(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, प्रवासी भारतीय)
संदर्भ
भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया है, जो की एक अप्रत्याशित कदम है। गणतंत्र दिवस पर ब्रिटेन को यह 6वाँ आमंत्रण था जो किसी अन्य राष्ट्र की अपेक्षा सबसे अधिक है। हालाँकि, कोविड-19 के नए स्ट्रेन के प्रसार के कारण उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने में असमर्थता व्यक्त की है।
मुख्य अतिथियों का चयन
- गणतंत्र दिवस परेड के लिये मुख्य अतिथि का चयन प्रधानमंत्री का विशेष निर्णय होता है और इसके लिये आमतौर पर वे मंत्रिमंडल से भी परामर्श नहीं करते हैं।
- प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मुख्य अतिथि के चयन से उनकी रणनीति का पता चलता है। विदित है कि वर्ष 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, वर्ष 2016 में फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, वर्ष 2017 में संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस, वर्ष 2018 में आसियान के नेताओं के साथ-साथ वर्ष 2019 में दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफौसा और वर्ष 2020 में श्री बोल्सोनारो मुख्य अतिथि थे।
- संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में प्रधानमंत्री की पसंद अधिकांशत: पश्चिमी शक्तियों के प्रमुख नेता रहे हैं।
भारत और ब्रिटेन : अतीत एवं वर्तमान
- भारत का ब्रिटेन के साथ साझा अतीत रहा है। अब जबकि ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ (ई.यू.) को छोड़ दिया है तो दोनों के बीच एक साझा भविष्य गढ़े जाने की भी आवश्यकता है।
- वर्तमान में भारत और ब्रिटेन सुरक्षा परिषद् में सहयोग कर सकते हैं, जहाँ ब्रिटेन स्थाई और भारत इस वर्ष तथा अगले वर्ष के लिये अस्थाई सदस्य है। साथ ही, इस वर्ष जॉनसन जी-7 और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करेंगे।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जिन देशों के अतिथियों को आमंत्रित किया है उनकी वर्तमान स्थिति लगभग एक जैसी है। ब्रिटेन, अमेरिका और ब्राज़ील कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित हैं। साथ ही, इन सभी देशों में राष्ट्रवाद का उभार देखा जा रहा है। इनकी लोकतांत्रिक राजनीति भी आत्म-केंद्रित हैं। कुल मिलाकर इन सभी की प्रवृतियाँ लगभग एक जैसी हैं।
- ब्रेक्जिट के बाद भी ब्रिटेन का यूरोपीय संघ और घरेलू स्तर से संघर्ष की सम्भावना है। ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच अभी भी तनाव की स्थिति है। यह स्थिति भारत की तरह ही है।
- ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन नए व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारों की तलाश में है। भारत इसका एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार हो सकता है।
- पी.एम. मोदी ने वर्ष 2015 में जब ब्रिटेन का दौरा किया तब 6 बड़े समझौते संपन्न हुए। इसकी संभावना बहुत कम है कि इन समझौतों के कार्यान्वयन के लिये कोई आकलन किया गया है। समकालीन कूटनीति में पुराने समझौतों पर नए समझौतों को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है।
ब्रिटेन के लिये इस आमंत्रण का महत्त्व
- ब्रिटेन के लिये यह इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन को उच्च विकास दर वाले एशियाई देशों से वाणिज्यिक व व्यापारिक संबंध मज़बूत करना आवश्यक हो गया है।
- भारत वर्ष 2007 से यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते की कोशिश कर रहा है, जिसमें मुख्य बाधा ब्रिटेन द्वारा ही पैदा की गई थी। यूरोपीय संघ ऑटो, शराब एवं स्पिरिट पर शुल्क में कटौती के साथ-साथ यह चाहता था कि भारत बैंकिंग एवं बीमा, डाक, कानूनी व लेखा सेवा के अतिरिक्त समुद्र, सुरक्षा तथा खुदरा जैसे वित्तीय क्षेत्रों को खोले, जबकि भारत ने हमेशा की तरह सेवा पेशेवरों के लिये मुफ्त आवागमन की माँग की है।
संबंधों में घनिष्ठता
- भारत और यू.के. के मध्य पर्याप्त जुड़ाव है। ब्रिटेन में भारतीय मूल के पंद्रह लाख लोग रहते हैं। इनमें से 15 संसद सदस्य, तीन कैबिनेट में और दो वित्त व गृह मंत्री के रूप में उच्च पदों पर भी आसीन हैं।
- कोविड-19 से पूर्व प्रतिवर्ष भारत से ब्रिटेन जाने वाले पर्यटकों की संख्या पाँच लाख थी और ब्रिटेन से भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या इसकी दोगुनी थी।
- साथ ही, परास्नातक के बाद रोज़गार के प्रतिबंधात्मक अवसरों के बावजूद ब्रिटेन में लगभग 30,000 भारतीय छात्र अध्ययन करते हैं। ब्रिटेन, भारत में शीर्ष निवेशकों में से एक है और भारत, ब्रिटेन में दूसरा सबसे बड़ा निवेशक व एक प्रमुख रोज़गार प्रदाता है।
व्यापार में बाधा
- ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन के साथ व्यापार में बाधा उत्पन्न होगी क्योंकि दोनों देशों का निर्यात प्रोफ़ाइल मुख्य रूप से सेवा-उन्मुख है।
- पेशेवरों के लिये मुक्त आवाजाही के जवाब में ब्रिटेन अप्रवासियों के लिये अपनी नई प्वाइंट-बेस्ड सिस्टम का उपयोग करेगा, जबकि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी से हटने के बाद भारत किसी भी नए व्यापार समझौते पर बातचीत करने को लेकर सतर्क है और निर्यात के स्रोत तथा मूल्यवर्धन के प्रतिशत से संबंधित पहलुओं पर अधिक से अधिक जोर देगा।
- इसलिये ब्रिटेन के साथ समझौते में संभवतः फार्मास्यूटिकल्स, वित्तीय प्रौद्योगिकी, रसायन, रक्षा उत्पादन, पेट्रोलियम और खाद्य उत्पादों जैसे कुछ क्षेत्रों पर समझौता किया जा सकता है।
निष्कर्ष
पी.एम. मोदी के द्वारा उनके समकक्ष जॉनसन का चुनाव काफी दूरदर्शी कदम है। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते के बाद इस बात की उम्मीद है कि वर्ष 2024 के चुनाव में वे अपने दल के साथ-साथ देश का भी नेतृत्व कर सकते हैं, जो दोनों देशों के मध्य लम्बे संबंधों के लिये लाभकारी कदम होगा।