(प्रारम्भिक परीक्षा : आर्थिक विकास; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र – 3 : उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)
संदर्भ
विगत कुछ वर्षों से सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) की आर्थिक स्थिति निरंतर ख़राब हो रही है, जिससे इनके समक्ष कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
सरकारी उपक्रमों की प्रमुख समस्याएँ
- सरकार पिछले कई वर्षों से सरकारी उपक्रमों से निरंतर लाभांश प्राप्त कर रही थी लेकिन अब पी.एस.यू. इस स्थिति में नहीं हैं कि वे लाभांश भुगतान में सरकार की अपेक्षाओं के अनुरूप वृद्धि कर सकें।
- अतिरिक्त लाभांश भुगतान के अलावा सूचीबद्ध सरकारी उपक्रमों से बाज़ार पूंजीकरण बढ़ाने से सम्बंधित रूपरेखा पेश करने का भी दबाव बनाया जा रहा है। स्वाभाविक है कि पी.एस.यू. के विनिवेश के समय उच्च बाज़ार पूंजीकरण सरकार को अधिक आर्थिक मदद पहुंचाता है।
- वर्तमान में सरकार तथा पी.एस.यू. के बीच व्यवहार और सरकारी अपेक्षाओं को लेकर बुनियादी तालमेल का अभाव है। अक्सर सरकारी बैंकों सहित तमाम सरकारी उपक्रमों का उपयोग सरकार अपनी बजटीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये करती है, जिससे इन उपक्रमों की निवेश क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- यदि सरकारी उपक्रम नियमित रूप से उच्च लाभांश देते रहे तो उनके पास पूंजीगत निवेश के लिये कम संसाधन उपलब्ध होंगे, जिससे इन उपक्रमों की वृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
- सरकारी उपक्रमों द्वारा कम पूंजीगत निवेश के चलते भविष्य में इनके राजस्व और लाभ में भी कमी आएगी, जिससे लाभांश भुगतान की क्षमता में कमी के चलते सरकार की आय में भी कमी आएगी। ध्यातव्य है है कि सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार ही सबसे बड़ी अंशधारक होती है।
- वर्तमान में सरकारी उपक्रमों के बाज़ार मूल्य में निरंतर गिरावट आ रही है, जिसका मुख्य कारण सरकार द्वारा पीएसयू के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप तथा अतिरिक्त लाभांश की माँग करना है।
- सरकारी हस्तक्षेप के अलावा पी.एस.यू. के सुस्त परिचालन के तरीकों के कारण ये निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं।
सुझाव
- सरकार द्वारा पी.एस.यू. के विनिवेश से आय स्रोत के अलावा गैर जरूरी परिसम्पत्तियों के मौद्रीकरण की योजना प्रस्तुत की जानी चाहिये क्योंकि गैर जरूरी परिसम्पत्तियों की बिक्री से नकदी जुटाने में मदद मिलेगी।
- सरकारी उपक्रमों और इनके प्रबंधन के उचित कामकाज के लिये आवश्यक स्वायत्तता देनी चाहिये, जिससे ये बाज़ार प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम हो सकें।
निष्कर्ष
सरकारी उपक्रमों पर, सरकारी राजस्व की कमी की पूर्ति हेतु उनकी परिसम्पत्ति बेचने के लिये अनावश्यक दबाव बनाना और उनसे उच्च लाभांश की मांग करने से पी.एस.यू. की वृद्धि के अवसर सीमित हो रहे हैं। इसलिये सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति के लिये सरकारी उपक्रमों से जुड़ी नीतियों की समीक्षा में दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।