ाती है। यह हाइपरथर्मिया का कारण बन सकता है। 
    • फलस्वरूप निर्जलीकरण, थकान, मांसपेशियों में ऐंठन, बेहोशी, मतली एवं लू लगने जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

श्रम उत्पादकता

  • आर्द्रतायुक्त गर्मी श्रम उत्पादकता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • वस्तुतः ग्लोबल वार्मिंग में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि श्रम उत्पादकता को 7% तक कम कर सकती है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कम-से-कम 4% की कमी ला सकती है।
  • फलतः शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से मानसून के दौरान अत्यधिक आर्द्रतायुक्त गर्मी की स्थिति वाले क्षेत्रों में खुले में काम के घंटों को संशोधित करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। 

शुष्क गर्मी से तात्पर्य

  • शुष्क गर्मी (Dry Heat) उच्च तापमान एवं निम्न आर्द्रता वाले क्षेत्रों में बाहरी परिस्थितियों को संदर्भित करती है। 
  • यह स्थिति प्राय: गर्म रेगिस्तानी जलवायु में होती है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है। 
  • वस्तुतः वायु में नमी की अनुपस्थिति से शरीर का पसीना अधिक तेज़ी से वाष्पित होता है, जिसके कारण शुष्क गर्मी, आर्द्रतायुक्त गर्मी की तुलना में ठंडा हो सकता है।
  • शुष्क गर्मी की स्थिति में अत्यधिक जल के सेवन पर बल दिया जाता है क्योंकि पसीने के तेजी से वाष्पित होने से निर्जलीकरण हो सकता है।
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