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वायु गुणवत्ता में सुधार के साथ ओज़ोन प्रदूषण में वृद्धि: कारण और परिणाम

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा के क्यों?

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) के अनुसार, लॉकडाउन शुरू होने के बाद से भारत के 22 मेगा व महानगरीय शहरों में ओज़ोन प्रदूषण में वृद्धि हुई है। साथ ही, कई शहरों में यह तय मानकों को पार कर गया है।

पृष्ठभूमि

वैश्विक स्तर पर लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के चलते वायु की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है। हालाँकि, एक नए अध्ययन से पता चला है कि इस दौरान नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और पी.एम. 2.5 (PM2.5) के स्तर में कमी आई है परंतु ओज़ोन प्रदूषण में वृद्धि हुई है। दिल्ली स्थित विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने इससे सम्बंधित अध्ययन ज़ारी किया है। सामान्य तौर पर ओज़ोन का उपयोग ब्लीचिंग, दुर्गंध रोधी अभिकर्ता और हवा व पीने के पानी को विसंक्रमित करने के लिये किया जाता है।

ओज़ोन: एक प्रदूषक के रूप में

  • ओज़ोन एक अत्यधिक क्रियाशील गैस है। पृथ्वी के समतापमंडल (Stratosphere) में ओज़ोन गैस (O3) जीवन रक्षक की तरह कार्य करती है। समतापमंडल में यह गैस ओज़ोन परत का निर्माण करती है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण को फ़िल्टर करती है। वायुमंडल में मौजूद समस्त ओज़ोन का लगभग 90 % समतापमंडल में पाया जाता है। समतापमंडलीय ओज़ोन को ‘गुड ओज़ोन’ भी कहा जाता है।
  • हालाँकि, क्षोभमंडल (Troposphere- पृथ्वी की सतह के आस-पास) में, ओज़ोन एक प्रदूषक की तरह कार्य करता है। जहाँ यह सुभेद्य समूहों में कई स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा करने के साथ-साथ श्वसन तथा हृदय व रक्तवाहिका सम्बंधी रोग भी उत्पन्न कर सकता है।
  • क्षोभमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन सामान्यतः मानव निर्मित होती है। बहुत कम मात्रा में होने के बावजूद भी यह मनुष्यों और पेड़-पौधों को हानि पहुँचा सकती है अतः क्षोभमंडलीय ओज़ोन को ‘बैड ओज़ोन’ भी कहते हैं।

पी.एम. 2.5 और पी.एम. 10 (PM2.5 and PM10)

  • पी.एम. (PM) को पार्टिकुलेट मैटर या कणिका तत्त्व या कणीय प्रदूषण भी कहते हैं। यह वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। पार्टिकुलेट मैटर कालिख, धुआँ, धातु व नाइट्रेट, सल्फेट सहित धूल, पानी और रबड़ आदि का एक जटिल मिश्रण है।
  • हवा में मौजूद ये कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इनको नग्न आँखों से भी नहीं देखा जा सकता हैं और कुछ कणों का तो केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के उपयोग द्वारा ही पता लगाया जा सकता है।
  • पी.एम. 2.5 ऐसे वायुमंडलीय कणों को संदर्भित करता है जिसका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। यह मानव के बाल के व्यास का लगभग 3 % होता है।
  • पी.एम. 10 ऐसे कण है जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर होता हैं। इन्हें सूक्ष्म कण या फाइन पार्टिकल भी कहा जाता है। पी.एम. 10 को रेस्पिरेबल पार्टिकुलेट मैटर के रूप में भी जाना जाता है।
  • पार्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकार के होते हैं तथा यह मानवीय व प्राकृतिक दोनों स्रोतों से उत्पन्न हो सकते हैं। इसके प्राथमिक स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआँ शामिल है। प्रदूषण का द्वितीयक या गौण स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रियाओं के कारण हो सकता है।
  • इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने, कृषि अवशेषों के दहन, उद्योग से निकलने वाले धुएँ, विभिन्न निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल आदि भी वायु के प्रदूषण का कारण बनती हैं।
  • यह श्वास के माध्यम से फेफड़ों को प्रदूषित करता है जिससे कफ और अस्थमा हो सकता है। साथ ही, उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक आदि गम्भीर बीमारियाँ भी हो सकती हैं
  • यदि वायु में पी.एम. 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर और पी.एम. 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर है तो ऐसी हवा को साँस लेने के लिये सुरक्षित माना जाता है।
  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) के साथ, क्षोभमंडलीय ओज़ोन बाह्य वायु प्रदूषण के कारण होने वाले कई दुष्प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार है।
  • इसके अलावा, फैक्ट्रियों व वाहनों से उत्सर्जित होने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड तथा अन्य गैसों की रासायनिक अभिक्रिया भी ओज़ोन प्रदूषकों के निर्माण में सहायक होती है।
  • अन्य गैसों (प्रदूषक) की माप के लिये 24 घंटे का औसत लिया जाता है जबकि ओज़ोन की माप के लिये 8 घंटे के औसत आँकड़ों का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण ओज़ोन गैस का अत्यधिक क्रियाशील होना है। इन 8 घंटों में ओज़ोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये।

सी.एस.ई. के अध्ययन का सार

  • सी.एस.ई. ने जनवरी 2019 तथा मई 2020 की समयावधि के लिये चार प्रमुख प्रदूषकों- पी.एम. 2.5 व पी.एम. 10 के साथ-साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड व ओज़ोन की प्रवृत्ति का विश्लेषण किया।
  • इस विश्लेषण में दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ-साथ कोलकाता, चेन्नई व मुंबई के अलावा अन्य प्रमुख शहरों को भी शामिल किया गया है। इस अध्ययन के अंतर्गत चयनित शहरों में ओज़ोन के स्थानिक प्रवृत्ति के विश्लेषण को भी शामिल किया गया।
  • अध्ययन के अनुसार, आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के कारण अधिकांश शहरों में पी.एम. 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में कमी आई है। हालाँकि, इन शहरों में अदृश्य ओज़ोन प्रदूषण का अधिकतम औसत कई दिनों तक मानक स्तरों से अधिक था। अहमदाबाद में ओज़ोन का अधिकतम औसत 43 दिनों तक मानक से अधिक था।
  • दिल्ली-एन.सी.आर. और अहमदाबाद के कम से कम एक प्रदूषक मापक स्टेशन में लॉकडाउन के दो-तिहाई दिनों में ओज़ोन का स्तर मानक से अधिक पाया गया था।

ओज़ोन के स्तर में वृद्धि का कारण

  • विश्व के कई हिस्सों में ग्रीष्म ऋतु के दौरान ओज़ोन प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है। साथ ही, शुद्ध वातावरण वाले क्षेत्रों में भी इसमें वृद्धि देखी जाती है।
  • सी.एस.ई. के अनुसार, हालाँकि ओज़ोन किसी भी स्रोत द्वारा सीधे उत्सर्जित नहीं होती है, परंतु इसका निर्माण हवा में सूर्य के तीव्र प्रकाश तथा ऊष्मा के प्रभाव में नाइट्रोजन के ऑक्साइडों (NOx) तथा अन्य वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) के मध्य परस्पर प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप होता है।
  • नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का उच्च स्तर पुनः ओज़ोन के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है और इसके स्तर को कम कर सकता है। वाष्पशील कार्बनिक यौगिक में विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन शामिल होते हैं।
  • अतः वातावरण के शुद्ध होने या वातावरण में नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की कमी होने के परिणामस्वरुप इन क्षेत्रों में ओज़ोन की सांद्रता में वृद्धि हो जाती है। अध्ययन के अनुसार, ओज़ोन को केवल तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब सभी स्रोतों से गैसों को नियंत्रित कर दिया गया हो।
  • ध्यातव्य है की भारत में लॉकडाउन ग्रीष्म ऋतु के दौरान लगाया गया है। अतः नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का सामान्य से कम स्तर और उच्च तापमान के प्रभाव के परिणामस्वरुप ओज़ोन के स्तर में तीव्र वृद्धि हुई है।
  • मई माह में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन में यू.के. में भी इसी तरह की प्रवृत्तियों को देखा गया, जहाँ लॉकडाउन के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में 20 से 80 % की कमी आई परंतु ओज़ोन के स्तर में वृद्धि हुई है।
  • मैनचेस्टर विवि. की टीम ने अनुमान लगाया कि शहरी क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान ओज़ोन का प्रकाश-रासायनिक उत्पादन नाइट्रोजन के ऑक्साइड की कम मात्रा के कारण ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • जैसे-जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में कमी आती हैं, प्रकाश-रासायनिक उत्पादन अधिक प्रभावी हो सकता है और इससे गर्मियों में ओज़ोन की सांद्रता अधिक हो सकती है। उच्च तापमान के कारण प्राकृतिक स्रोतों जैसे कि वृक्षों से बायोजेनिक हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन बढ़ता है, जो शहरी ओज़ोन स्तर को काफी प्रभावित करता है।

इस जानकारी का महत्त्व

  • दुनिया भर में, लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के कारण नाइट्रोजन के ऑक्साइडों और पार्टिकुलेट मैटर के स्तर में कमी आई है, जिससे हवा साफ हो गई है। हालाँकि यह एक सकारात्मक परिणाम है, फिर भी हानिकारक ओज़ोन के उच्च स्तर से यह संकेत मिलता है कि वर्तमान में सुधरी हुई स्थितियाँ अभी भी मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं।
  • महामारी के बाद भी इस अवधि का लाभ लेने के लिये स्वच्छ आकाश और स्वस्थ फेफड़ों के लिये एक एजेंडे की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ ओज़ोन सहित गैसीय उत्सर्जन और पार्टिकुलेट मैटर दोनों के स्तर में कमी के संयुक्त लाभ को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
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