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कार्बन तटस्थता का लक्ष्य और भारत

(प्रारंभिक परीक्षा- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ;  मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3 विषय- पर्यावरण; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

  • गैर-लाभकारी संगठन ‘एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट’ (ECIU) के नवीनतम आँकड़ो के अनुसार, अप्रैल की शुरुआत में कुल 32 देशों ने इस सदी के मध्य तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने का घोषणा की है।
  • इनमें से केवल आठ देशों ने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सुदृढ़ कदम उठाए हैं, शेष देशों ने अभी केवल अपनी नीतियों तथा प्रस्तावित कानूनों में इस लक्ष्य को शामिल किया है।
  • विदित है कि कुछ समय पूर्व, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने वैश्विक स्तर पर सभी देशों, विशेषकर भारत से कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु स्पष्ट घोषणा करने का आग्रह किया था।

निर्धारित लक्ष्य

  • पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक तापमान स्तर की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से नीचे रखना और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के सभी प्रयास करना।
  • वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये नेट ज़ीरो उत्सर्जन (उत्सर्जित तथा अवशोषित मात्रा के मध्य संतुलन स्थापित करना) की स्थिति प्राप्त करना।

कितने पर्याप्त हैं वर्तमान प्रयास?

  • वर्तमान प्रयासों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि इनसे न तो तीनों लक्ष्यों; तापमान में कटौती, कार्बन तटस्थता और निष्पक्षता को एक साथ प्राप्त करना संभव है और न ही इनसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही, 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य हेतु भी वर्तमान प्रतिबद्धताएँ अपर्याप्त हैं।
  • वैज्ञानिकों द्वारा यह निष्कर्ष वैश्विक कार्बन बजट के आधार पर निकाला गया है, जो पूर्व-औद्योगिक युग से उस समय तक वैश्विक संचयी उत्सर्जन की सीमाओं को इंगित करता है, जब शुद्ध उत्सर्जन बंद हो जाता है, जो वैश्विक तापमान वृद्धि के निश्चित स्तरों के अनुरूप होता है।
  • आँकड़ों से यह जानकारी प्राप्त होती है कि वर्तमान समय में कार्बन बजट का 80 प्रतिशत हिस्सा समाप्त हो चुका है और विश्व के पास केवल 20 प्रतिशत कार्बन बजट शेष है, यदि कार्बन बजट की सीमा से अधिक उत्सर्जन होता है तो तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना नामुमकिन हो जाएगा।

कार्बन उत्सर्जन में देशों की हिस्सेदारी

  • वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में व्यापक असमानताएँ विद्यमान हैं। सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन वाला देश संयुक्त राज्य अमेरिका है, जिसकी कुल कार्बन उत्सर्जन में हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है, वहीं 13 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चीन दूसरे स्थान पर है। भारत इस मामले में चौथे स्थान पर है, इसकी कुल हिस्सेदारी 3 प्रतिशत है
  • यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी वर्ष 2011 तक लगभग 19 प्रतिशत थी, जिसके वर्ष 2030 में कम होकर 15 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

कार्बन तटस्थता के लक्ष्य प्राप्ति की घोषणा और भारत

  • वर्तमान में भारत ने कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने संबंधी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की है और न ही ऐसा करना भारत के हित में है।
  • भारत अभी विकासशील से विकसित अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख हो रहा है। ऐसे में इसकी प्राथमिकता विकास है, क्योंकि यह तात्कालिक आवश्यकता के साथ-साथ महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी है।
  • यद्यपि कार्बन स्थिरता वांछनीय लक्ष्य है, किंतु भारत कम कार्बन उत्सर्जन के साथ विकास लक्ष्यों को किस प्रकार प्राप्त कर सकेगा, यह प्रश्न बेहद अनिश्चित है।
  • कार्बन तटस्थता तथा नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने संबंधी घोषणाएँ भारत जैसे विकासशील देशों के लिये नुकसानदेह हैं, क्योंकि मौजूदा फ्रेमवर्क यह मानने में विफल है कि नागरिकों के कल्याण हेतु निर्मित आधारभूत अवसंरचना के कारण वैश्विक संचयी उत्सर्जन में 50 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि होती है।
  • वर्तमान में भारत के कार्बन फुटप्रिंट के निम्न रहने का कारण अत्यधिक गरीबी और अधिक जनसंख्या है, न कि सततता का अभाव। हालाँकि, भारत प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में अभी भी तीसरे स्थान पर है।
  • वर्ष 1990 से पहले भारत का उत्सर्जन वैश्विक संचयी उत्सर्जन का 3.5% और वर्ष 2018 तक लगभग 5% था। अतः इस पर किसी प्रकार का कार्बन ऋण भी बकाया नहीं है। वर्तमान में भारत का वार्षिक उत्सर्जन विकसित देशों की तुलना में निम्न है और यह 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य प्राप्ति हेतु संगत भी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में कार्बन तटस्थता की घोषणा विकसित देशों द्वारा अपने दायित्वों को भारत जैसे विकासशील देशों की ओर स्थानांतरित करने का एक व्यर्थ प्रयास मात्र है।
  • हालाँकि, भारत द्वारा जलवायु प्रभावों के अनुकूलन तथा निम्न कार्बन उत्सर्जन जैसे उपायों के साथ-साथ विकास प्रक्रिया को जारी रखने के लिये ठोस कार्रवाइयों को अपनाया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

  • पेरिस समझौते में जलवायु न्याय को एक रणनीति के रूप में नहीं बल्कि एक राजनीतिक बयान के तौर में शामिल किया गया था, अतः इसे संशोधित किये जाने की आवश्यकता है।
  • प्रति व्यक्ति निम्न कार्बन उत्सर्जन वाले देशों द्वारा विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पेरिस समझौते के अनुरूप ही है, इसलिये उन्हें कार्बन तटस्थता के लक्ष्य हेतु स्पष्ट घोषणा के लिये आग्रह करना सही नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, जलवायु न्याय तथा कार्बन तटस्थता जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अपरिहार्य है। इस दिशा में विकसित देशों द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन तथा हाइड्रोजन ईंधन जैसी प्रौद्योगिकियों को साझा किया जाना चाहिये, क्योंकि ये जलवायु परिवर्तन के लिये सर्वाधिक प्रभावी उपाय हैं।
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