प्रारंभिक परीक्षा – विधि आयोग मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय |
सन्दर्भ
- हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 वें विधि आयोग की अवधि 31 अगस्त, 2024 तक बढ़ा दी है।
- 22वें विधि आयोग का गठन 2020 में तीन वर्ष की अवधि के लिए किया गया था।
- विधि आयोग वर्तमान में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार कर रहा है।
विधि आयोग
- विधि आयोग, केंद्र सरकार द्वारा गठित एक गैर-सांविधिक निकाय है।
- इसे एक तदर्थ निकाय के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, जिसका गठन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।
- विधि आयोग, कानून और न्याय मंत्रालय के सलाहकार निकाय के रूप में काम करता है।
- इसका लक्ष्य समाज में न्याय को सुलभ बनाने और विधि के शासन के तहत सुशासन को बढ़ावा देने के लिये कानूनों में सुधार का सुझाव देना है।
- विधि आयोग के विचारार्थ विषयों में अन्य बातों के साथ-साथ अप्रचलित कानूनों की समीक्षा/निरसन, गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जांच करना और सामाजिक-आर्थिक विधानों के लिये पोस्ट-ऑडिट करना, न्यायिक प्रशासन की प्रणाली की समीक्षा करना शामिल है।
- इसका कार्य कुछ निर्धारित संदर्भ के साथ कानून के क्षेत्र में अनुसंधान करना है।
- आयोग अपने संदर्भ शर्तों के अनुसार सरकार को (रिपोर्ट के रूप में) सिफारिशें करता है।
- विधि आयोग ने अभी तक 277 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं।
विधि आयोग का इतिहास
- प्रथम स्वतंत्रता-पूर्व विधि आयोग की स्थापना 1834 में भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी।
- यह 1833 के चार्टर अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था, इसकी अध्यक्षता लॉर्ड मैकाले ने की थी।
- स्वतंत्र भारत का पहला विधि आयोग वर्ष 1955 में स्थापित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता एम. सी. सीतलवाड़ ने की थी।
- भारत की आजादी के बाद से अब तक 22 विधि आयोग गठित हो चुके हैं, वर्तमान विधि आयोग (22 वां) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी हैं।
विधि आयोग के कार्य
- उन कानूनों की पहचान करना जिनकी वर्तमान में आवश्यकता या प्रासंगिकता नहीं है और जिन्हें तुरंत निरस्त किया जा सकता है।
- समान नागरिक संहिता की मांग पर विचार करना।
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों के आलोक में मौजूदा कानूनों की जांच करना और सुधार के तरीकों का सुझाव देना।
- ऐसे कानूनों का भी सुझाव देना जो निदेशक सिद्धांतों को लागू करने के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
- संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के आवश्यक कानूनों पर सुझाव देना।
- सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करने का सुझाव देना, जिससे उन्हें सरल बनाया जा सके और उनमे व्याप्त विसंगतियों, अस्पष्टताओं व असमानताओं को दूर किया जा सके।
- प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने, मामलों को तेजी से निपटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिये न्याय प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से अध्ययन तथा अनुसंधान करना।
संरचना
- विधि आयोग में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, एक सदस्य-सचिव सहित चार पूर्णकालिक सदस्य होते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आयोग के अध्यक्ष होंगे।
- कानून और विधायी सचिव(कानून मंत्रालय), विधि आयोग का पदेन सदस्य होता है।
- अंशकालिक सदस्यों की संख्या पाँच से अधिक नहीं।
विधि आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशें
- चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट, 1999 में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया गया था।
- विधि आयोग ने अपनी 262 वीं रिपोर्ट में आतंकवाद से संबंधित अपराधों और राज्य के खिलाफ युद्ध छेडऩे को छोड़कर अन्य सभी अपराधों के लिए मौत की सजा को समाप्त करने की सिफारिश की थी।