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भारत और नदी जोड़ो परियोजना

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि)

संदर्भ 

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) की आधारशिला रखी। इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों को कवर करने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र में जल की कमी को दूर करना है।

भारत में नदी जोड़ो परियोजना

  • नदी जोड़ो परियोजना की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना जुलाई 1982 में की गयी थी। 
  • इसने देश भर में कुल 30 संभावित नदी जोड़ो परियोजनाओं (16 प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत और 14 हिमालयी घटक के अंतर्गत) की पहचान की है।

भारत में नदी जोड़ो परियोजना की आवश्यकता

  • सिंचित भूमि में वृद्धि : नदी जोड़ो परियोजना के कार्यान्वयन से देश को 35 मिलियन हेक्टेयर सिंचित भूमि का लाभ मिलेगा। 
  • जलविद्युत उत्पादन : इन परियोजना के समर्थन से देश में 34,000 मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न होने की संभावना है।
  • नदी जल वितरण की असमानता : देश में नदी जल का वितरण असमान है। कुछ क्षेत्र जल-समृद्ध हैं जबकि कुछ जल की कमी वाले हैं। इन परियोजनाओं से इस असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है। 
  • अतिरिक्त लाभ : परियोजना से बाढ़ नियंत्रण, बेहतर नौवहन, जलापूर्ति एवं मत्स्य पालन के विकास को बढ़ावा मिल सकता है। साथ ही, मृदा की लवणता और प्रदूषण पर नियंत्रण करने में भी मदद मिलेगी।

नदी जोड़ो परियोजना का नदियों पर प्रभाव

  • इससे देश की उत्तरी नदियों के जल प्रवाह एवं डेल्टा में नदियों द्वारा निक्षेपित किए गए तलछट का भी ह्रास होगा। 
    • एक अध्ययन के अनुसार, गंगा नदी का प्रवाह 24% कम हो जाएगा, ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों (मानस, संकोश, रैधक) के प्रवाह में भी भारी कमी आएगी।
    • गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा के तलछट निक्षेप में 30% की कमी आएगी, जिससे भू-क्षरण होगा और समुद्र जल स्तर में 5.6 मिमी/वर्ष की वृद्धि होने की आशंका है।
  • दक्षिणी नदियाँ, जैसे- कृष्णा, गोदावरी एवं महानदी पहले से ही कम प्रवाह के कारण तटरेखा के क्षरण का सामना कर रही हैं; नदी जोड़ो परियोजना इस स्थिति को अधिक गंभीर बना सकती है।
  • उदाहरण : एलिस अल्बिनिया की पुस्तक ‘एम्पायर्स ऑफ़ द इंडस: द स्टोरी ऑफ़ ए रिवर’ (2008) के अनुसार, अंग्रेजों द्वारा बैराज निर्माण शुरू करने के बाद सिंधु के मुहाने पर डेल्टा प्रणाली का ह्रास हुआ।

नदी जोड़ो परियोजना संबंधी चुनौतियाँ 

  • पर्यावरणीय प्रभाव : नदी जोड़ो परियोजना के जल द्वारा आने वाली बाढ़ और लवणता में वृद्धि से सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्र एवं कृषि क्षेत्र की संवेदनशीलता बढ़ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका के किसिमी नदी के तटीकरण के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि का क्षरण हुआ है।
  • उच्च लागत : परियोजना के निर्माण एवं रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, नदी जोड़ो परियोजना की वर्तमान में अनुमानित लागत ₹5.5 लाख करोड़ है, जिसमें सामाजिक, पर्यावरणीय और परिचालन लागत शामिल नहीं है। 
  • विस्थापन : इससे नदी के किनारे रहने वाले समुदायों का पुनर्वास एवं आजीविका की क्षति होने की आशंका है।
    • उदाहरण के लिए, KBLP संबंधी भूमि अधिग्रहण से मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में 5,228 परिवार और पन्ना जिले में 1,400 परिवार प्रभावित होंगे। 
  • राजनीतिक विवाद : जल बँटवारे एवं संसाधन आवंटन को लेकर राज्यों के बीच टकराव में वृद्धि हो सकती है।
  • तकनीकी कठिनाइयाँ : परियोजनाओं से संबंधित जटिल इंजीनियरिंग चुनौतियाँ और उसके कार्यान्वयन में विफलता का जोखिम भी प्रमुख मुद्दे हैं।
    • उदाहरण के लिए, भू-इंजीनियरिंग परियोजनाओं के परिणामस्वरूप अरल सागर वर्तमान में एक भयावह रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है। 
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ : नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से जल की कमी को दूर करने की प्रभावशीलता (परिणाम) दीर्घकाल में अनिश्चित है। 

आगे की राह 

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन : व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए छोटी, प्रबंधनीय परियोजनाओं से शुरुआत करना 
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने भी ऐसी सिफारिश की है। 
  • प्रभाव आकलन : प्रत्येक परियोजना के कार्यान्वयन से पहले पर्यावरण एवं संबद्ध समुदायों पर उसके प्रभावों का व्यापक अध्ययन करने की आवश्यकता
  • स्थानीय समाधानों पर ध्यान देना : जल संरक्षण, कुशल सिंचाई एवं वाटरशेड प्रबंधन को प्राथमिकता देना
  • सार्वजनिक भागीदारी : नियोजन एवं निर्णयन में हितधारक समुदायों को शामिल करना 
  • संधारणीयता पर बल : पारिस्थितिक संतुलन, भूजल पुनर्भरण एवं जैव विविधता संरक्षण पर ध्यान देना 
  • वित्तीय व्यवहार्यता : सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और अन्य वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल पर विचार करना 
  • सीमा पार सहयोग : पड़ोसी देशों के साथ जल-साझाकरण समझौतों का समाधान करने पर बल देना 
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