(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 3- विज्ञान के क्षेत्र में देशज उपलब्धियाँ एवं नवाचार)
संदर्भ
- वर्तमान में भारत ऊर्जा, जल, स्वास्थ्य तथा खगोल विज्ञान जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में तकनीकी रूप से प्रमुख प्रेरक और वैश्विक साझेदार के रूप में उभरा है।
- स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान विकास, नवाचार तथा संबंधित निवेश को बढ़ावा देने के लिये भारत ने मिशन इनोवेशन तथा जल क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिये डच इंडियन वाटर एलायंस फॉर लीडरशिप इनीशिएटिव (डी.आई.डब्ल्यू.ए.एल.आई.) जैसी पहलों को मूर्त रूप प्रदान किया है।
मिशन इनोवेशन
- वर्ष 2015 में 20 देशों के साथ एक साझेदारी के रूप में मिशन इनोवेशन की शुरुआत करने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- मिशन इनोवेशन में भारत ने लगभग 17 भारतीय संस्थानों, 22 विदेशी संस्थानों को शामिल करते हुए स्मार्ट ग्रिड के अंतर्गत शोध एवं विकास से जुड़ी नौ परियोजनाओं में निवेश किया था।
- भारत ने अन्य सदस्य देशों के सहयोग से स्मॉर्ट ग्रीन इनोवेशन चैलेंज में सह-नेतृत्वकर्ता की भूमिका भी अदा की है। इसका उद्देश्य विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय स्तर पर, वितरण के स्तर पर तथा माइक्रो ग्रिड स्तर पर विश्वसनीय, सक्षम एवं किफायती तकनीक से जुड़े नवाचारों को बढ़ावा देना है, जिससे पावर ग्रिड 100% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को समाहित करने के योग्य हो सकें।
- भारत का विज्ञान और तकनीक विभाग ‘थर्मल कम्फर्ट’ के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है तथा ‘एफोर्डेबल, हिटिंग एंड कूलिंग ऑफ बिल्डिंग्स चैलेंज’ से जुड़े क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी भी कर रहा है।
- ध्यातव्य है कि विज्ञान और तकनीकी विभाग, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सतत, मॉड्यूलर और आरामदेह वातावरण विकसित करने के लिये ‘कम्फर्ट क्लाइमेट बॉक्स टेक्नोलॉजी’ पर इंडियन एक्ज़ीबिशन्स इंडस्ट्री एसोसिएशन (आई.ए.) के साथ काम कर रहा है।
- विदित है कि कूलिंग तकनीक के संचालन में ऊर्जा की खपत काफी कम होती है अतः इससे ओजोन परत को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता तथा गोबल वार्मिंग की संभावना भी कम होती है तथा इस तकनीक की लागत भी कम है।
डच इंडियन वॉटर एलायंस फॉर लीडरशिप इनिशिएटिव (DIWALI)
- भारत और नीदरलैंड में जल सम्बंधित चुनौतियों के समाधान के लिये डी.आई.डब्ल्यू.ए.एल.आई. (Dutch Indian Water Alliance for Leadership Initiative) प्लेटफॉर्म विकसित किया गया है।
- इसमें विशेषज्ञों द्वारा भारत में जल चुनौतियों से निपटने में डच समाधानों की क्षमता और स्थायी विकास करने पर ज़ोर दिया जाएगा।
- इस पहल के अंतर्गत वर्ष 2019 में ‘वाटर फॉर चेंज इंटेग्रेटिव एंड फिट फोर पर्पस, वॉटर सेंसिटिव, डिजाइन फ्रेमवर्क फॉर फास्ट ग्रोइंग, लाइवेबल सिट्जि’ नामक डच कंसोर्टियम को स्थापित किया गया था, जिसका नेतृत्व आई.आई.टी. रुड़की कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रेरक के रूप में भारत
- गंगा प्रणाली की सफाई के लिये अनुसंधान और विकास आवश्यकताओं के मूल्यांकन तथा गंगा बेसिन में जल की गुणवत्ता और मात्रा पर कृषि प्रभाव के अध्ययन के लिये विज्ञान और तकनीक विभाग तथा नीदरलैंड्स ऑर्गेनाइजेशन फॉर साइंटिफिक रिसर्च (एन.डब्ल्यू.ओ.) द्वारा अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।
- कोविड-19 के टीके के केन्द्रीयकृत मूल्यांकन के लिये ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ एपेडेमिक प्रीपेयर्डनेस फॉर इनोवेशन (सी.ई.पी.आई.) ने एक भारतीय प्रयोगशाला को चिन्हित किया है। ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टी.एच.एस.टी.आई.ओ.) को सी.ई.पी.आई. द्वारा प्रयोगशालाओं के एक ग्लोबल नेटवर्क के रूप में मान्यता भी दी गई है।
- अपने वैश्विक वैज्ञानिक नेतृत्व का नए और उभरते क्षेत्रों में विस्तार करते हुए भारत संस्थापक सदस्य के रूप में ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जी.पी.ए.आई.) में भी शामिल हुआ है ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा मानव केंद्रित विकास को आगे बढ़ाया जा सके। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, रूस, कोरिया तथा जापान जैसे देशों के साथ वैश्विक साझेदारी पर भी विचार कर रहा है।
- भारत मेगा साइंस परियोजनाओं, जैसे- यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सी.ई.आर.एन.) तथा थर्टी मीटर टेलीस्कोप (टी.एम.सी.) में भी सहायक के रूप में कार्य कर रहा है।
- वर्ष 2016 में उत्तराखंड के देवास्थल में एशिया के सबसे बड़े परावर्तक टेलिस्कोप की स्थापना विज्ञान एवं तकनीक विभाग के स्वायत्त अनुसंधान संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेज (ए.आर.आई.ई.एस.) द्वारा बेल्जियम के समर्थन से की गई। इस टेलीस्कोप ने खगोल विज्ञान के शोध क्षेत्र में भारत को वैश्विक दर्जा प्रदान किया।
निष्कर्ष
विज्ञान को कूटनीतिक रूप से प्रयोग करने के क्षेत्र में भारत ने अपने कदम अवश्य बढ़ाए हैं लेकिन भविष्य में भारत को इस क्षेत्र में और ज़्यादा प्रयास करने होंगे क्योंकि भविष्य की नींव विज्ञान पर ही टिकी है।