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प्राथमिक क्षेत्र ऋण का बढ़ता दायरा

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास-सतत विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3:समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत के स्टार्ट-अप क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र उधारी (Priority Sector lending-PSL) का दर्जा प्रदान किया गया है। इससे पहले परियोजनाओं से जुड़े जोखिम प्रोफाइल को देखते हुए इस क्षेत्र को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।

आर.बी.आई.की पहल का महत्त्व

  • व्यवसाय तथा लेन-देन का कोई ऋण-इतिहास (Credit-History) न होने के कारण स्टार्ट-अप्स को ऋण लेने में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिये आर.बी.आई.का यह कदम इस दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • केंद्रीय बैंक के इस कदम से स्टार्ट-अप और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिये उधारी का प्रवाह बढ़ेगा तथा क्षेत्रीय असमानताएँ भीदूर होंगी।
  • संशोधित दिशा-निर्देशों से समावेशी विकास पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा, जिससे सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने हेतु पर्यावरण अनुकूल नीतियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • स्टार्ट-अप्स अधिकतर वेंचर फण्ड के माध्यम से धन एकत्रित करते हैं, जिसके ज़रिये उन्हें स्वामित्त्व में हिस्सेदारी बेचनी पड़ती है।लेकिन आरबीआई के इस कदम से स्टार्ट-अप्स को बिना अपने स्वामित्त्व को हस्तांतरित किये ही ऋण की प्राप्ति सुगमता से हो सकेगी।
  • स्टार्ट-अपके लिये ऋण दायरे के विस्तार से उन्हें पी.एस.एल. टैग मिलेगा जिससे डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में व्यावसायिक इकाइयों जैसे नए क्षेत्रों के युवा उद्यमियों द्वारा शुरू की गई नई कम्पनियों के लिये अधिक पूँजी उपलब्ध होगी।

क्या है प्राथमिक क्षेत्र उधारी ?

प्राथमिक क्षेत्र उधारी का अर्थ उन क्षेत्रों से है, जिन्हें भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक देश की बुनयादी आवश्यकताओं के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं और अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा में इन्हें अधिक प्राथमिकता दी जाती है। बैंकों द्वारा ऐसे क्षेत्रों की वृद्धि को पर्याप्त और समय पर ऋण देना अनिवार्य है।

प्राथमिक क्षेत्र उधारी के लिये आर.बी.आई. के दिशा निर्देश

  • बैंकों के कुल शुद्ध ऋण का 40 % प्राथमिक क्षेत्र उधारी के रूप में वितरित किया जाना आवश्यक है।
  • प्राथमिक क्षेत्र के अग्रिमों (Advances) का 10 % या कुल शुद्ध बैंक ऋण का 10 %, इनमें जो भी अधिक हो कमजोर वर्ग के लिये दिया जाना चाहिये।
  • कुल शुद्ध बैंक ऋण का 18 % कृषि अग्रिमों में जाना चाहिये।कृषि हेतु ऋणों के 18 % के लक्ष्य के तहत लघु और सीमांत किसानों के लिये, समायोजित कुल बैंक ऋण(Adjusted Net Bank Credit-A.N.B.C.) का 8 % का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • ANBC के 7.5 % अथवा तुलनपत्र (Balance Sheet) से इतर एक्सपोज़र की सम मूल्यराशि (Credit Equivalent Amount Off-Balance Sheet Exposure), इन दोनों में से जो भी अधिक हो का ऋण सूक्ष्म उद्यमों को दिया जाना चाहिये।
  • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों में कृषि, सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम, निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक अवसंरचना, अक्षय ऊर्जा, और अन्य को शामिल किया गया है।

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प्राथमिकता क्षेत्र ऋण प्रमाणपत्र (Priority Sector lending Certificates-PSLC)

  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण प्रमाणपत्र, प्राथमिकता क्षेत्र मानदंडों को प्राप्त करने का एक मध्यम है। प्राथमिकता क्षेत्र उधार लक्ष्यों और उपलक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु पी.एस.एल.सी.बैंकों को इन प्रमाणपत्रों को खरीदने के लिये एक चैनल प्रदान करता है। यह अधिशेष बैंकों को अपनी अतिरिक्त उपलब्धि बेचने और बैंकों को प्राथमिक क्षेत्र के तहत श्रेणियों में अधिक उधार देने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस तंत्र के तहत, अधिशेष वाले बैंक प्राथमिकता क्षेत्र के दायित्व को बेचते हैं और खरीदार बैंक जोखिम या ऋण सम्पत्तियों के हस्तांतरण के साथ उस बैंक का दायित्व खरीदता है।

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आगे की राह

  • सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग की परिभाषा काफी पुरानी है।इसे और बढ़ाए जाने की आवश्यकता है, जिससे प्राथमिक क्षेत्र के ऋण में विस्तार होगा साथ ही समावेशी विकास की अवधारणा को बल मिलेगा।
  • प्राथमिक क्षेत्र में ग्रामीण सडकों, बिजली सयंत्रों, पुलों आदि को शामिल करने के लिये ग्रामीण बुनयादी ढांचे की परिभाषा में बदलाव किया जाना आवश्यक है, जिससे सामाजिक अवसंरचना वाले घटक में विस्तार हो सकेगा तथा ग्रामीण विकास को गति प्राप्त हो सकेगी।
  • पी.एस.एल.के तहत खाद्य ऋण को भी शामिल किया जाना चाहिये क्योंकि ऐसे ऋण का उपयोग समाज के कमज़ोर वर्गों के लिये खाद्यानों की खरीद और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु किया जाना चाहिये।
  • पी.एस.एल.मानदंडों के तहत नगर पालिका बांड को शामिल करके शहरों के सामाजिक और आर्थिक बुनयादी ढाँचे में आवश्यक सुधार हेतु संसाधनों की गति शीलता को प्रभावी बना याजाना चाहिये।
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